निर्भया के दोषियों को कैसे दी जाएगी फांसी? पवन जल्लाद ने खुद बताई पूरी कहानी
नई दिल्ली. निर्भया के चारों दोषियों को 20 मार्च की सुबह 5.30 बजे फांसी दी जानी है। पवन जल्लाद मेरठ से तिहाड़ जेल पहुंच चुका है। बुधवार को उसने दोषियों का डमी बनाकर फांसी देने की रिहर्सल भी की। यह चौथी बार है, जब फांसी देने की तारीख तय की है। हालांकि इस बार कयास लगाए जा रहे हैं कि फांसी की तारीख नहीं बदलेगी। ऐसे में बताते हैं कि फांसी के दिन क्या-क्या होता है? जल्लाद का क्या काम होता है और दोषियों की मौत के बाद जल्लाद का क्या काम होता है?
Asianet News Hindi | Published : Mar 19, 2020 6:53 AM IST / Updated: Mar 19 2020, 12:27 PM IST
कौन हैं निर्भया के चारों दोषी?- निर्भया (Nirbhaya) के पहले दोषी का नाम अक्षय ठाकुर है। यह बिहार का रहने वाला है। इसने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और दिल्ली चला आया। शादी के बाद ही 2011 में दिल्ली आया था। यहां वह राम सिंह से मिला। घर पर इस पत्नी और एक बच्चा है। दूसरे दोषी को नाम मुकेश सिंह है। यह बस क्लीनर का काम करता था। जिस रात गैंगरेप की यह घटना हुई थी उस वक्त मुकेश सिंह बस में ही सवार था। गैंगरेप के बाद मुकेश ने निर्भया और उसके दोस्त को बुरी तरह पीटा था। तीसरा दोषी पवन गुप्ता है। पवन दिल्ली में फल बेंचने का काम करता था। वारदात वाली रात वह बस में मौजूद था। पवन जेल में रहकर ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहा है। चौथा दोषी विनय शर्मा है। विनय जिम ट्रेनर का काम करता था। वारदात वाली रात विनय बस चला रहा था। इसने पिछले साल जेल के अंदर आत्महत्या की कोशिश की थी लेकिन बच गया।
पवन जल्लाद ने एक टीवी इंटरव्यू में बताया था, फांसी की तैयारी करने में एक से डेढ़ घंटे का समय लगता है। फंसी देने का जो समय तय होता है, उससे 15 मिनट पहले फांसी घर के लिए चल दिया जाता है।
पवन जल्लाद ने बताया, दोषी के फांसी देते वक्त फांसी घर में 4-5 सिपाही होते हैं। वह कैदी को फांसी के तख्ते पर खड़ा करते हैं।
पवन जल्लाद के मुताबिक, सिपाही कुछ नहीं बोलते हैं। सिर्फ इशारों में बात होती है। फांसी घर में जेल अधीक्षक, डिप्टी जेलर और डॉक्टर मौजूद रहते हैं।
पवन ने बताया कि फांसी देने में 15 मिनट का समय लगता है।
फांसी देते वक्त कैदी के हाथ बंधे होते हैं। इसके बाद उसके पैर भी बांधे जाते हैं। सिर को कपड़े से ढक दिया जाता है।
पवन ने बताया, पैर बांधने का काम हमेशा साइड से किया जाता है। इसके पीछे वजह है। क्योंकि यह डर रहता है कि मरने से पहले कैदी कहीं फांसी देने वाले को पैरों से घायल न कर दे।
पवन ने बताया कि कैदी के सिर को फंसे से कसने के बाद कैदी के चारों तरफ घूमा जाता है। जैसे ही सारा काम पूरा हो जाता है। जल्लाद लीवर के पास पहुंचता है।
कैदी के हाथ पैर बांधने और सिर को कपड़े से ढकने के बाद जल्लाद लीवर के पास पहुंचता है और जेल अधीक्षक को अंगूठा दिखाकर बताता है कि उसने सारा काम कर लिया है और वह तैयार है। वह लीवर खींचने के लिए तैयार है।
पवन ने बताया, कैदी जहां पर खड़ा होता है वहां पर गोल निशान बनाया जाता है, जिसके अंदर कैदी के पैर होते हैं।
जब पवन जल्लाद बताता है कि वह तैयार है तब जेल अधीक्षक रूमाल से इशारा करता है। इसके बाद जल्लाद लीवर खींच देता है।
जैसे ही जल्लाद लीवर खींचता है, वैसे ही कैदी कुएं में टंग जाता है।
पवन ने बताया, करीब 10 से 15 मिनट तक कैदी का शरीर हवा में झूलता रहता है। इसके बाद धीरे-धीरे उसका शरीर शांत हो जाता है।
फांसी के 15 मिनट बाद कैदी के पास डॉक्टर आता है और उसका हार्ट बीट चेक करता है। उस समय तक शरीर ठंडा हो चुका होता है।
इसके बाद डॉक्टर वहां मौजूद सिपाहियों को इशारा करते हैं। तब सिपाही फंदे से कैदी की बॉडी को उतार लेते हैं।
सिपाही कैदी की डेड बॉडी को फांसी के फंदे से उतारकर पास में रखी चादर में लपेट देते हैं। जल्लाद फंदा और रस्सी निकाल कर एक तरफ रख देता है।