करगिल युद्ध में इस जवान ने सबसे पहले दी थी शहादत, खोल दी थी पाकिस्तान की चालबाजी की पोल

नई दिल्ली. 1999 में लड़ा गया भारत-पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों ने जो अदम्य साहस और वीरता का परिचय दिया उसे पूरी दुनिया ने देखा। आज भी उनकी वीरता की कहानियां सुनकर दुश्मन कांप जाते हैं। ऐसे ही कहानी एक ऐसे जवान की है, जिसने कारगिल शुरू होने से पहले ही शहादत दे दी थी। लेकिन, उससे पहले ही उन्होंने पाकिस्तान की चालबाजी की पोल खोल दी थी और घुसपैठ के बारे में भारतीय सेना को अलर्ट कर दिया था।

Asianet News Hindi | Published : Jul 19, 2020 8:58 AM IST
18
करगिल युद्ध में इस जवान ने सबसे पहले दी थी शहादत, खोल दी थी पाकिस्तान की चालबाजी की पोल

सौरभ कालिया के साथ उनके पांच साथियों ने घाटी में अपनी जान गवां दी थी। नरेश सिंह, भीखा राम, बनवारी लाल, मूला राम और अर्जुन राम उनके सहयोगी साथी थे। ये सभी काकसर की बजरंग पोस्ट पर गश्त लगा रहे थे, जब ये दुशमन के हाथों पकड़े गए। 22 दिनों तक दुश्मनों द्वारा जबरदस्त यातना दी गई थी। उस वक्त सौरभ की उम्र 22 साल थी और उनके साथी अर्जुन राम महज 18 के थे। 

28

कैप्टन सौरभ ने ही सबसे पहले कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठ की जानकारी भारतीय सेना को दी थी। सौरभ कालिया 4 जाट रेजिमेंट के आर्मी ऑफिसर थे। दुश्मनों को खदेड़ने के लिए कैप्टन सौरभ अपने पांचों साथियों के साथ नियंत्रण रेखा पार कर काफी आगे चले गए थे। साल 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान कैप्टन सौरभ कालिया और उनके साथ 5 अन्य भारतीय जवान पेट्रोलिंग के लिए गए थे। 
 

38

पूरे दिन की गश्त के बाद वो और उनके साथी रात को हमला करने की योजना बना कर आराम कर रहे थे तभी जाट रेजीमेंट के इन सभी अफसरों का अपहरण पाकिस्तानी सैनिकों ने कर लिया। बताया जाता है कि पाकिस्तानी आर्मी ने इन सैनिकों को बहुत टार्चर किया गया था। इनके कानों को गर्म लोहे की रॉड से छेदा गया, आंखें निकाल ली गई, निजी अंग काट दिए गए और फिर गले काट दिए गए। 

48

सौरभ और उनके साथियों पर हुए अमानवीय सलूक के कारण उनकी मौत हो गई थी। इनकी हत्या करने के बाद पाकिस्तान ने लाशें भारतीय सीमा में फेंक दी थी और वो आज भी इस हत्या से मुंह फेरता है कि उसने उनकी लाशें एक गड्ढे में पाई थी। इनके शव को जब पाकिस्तान ने भारत भेजा तो परिवार और देश इनके शव को देखकर दहल गए। तब से लेकर आज तक परिवार पाकिस्तानी सैनिकों के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहा है। सरकार का कहना था कि पाकिस्तान के खिलाफ आईसीजे में जाना व्यावहारिक नहीं है। 

58

गौरतलब है कि कैप्टन कालिया के परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में अंतर्राष्ट्रीय जांच की मांग की थी। सौरभ कालिया के शरीर पर सिगरेट से जलाने, कान को गर्म रॉड से जलाने के निशान पड़े थे। यही नहीं उनकी आंखे भी फोड़ कर निकाल ली गई थी। दांत भी बुरी तरह से तोड़ दिए गए थे और उनकी कमर और हड्डियों को टुकड़ों में काटा गया था। पाकिस्तान की ओर से कहा गया कि कालिया और उनके पांच अन्य भारतीय सैनिकों का शव गड्ढे में पाया गया था, जहां उनकी मौत हो गई थी।

68

सौरभ कालिया और उनके किसी साथी को वीरता का कोई पदक नहीं मिला। सौरभ लेफ्टिनेंट से कैप्टन बनने के बाद अपना पहला वेतन भी नहीं ले पाए थे। आखिरी चिट्ठी में उन्होंने लिखा था कि 'मैं दुश्मन को हरा कर और अपना वेतन ले कर घर आऊंगा और तब हम पार्टी करेंगे।' सौरभ कालिया का घर हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हैं जहां उनके पिता नरेंद्र कुमार कालिया और मां विजया रहती है। मां को तो बेटे की मौत की खबर सुनते ही दिल का दौरा पड़ गया था और उन्हें अपनी नौकरी भी छोड़नी पड़ी थी।

78

एक युवा और होनहार अधिकारी की मौत के बदले उसके परिवार को एक रसोई गैस एजेंसी दे दी गई। इस एजेंसी से परिवार को महीने में पांच से आठ हजार रुपए बचते है।

88

अपने बेटे को खो देने का गम मां विजया कालिया को जरूर है, लेकिन इससे भी ज्यादा गम इस बात का है कि सीमा पर जान गंवाने वाले उनके बेटे का नाम शहीदों की सूची में कहीं नहीं है। कारगिल जिले में द्रास के पास बने विजय स्मारक पर लिखे हजारों शहीदों के नामों में सौरभ कालिया का नाम नहीं है।

Share this Photo Gallery
click me!

Latest Videos

Recommended Photos