एक दिन भी नहीं लेती छुट्टी, गरीबों के लिए मेडिकल सुविधाओं की ‘होम डिलीवरी’ करती है ये डॉक्टर

नई दिल्ली. भले ही अधिकतर लोग अपनी ही दुनिया में मस्त हो लेकिन कहीं न कहीं कोई न कोई ये बात साबित कर ही देता है कि इंसानियत अभी भी जिंदा है। ऐसी ही मानवता कि मिसाल हैं एक महिला जो डॉक्टर होते हुए एक दिन की छुट्टी को भी लोगों की सेवा में लगा देती है। ये DOOR To DOOR लोगों को मेडिकल फैसिलिटी मुहैया करवाती है। जब लोगों को पता चला तो इनकी कहानी सामने आई जिसे सुन हर किसी के चेहरे पर मुस्कान आ गई। 

Asianet News Hindi | Published : Dec 29, 2019 7:35 AM IST / Updated: Dec 29 2019, 01:18 PM IST

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एक दिन भी नहीं लेती छुट्टी, गरीबों के लिए मेडिकल सुविधाओं की ‘होम डिलीवरी’ करती है ये डॉक्टर
रविवार का दिन ज्यादातर लोगों के लिए आराम और छुट्टी का होता है। पर आंध्र प्रदेश के नेल्लूर जिले की न्यूरोलॉजिस्ट डा. बिंदू मेनन ने छुट्टी के इस दिन भी काम पर निकल पड़ती हैं। वह हर रविवार को जिले के किसी एक गांव में अपनी वैन के साथ पहुंचती हैं और स्नायु तंत्र से जुड़ी पेचीदा बीमारियों को लेकर फैले भ्रम दूर करने के साथ ही इसकी जांच से निदान तक की पूरी जानकारी और दवा मुहैया कराती हैं।
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अपनी इस पहल का जिक्र करते हुए डा. मेनन बताती हैं कि भोपाल में मेडिकल की पढ़ाई के दौरान वह स्नायु तंत्र से जुड़ी बीमारियों को लेकर फैले भ्रम और अंधविश्वास के बारे में जानकर चिंतित रहती थीं इसीलिए उन्होंने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करने का फैसला किया।
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चूंकि मिरगी और मस्तिष्क आघात को लेकर गांव देहात में जानकारी का बहुत अभाव है और इसे जादू टोने, ऊपरी हवा और देवी आने जैसे अंधविश्वास से जोड़कर देखा जाता है इसलिए डा. मेनन ने दूर दराज के गांवों तक पहुंच बनाने का इरादा किया।
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डा. मेनन ने बताया कि उनके साप्ताहिक अभियान के लिए गांव का चयन पहले ही कर लिया जाता है और गांव प्रमुख अथवा पंचायत के माध्यम से पूरे गांव को डा. मेनन की वैन के आने की तारीख और स्थान की सूचना दी जाती है।
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उन्होंने बताया कि उनके पहुंचने से पहले ही सुबह सवेरे तकरीबन 150 लोग गांव की चौपाल पर एकत्र हो जाते हैं और तमाम जरूरी जानकारी बड़े ध्यान से सुनते हैं।
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2013 में डा. बिंदू मेनन फाउंडेशन की स्थापना और 2015 में ‘न्यूरोलॉजी ऑन व्हील्स’ के साथ अपने मिशन पर निकल पड़ीं।
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इस दौरान रोगियों की जांच के अलावा उन्हें दवा भी दी जाती है। इस अभियान से जुड़े अपनी टीम के सदस्यों, स्वयंसेवकों और गांवों के बड़े बुजुर्गों का शुक्रिया अदा करते हुए डा. मेनन कहती हैं कि इनके सहयोग के बिना यह कार्य कर पाना मुश्किल था।
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