Published : Mar 02, 2020, 04:47 PM ISTUpdated : Mar 03, 2020, 07:24 AM IST
नई दिल्ली. निर्भया गैंगरेप के दोषियों को 3 मार्च की सुबह 6 बजे फांसी पर लटकाया जाना है। इससे पहले सभी दोषी बचने की हर कोशिश कर रहे हैं। जिसका नतीजा है कि दोषी कानूनी दांव पेंच का प्रयोग कर हर बार मौत को टाल दे रहे हैं। वहीं, निर्भया के दोषी पवन ने फांसी से बचने के लिए शनिवार को क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल की थी। जिस पर सोमवार को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। जिसके तुरंत बाद दोषी पवन ने राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दाखिल की। जिसके बाद से दोषियों के मौत का रास्ता एकदम से साफ हो गया है। ऐसे में हम आपको बताते हैं कि आखिर पवन कौन है और कैसे वह दिल्ली पहुंचा....
पवन गुप्ता बस्ती जिले के जगन्नाथपुर का निवासी है। इससे पहले दूसरा डेथ वारंट जारी होने के बाद निर्भया के दोषी पवन से मिलने उसकी दादी, बहन और पिता पहुंचे थे। तीनों को देखकर पवन खुद को रोक नहीं पाया था और आधे घंटे तक फूट-फूटकर रोया था।
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जिस चलती बस में छात्रा के साथ गैंगरेप हुआ था, उस समय पवन भी अपने दोस्तों के साथ उसी बस में था। उसके परिवार के लोग तो दिल्ली के आरकेपुरम रविदास कैंप में रहते हैं। पवन के बचपन के दोस्त और अन्य लड़के बताते हैं कि कालू यानी पवन को क्रिकेट का बहुत शौक था। उसने महादेवा में नमकीन बनाने की फैक्ट्री खोली लेकिन वह चल नहीं पाई। इसके बाद वह दिल्ली चला गया और वहां जूस का व्यवसाय करने लगा।
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उसकी बहन और दादी ने 2017 में फांसी की सजा के बाद अदालत और कानून पर टिप्पणी की थी। दोनों का मानना था कि उन्हें न्याय पाने के लिए प्रयास करने का मौका नहीं दिया गया। पवन के चाचा भी दिल्ली में रहकर काम करते हैं। निर्भया कांड के बाद पवन की मां की मौत पर पिता एक बार अपने गांव जगन्नाथपुर आए थे। उसके बाद से परिवार गांव नहीं गया है।
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दो भाई व दो बहन में सबसे बड़ा पवन दुकानदारी के अलावा ग्रेजुएशन की पढ़ाई भी कर रहा था। पिता ने यहां लालगंज थाने के महादेवा चौराहे के पास गांव में भी जमीन ली थी और उस पर मकान बनवाना शुरू किया था, मगर 16 दिसंबर 2012 में हुए निर्भया कांड के बाद से काम ठप हो गया।
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मौजूदा समय में वह खंडहर जैसा दिखता है। निचली अदालत ने 10 सितंबर 2013 में जब उसे फांसी की सजा सुनाई तो गांव में लोगों ने समर्थन किया लेकिन दादी ने उसके छूटने की बात की थी। 13 मार्च 2014 में हाईकोर्ट व 27 मार्च 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा बरकरार रखी। अब क्यूरेटिव याचिका को भी सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर परिवार की उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
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16 दिसंबर 2012 को चलती बस में छात्रा निर्भया के साथ गैंगरेप हुआ। पवन गुप्ता उर्फ कालू भी अपने दोस्तों के साथ उसी बस में था। वह बस्ती जिले का रहने वाला है। उसकी हरकत पर आज भी गांव के लोगों को यकीन नहीं होता। इसका जिक्र होते ही उनका सिर शर्म से झुक जाता है।
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तब नाबालिग था, फांसी न देंः दोषी पवन ने कोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए फांसी को उम्रकैद में बदलने की गुहार लगाई। वहीं, दोषियों के वकील एपी सिंह ने कोर्ट से कहा कि अपराध के वक्त दोषी नाबालिग था। ऐसे में उसे फांसी नहीं दी जानी चाहिए। हालांकि कोर्ट दोषी के इस दलील को सुनने से इंकार कर दिया और उसकी मांग को खारिज कर दिया।
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क्या है निर्भया गैंगरेप और हत्याकांडः दक्षिणी दिल्ली के मुनिरका बस स्टॉप पर 16-17 दिसंबर 2012 की रात पैरामेडिकल की छात्रा अपने दोस्त को साथ एक प्राइवेट बस में चढ़ी। उस वक्त पहले से ही ड्राइवर सहित 6 लोग बस में सवार थे। किसी बात पर छात्रा के दोस्त और बस के स्टाफ से विवाद हुआ, जिसके बाद चलती बस में छात्रा से गैंगरेप किया गया।
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लोहे की रॉड से क्रूरता की सारी हदें पार कर दी गईं। छात्रा के दोस्त को भी बेरहमी से पीटा गया। बलात्कारियों ने दोनों को महिपालपुर में सड़क किनारे फेंक दिया गया। पीड़िता का इलाज पहले सफदरजंग अस्पताल में चला, सुधार न होने पर सिंगापुर भेजा गया। घटना के 13वें दिन 29 दिसंबर 2012 को सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में छात्रा की मौत हो गई।