कभी भीख मांगता था ये लड़का, आज महामारी के वक्त मसीहा बन बेसहारा लोगों की इस तरह कर रहा मदद

कोच्ची. मुरुगन एस, वह लड़का जो कोच्चि की सड़कों पर बचपन में खाने के लिए अजनबी व्यक्तियों से भीख मांगता था। उसके पिता शराब पीते थे और मां मजदूर थीं। मां को इतनी कमाई नहीं होती थी कि वे अपने बच्चे को आराम से दोनों समय का खाना खिला सकें। इसलिए मुरुगन को अपने बचपन का समय कूड़ा बीनने और खाने की जुगाड़ में काम करते बिताना पड़ा। लेकिन अब यही शख्स बेसहारा, गरीबों के लिए मसीहा बन उनकी मदद कर रहा है। आईए जानते हैं कि कैसे एक भीख मांगने वाला बच्चा मसीहा बन गया।
 

Asianet News Hindi | Published : May 23, 2020 1:58 PM IST / Updated: May 23 2020, 07:29 PM IST

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कभी भीख मांगता था ये लड़का, आज महामारी के वक्त मसीहा बन बेसहारा लोगों की इस तरह कर रहा मदद

इसी दौरान एक दिन मुरुगन पर पुलिस की नजर पड़ी और उसे अनाथालय में रख दिया। यहां सालों तक ननों ने उसकी देखभाल की। कुछ समय बाद उसने चाइल्डलाइन में काम करना शुरू किया। यहां 7 साल काम करते हुए उसने कुछ बचत भी की और इससे एक ऑटो रिक्शा खरीदा। 

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2007 में बनाया एनजीओ
मुरुगन ने दूसरी ओर सड़कों पर घूम रहे अनाथ बच्चों, बुजुर्गों और मानसिक तौर पर कमजोर लोगों का रेस्क्यू करना शुरू किया। 2007 में मुरुगन ने सोशल वर्कर बन ऐसे लोगों के लिए काम करने के बारे में सोचा। उन्होंने उसी साल 'थेरुवोरम' एनजीओ शुरू किया। 

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इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, कोरोना के वक्त में जब लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए अपने घरों में कैद हैं, ऐसे समय में मुरुगन और उनके 8 साथी बेघर और सड़कों पर घूम रहे असहाय लोगों को सुरक्षित घरों में पहुंचा रहे हैं। इनमें से ज्यादातर वे लोग हैं, जो केरल के अलावा दूसरे राज्यों से आए हैं

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नहला-धुला कर साफ कपड़े पहनाते हैं मरुगन
मुरुगन के मुताबिक, 90% लोग अन्य राज्यों से हैं। इनमें से ज्यादातर की उम्र 20-40 साल के बीच में है। इनमें से ज्यादातर को शराब और ड्रग्स की लत है। इनसे ही इनका जीवन खराब हो गया। जल्द ही ऐसे लोग मानसिक रोगी बन जाते हैं। 

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मुरुगन बताते हैं कि वे ऐसे लोगों को नहलाते हैं। उन्हें साफ कपड़े देते है। फिर उन्हें मेंटर हॉस्पिटल या सेंटर तक ले जाते हैं। उन्होंने बताया कि वे ऐसे मामलों में स्थानीय पुलिस की अनुमति लेते हैं।

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'थेरुवोरम' में 6 हेल्पर्स समेत 8 लोग हैं। इनमें से 2 एम्बुलेंस के ड्राइवर हैं। ये एम्बुलेंस एनजीओ को मलयालम फिल्म असोसिएशन की तरफ से दी गई हैं। इन्हीं से लोगों को अस्पताल या सेंटर तक छोड़ा जाता है। 

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अप्रैल तक 617 लोगों को सुरक्षित सेंटरों तक पहुंचाया 
लॉकडाउन के शुरुआती कुछ हफ्तों में ही यानी अप्रैल के आखिरी सप्ताह तक मुरुगन और उनकी टीम ने केरल के 6 जिलों से 617 लोगों का रेस्क्यू किया। इनमें से कई ऐसे थे, जिन्होंने महीनों तक नहाया नहीं था। वहीं, इस दौरान उन्हें एक ऐसा व्यक्ति भी मिला, जिसके हाथ में चूड़ियां थीं। इसे फायर डिपार्टमेंट की मदद से कटवाना पड़ा।
 

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मिल चुके हैं कई अवार्ड
एस मुरुगन को 2012 में सोशल सर्विस करने के लिए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सम्मानित किया था। वहीं, 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों नेटवर्क टाइम्स नाउ की ओर अमेजिंग इंडियन अवार्ड भी मिला था। 
 

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