फांसी से 3 घंटे पहले जगा दिया गया...जानिए कैसे हुई निर्भया के चार दोषियों को फांसी
नई दिल्ली. निर्भया के चारों दोषियों को 87 महीने बाद मौत दे दी गई। 20 मार्च की सुबह 5.30 बजे दोषियों को तिहाड़ जेल में फांसी देने की तारीख तय की गई थी। इस केस में 6 दोषी थे। मुख्य दोषी राम सिंह की साल 2013 में मौत हो गई। तिहाड़ जेल में फंदे से लटकी हुई उसकी लाश मिली थी। एक दोषी नाबालिग था, जिसे 3 साल की सजा के बाद छोड़ दिया गया। दिल्ली प्रिजन मैनुअल 2018 में फांसी की प्रोसेस और फांसी वाले दिन क्या-क्या होता है, इस बारे में बताया गया है। उसी के आधार पर बताते हैं कि आखिर निर्भया के चारों दोषियों को फांसी कैसे हुई?
क्या है निर्भया गैंगरेप और हत्याकांड?दक्षिणी दिल्ली के मुनिरका बस स्टॉप पर 16-17 दिसंबर 2012 की रात पैरामेडिकल की छात्रा अपने दोस्त को साथ एक प्राइवेट बस में चढ़ी। उस वक्त पहले से ही ड्राइवर सहित 6 लोग बस में सवार थे। किसी बात पर छात्रा के दोस्त और बस के स्टाफ से विवाद हुआ, जिसके बाद चलती बस में छात्रा से गैंगरेप किया गया। लोहे की रॉड से क्रूरता की सारी हदें पार कर दी गईं। छात्रा के दोस्त को भी बेरहमी से पीटा गया। बलात्कारियों ने दोनों को महिपालपुर में सड़क किनारे फेंक दिया गया। पीड़िता का इलाज पहले सफदरजंग अस्पताल में चला, सुधार न होने पर सिंगापुर भेजा गया। घटना के 13वें दिन 29 दिसंबर 2012 को सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में छात्रा की मौत हो गई।
निर्भया के दोषियों को फांसी देने की तारीख 5.30 बजे तय की गई। इससे 3 घंटे पहले ही तीनों दोषियों को जगा दिया जाता है।
फांसी के 3 घंटे पहले ही दोषियों को जगाकर नहलाया जाता है। फिर उन्हें साफ और नए कपड़े पहनाए जाते हैं।
चारों दोषियों को नहलाने के बाद नया कपड़ा पहनाया जाता है। फिर खाने के लिए नाश्ता दिया जाता है।
चारों दोषियों को नाश्ता देने के बाद चारों दोषियों से जेल सुपरिटेंडेंट, डिर्टी सुपरिटेंडेट, डीएम या एडीएम और मेडिकल ऑफिसर दोषियों से मुलाकात करते हैं। मुलाकात फांसी के वक्त से एक घंटे पहले की रहती है।
डिप्टी सुपरिटेंडेंट के साथ दोषी जेल नंबर 3 तक जाते हैं। इसके बाद चारों दोषियों के हाथ पीठ के पीछे बांध दिए जाते हैं।
चारों दोषियों को फांसीगर ले जाया जाता है। इस दौरान उनके साथ वॉर्डन रहते हैं। इसके बाद दोषियों को हिंदी में डेथ वॉरंट पढ़कर सुनाया जाता है।
फिर एक-एक कर चारों दोषियों को फांसी के फंदे के नीचे ले जाया जाता है। इस समय भी उनके हाथ पीठ के पीछे बंधे होते हैं। उनके पास जल्लाद आता है। वो दोषियों के पैरों को कसकर बांध देता है। इसके बाद दोषियों की गर्दन में फांसी का फंदा डाल देता है।
इसके बाद सुपरिटेंडेंट चेक करता है कि गर्दन पर रस्सी ठीक तरह से बंधी है या नहीं। इसके कुछ सेकंड बाद सुपरिटेंडेंट जल्लाद को इशारा करता है और जल्लाद ने लीवर खींच देता है।
इस बाद वहां मौजूद मेडिकल ऑफिसर ने चारों दोषियों की मौत की पुष्टि करता है।
फांसी को जेल सुपरिटेंडेंट, डिप्टी सुपरिटेंडेंट, मेडिकल ऑफिसर रहते हैं। इनके अलावा डीएम या एडीएम भी रहते हैं, जो वॉरंट पर साइन करते हैं। दोषी चाहे तो उनके धर्मगुरु भी उस वक्त वहां पर मौजूद रह सकते हैं। इनके अलावा कॉन्स्टेबल, हेड कॉन्स्टेबल या वॉर्डन भी रहते हैं।