कैसे दी जाती है फांसी, सुबह का वक्त ही क्यों, फांसी से पहले कैदी के कान में क्या कहता है जल्लाद?

नई दिल्ली. राजधानी में 16 दिसंबर 2012 में चलती बस में हुए गैंगरेप केस में फैसला आ चुका था। अब सात साल बाद उन दरिंदे आरोपियों को फांसी की सजा दी जानी है जिसकी तैयारियां शुरू हो गई है। आरोपियों की फांसी के लिए जेल में ट्रायल किया जा चुका है। फांसी के नियम भी लोगों जानना चाहते हैं। हम आपको ये बताने जा रहे हैं कि फांसी कैसे दी जाती है और जल्लाद अपराधी के कान में क्या कहता है?

Asianet News Hindi | Published : Dec 10, 2019 8:44 AM IST / Updated: Dec 10 2019, 02:15 PM IST

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कैसे दी जाती है फांसी, सुबह का वक्त ही क्यों, फांसी से पहले कैदी के कान में क्या कहता है जल्लाद?
साल 1983 में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए थे कि, देश में रेयरेस्ट ऑफ रेयर यानि संगीन और घिनौने मामले में ही फांसी की सजा होगी। साल 2012 में निर्भया मामले को भी कोर्ट ने इसी श्रेणी में रखा और चारों दोषियों के लिए फांसी की सजा सुनाई गई। उनकी फांसी का वक्त करीब आ चुका है।
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फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद डेथ वारंट जारी किया जाता है। दया याचिका खारिज होने के बाद ये वारंट कभी भी आ सकता है। वारंट में फांसी की सजा का समय और तारीख लिखी होती है। मृत्युदंड वाले कैदी के साथ आगे कार्यवाही जेल मैनुअल के हिसाब से होती है। हालांकि हर राज्य का अलग मैनुअल होता है।
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अपराधी को फांसी देने से पहले सभी फांसी की प्रक्रिया का पालन करना जरूरी होता है। डेथ वारंट जारी होने के बाद कैदी को ये बताया जाता है कि उसे फांसी होने वाली है। जेल सुप्रीटेंडेंट प्रशासन को भी डेथ वारंट की जानकारी देते हैं। अगर कैदी की जेल में फांसी की व्यवस्था नहीं है तो उसे डेथ वारंट आने के बाद नई जेल में शिफ्ट किया जाता है।
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फांसी हमेशा सुबह के समय 6, 7 या 8 बजे दी जाती है। फांसी का समय महीनों के हिसाब से अलग-अलग तय होता है। सुबह के समय फांसी देने का कारण ये है कि उस समय सारे कैदी सो रहे होते हैं और जिस कैदी को फांसी होनी है उसे पूरा दिन मौत का इंतजार नहीं करना पड़ता, परिजनों को अंतिम संस्कार के लिए पूरा दिन मिल जाता है।
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फांसी से पहले कैदी के परिवार को 10-15 दिन पहले सूचना दी जाती है ताकि वो कैदी से आकर मिल सकें। जैल में कैदी की पूरी चेकिंग होती है और उसे दूसरे कैदियों से अलग रखा जाता है।
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अब बात आती है फांसी वाले दिन क्या होता है? दरअसल फांसी वाले दिन सुबह-सुबह सुप्रीटेंडेंट की निगरानी में गार्ड कैदी को फांसी कक्ष में लाते हैं। फांसी वक्त जल्लाद के अलावा तीन अधिकारी जेल सुप्रीटेंडेंट, मेडिकल अफसर और मजिस्ट्रेट मौजूद रहते हैं। सुप्रीटेंडेंट फांसी से पहले मजिस्ट्रेट को बताते हैं कि मैंने कैदी की पहचान कर ली है और उसे तेढ वारंट पढ़कर सुना दिया है।
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फांसी के समय डेथ वारंट पर कैदी से साइन करवाए जाते हैं। फांसी से पहले कैदी को नहलाया जाता है और नए कपड़े पहनाए जाते हैं। फांसी से पहले कैदी की आखिरी इच्छा पूछी जाती है जिसमें परिवार से मिलना, अच्छा खाना या और कोई ख्वाहिश जो भी कैदी अपनी जिंदगी खत्म होने से पहले करना चाहता हो।
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जिस अपराधी को फांसी दी जाती है उसके आखिरी वक्त में जल्लाद ही उसके साथ होता है। सबसे बड़ा और सबसे मुश्किल काम जल्लाद का ही है। फांसी देन से पहले जल्लाद कैदी के कानों में अपने काम को लेकर माफीनामा जैसा कुछ बोलता है।
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आखिरी वक्त में जल्लाद कैदी के कान में कहता है, हिंदुओं को राम-राम और मुस्लिमों को सलाम, मैं अपने फर्ज के आगे मजबूर हूं, मैं आपके सत्य की राह पर चलने की कामना करता हूं। इतना कहकर जल्लाद कैदी के पैरों के नीचे से चबूतरे से जुड़ा लीवर खींच देता है।
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