वहीं, धार्मिक दृष्टिकोण के मुताबिक, देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया जिससे अमृत निकला। विष्णु जी मोहिनी अवतार लेकर जब देवताओं को अमृत पान करा रहे थे, तभी एक असुर राहु देवताओं का वेश बनाकर उनके बीच बैठ गया और उसने भी अमृत पी लिया। सूर्य और चंद्र ने राहु को पहचान लिया और ये बात विष्णु जी को बात बता दी। विष्णु जी ने राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया, लेकिन तब तक राहु अमृत पी चुका था। इसलिए वो अमर हो गया। राहु के दो हिस्से हो गए। एक हिस्से को राहु और दूसरे हिस्से को केतु कहा जाता है।