RISAT की हुई सफल लांचिंग, कितना भी खराब मौसम हो नहीं बचेंगे दुश्मन, बालाकोट जैसा ऑपरेशन होगा सफल
श्रीहरिकोटा. भारत आंतरिक स्थितियों को मजबूत करने के लिए लगातार अंतरिक्ष में नए- नए प्रयोग कर रहा है। इन सब के बीच 3.25 मिनट पर RISAT की सफल लांचिंग कर दी गई है। जिसके बाद अब भारत की सुरक्षा और विकास का नया सिपहसालार अंतरिक्ष में तैनात हो गया है। जिससे सेना को देश के दुश्मनों पर नजर रखने में मदद मिलेगी।
Asianet News Hindi | Published : Dec 11, 2019 4:17 AM IST / Updated: Dec 11 2019, 04:27 PM IST
इसरो ने इसे लांच कर नया इतिहास रचा है। जानकारी के मुताबिक यह उड़ान 75 वां लॉन्च व्हीकल मिशन है। इसके साथ ही सतीश धवन स्पेस सेंटर श्रीहरिकोटा से अंतरिक्ष की 50 वीं उड़ान है पीएसएलवी की, जबकि 37 वीं उड़ान है पहले लॉन्च पैड से। वहीं, 6 ठी उड़ान है साल 2019 की जबकि दूसरी उड़ान है PSLV-QL रॉकेट की।
सभी 10 उपग्रह पीएसएलवी-सी 48 क्यूएल रॉकेट के लॉन्च होने के करीब 21 मिनट बाद अपनी-अपनी निर्धारित कक्षाओं में स्थापित हो गए। पीएसएलवी-सी48 क्यूएल रॉकेट में चार स्ट्रैप ऑन हैं, इसलिए पीएसएलवी के आगे क्यूएल लिखा गया है। रीसैट-2बीआर1 दिन और रात दोनों समय काम करेगा। ये माइक्रोवेव फ्रिक्वेंसी पर काम करने वाला सैटेलाइट है। इसलिए इसे राडार इमेजिंग सैटेलाइट कहते हैं। यह रीसैट-2 सैटेलाइट का आधुनिक वर्जन है। इस सैटेलाइट की लाइफ 5 साल है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक रीसैट-2बीआर1 किसी भी मौसम में काम कर सकता है। साथ ही यह बादलों के पार सेभी तस्वीरें लेगा और स्थितियों के बारे में जानकारी देगा। लेकिन ये तस्वीरें वैसी नहीं होंगी जैसी कैमरे से आती हैं। देश की सेनाओं के अलावा यह कृषि, जंगल और आपदा प्रबंधन विभागों को भी मदद करेगा। आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा द्वीप पर स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से इसे लांच किया गया है।
सैटेलाइट को पीएसएलवी-सी48 क्यूएल रॉकेट के जरिए श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के लॉन्च पैड नंबर एक से अंतरिक्ष में लॉन्च किया गया। 628 किलोग्राम वजनी RiSAT-2BR1 सैटेलाइट को पृथ्वी से 576 किलोमीटर ऊपर की कक्षा में स्थापित किया गया। इसरो पीएसएलवी-सी48 क्यूएल रॉकेट के जरिए रीसैट-2बीआर1 को तो लॉन्च किया ही। साथ ही वह अमेरिका के 6, इजरायल, जापान और इटली के भी एक-एक सैटेलाइट का प्रक्षेपण भी इसी रॉकेट से किया।।
26/11 को मुंबई पर हुए आतंकी हमलों के बाद शुरुआती रीसैट सैटेलाइट की तकनीक में बदलाव किया गया था। इन्हीं हमलों के बाद इस सैटेलाइट के जरिए सीमाओं की निगरानी की गई थी। घुसपैठ पर नजर रखी गई थी। साथ ही आतंकविरोधी कामों में भी यह सैटेलाइट उपयोग में लाई जा सकेगी।