ग्लेशियर के नीचे जिंदा दबे हैं हजारों साल पुराने वायरस, अगर ये बाहर निकले, तो कोरोना से भयंकर तबाही

Published : Feb 08, 2021, 11:08 AM IST

उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर टूटने की घटना ने सबको चौंका दिया है। खासकर, पर्यावरणविदों और वैज्ञानिकों के सामने एक नई चुनौती खड़ी कर दी है कि कैसे ग्लेशियरों कों पिघलने से बचाया जा सका। यह तो आपको पता ही होगा कि बर्फ के नीचे चीजें सड़ती नहीं हैं। जीवाणु-विषाणु तो सदियों तक जिंदा दफन बने रहते हैं। अगर ये वायरस ग्लेशियर पिघलने से नदियों में मिल गए, तो दुनिया में भारी तबाही आ सकती है। यह चेतावनी लगातार वैज्ञानिक देते रहते हैं। ऐसा ही एक खुलासा 2019 मे सामने आया था। अमेरिकी वैज्ञानिकों की एक टीम तिब्बत में यह जानने पहुंची थी कि आखिर ग्लेशियर के नीचे क्या हो सकता है? जब पता चला, तो उनके पैरों तले से जमीन खिसक गई। ग्लेशियर के नीचे 15000 साल पुराने 28 प्रकार के वायरस जिंदा दफन थे, जो अगर बाहर आ जाएं, तो दुनिया में भयंकर बीमारियां फैला दें।  

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ग्लेशियर के नीचे जिंदा दबे हैं हजारों साल पुराने वायरस, अगर ये बाहर निकले, तो कोरोना से भयंकर तबाही

अमेरिकी वैज्ञानिकों की यह टीम उत्तर-पश्चिम तिब्बत पठार के विशाल ग्लेशियर पर रिसर्च को पहुंची थी। यह रिसर्च कोल्ड स्प्रिंग हार्बर लेबोरेटरी से संचालित बायो आर्काइव डाटाबेस में छपी थी। भले ही इस रिसर्च को लोग भूल चुके हों, लेकिन खतरा कम नहीं होता, क्योंकि दुनिया में लगातार ग्लेशियर पिघल रहे है।

(यह तस्वीर नासा ने 2014 में खींची थी, जिसमें ग्लेशियर पिघलते दिख रहे हैं)

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ऐसे किया था रिसर्च
शोधकर्ताओं ने  ग्लेशियर के दो टुकड़ों पर रिसर्च की थी। एक टुकड़ा 1992 में लिया गया था, जबकि दूसरा 2015 में। दोनों को ठंडे कमरे में रखा गया। एक की बाहरी परत को हटाने इथेनॉल केमिकल का इस्तेमाल किया गया। दूसरे को साफ पानी से। इसके बावजूद दोनों ही टुकड़ों में 15000 साल पुराने वायरस मिले। इसके बाद शोधकर्ताओं ने अलर्ट किया था कि अगर दुनियाभर में ग्लेशियर ऐसे ही पिघलते रहे, तो इन वायरसों से बीमारियां फैलने का खतरा बढ़ जाएगा।
 

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इस समय दुनिया कोरोन वायरस से जूझ रही है। कोरोना इसलिए इंसानों के लिए खतरनाक साबित हुआ, क्योंकि इनके बारे में किसी को पता नहीं था। यानी इनसे बचने का उपाय, दवाएं आदि। सोचिए, ग्लेशियर के नीचे कैसे वायरस हैं, उनका इलाज कैसे पता चलेगा? 2019 में एक रिसर्च आई थी, जिसमें बताया गया कि अंटार्कटिका के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। यानी यह गति 1980 की तुलना में 6 गुना अधिक है।

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तिब्बत में की गई रिसर्च के बाद शोधकर्ताओं ने बताया की आर्कटिका में समुद्री बर्फ हर गर्मियों में पूरी तरह गायब हो जाती है। अगर टेम्परेचर में 2 डिग्री की हिसाब से वृदि्ध होती गई, तो आने वाला समय खतरनाक होगा। (dw.com की रिपोर्ट से साभार)

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ग्रीनलैंड ने खतरा बढ़ाया
यह घटना 2019 की गर्मियों की है। ग्रीनलैंड में ग्लेशियर पिघलने से 600 बिलियन टन बर्फ टूटकर समुद्र में जा समाई थी। इससे पूरी दुनिया में समुद्र का जलस्तर बढ़ गया। ग्रीनलैंड डेनमार्क में अटलांटिक महासागर के बीच कनाडा आर्कटिक द्वीपसमूह के पूर्व में स्थित है। यह रिपोर्ट अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और जर्मनी के एयरोस्पेस सेंटर ने दी थी। यह अध्ययन यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया की अर्थ साइंटिस्ट इसाबेला वेलिकोना ने किया था।

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जाग जाइए...
यहां बात पश्चिम अंटाकर्टिका में एक ग्लेशियर है थ्वाइट्स(Thwaites Glacier) से जुड़ी है।
पिछले 20 वर्षों में यह ग्लेशियर तेजी से पिघल रहा है। हर साल 35 अरब टन बर्फ पिघलकर समुद्र में मिल रही है। अगर पूरा ग्लेशियर पिघलकर समुद्र में मिल गया, तो जलस्तर 65 सेंटीमीटर ऊपर आ जाएगा। बता दें कि दुनियाभर में 20वीं सदी में समुद्र का जलस्तर 19 सेंटीमीटर बढ़ गया है। अगर थ्वाइट्स पिघलता रहा, तो पूरे पश्चिम अंटार्कटिका की बर्फ टूटकर समुद्र में मिल जाएगी। यानी कुछ 100 साल में समुद्र का जलस्तर 3.3 मीटर ऊपर आ जाएगा। यानी दुनिया में भयंकर तबाही।

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