किसी ने आतंकियों से बचाई परिवार की जान तो कोई बहन के लिए हाथियों से भिड़ा, ऐसे हैं देश के बहादुर बच्चे
नई दिल्ली. 2019 में अपनी बहादुरी से लोगों की जान बचाने वाले 22 बच्चों को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार के लिए नामित किया गया है। इन लड़कों में 10 लड़कियां और 12 लड़के शामिल हैं। इनमें से एक बच्चे को मरणोपरांत अभिमन्यू पुरस्कार से भी नवाजा जाएगा। ये सभी बच्चे देश के 12 अलग-अलग राज्यों से हैं। इन बच्चों में जम्मू -कश्मीर को दो लड़के भी शामिल हैं।
केरल के रहने वाले आदित्य ने पर्यटकों से भरी एक बस में आग लगने के बाद बस का शीशा तोड़कर 40 लोगों की जान बचाई थी। आग लगने के बाद बस का ड्राइवर मौके से भाग गया था, पर आदित्य ने बहादुरी दिखाते हुए सबकी जान बचाई। उन्हें भारत पुरस्कार से नवाजा जाएगा।
मोहम्मद मुहसिन केरल के रहने वाले थे। उन्होंने अपने तीन दोस्तों को समुद्र में डूबने से बचाया था। इस कोशिश में हालांकि वो खुद समुद्र में डूब गए थे और उनकी मौत हो गई थी। उनका शव अगले दिन निकाला गया था। इन्हें मरणोपरांत अभिमन्यु अवॉर्ड से नवाजा जाएगा।
उत्तराखंड की राखी ने अपने चार साल के भाई की जान बचाने के लिए तेंदुए का सामना किया था। इस घटना में वो बुरी तरह से घायल हो गई थी। उन्हें दिल्ली के सफदरगंज अस्पताल ले जाया गया था, जहां उन्हें भर्ती करने से मना कर दिया गया था।
कर्नाटक के वेंकटेश ने बाढ़ के समय गजब का जज्बा दिखाया था। वेंकटेश ने एक एम्बुलेंस को रास्ता दिखाने के लिए पानी की धार के बीच जाकर अपनी जान भी दांव पर लगा थी। इस एन्बुलेंस में 6 बच्चे और एक महिला का शव रखा हुआ था।
बालाकोट में सेना का हेलीकॉप्टर क्रैश होने के बाद मुदासिर अशरफ ने अपनी जान की चिंता किए बजाय आग में फंसे हुए एक युवक की मदद की थी। उसने गांव को बाकी लोगों को भी मदद के लिए प्रेरित किया था। जबकि गांव के कई लोग इसका विरोध कर रहे थे।
पाकिस्तान की गोलीबारी के दौरान कुपवाड़ा के सरताज के घर में भी एक गोला आकर फटा। सरताज ने अपनी जान बचाने के लिए पहली मंजिल से छलांग लगा दी। इससे उसके पैर में चोट आ गई। तभी उसे याद आया कि उसका परिवार घर के अंदर ही फंसा है। घायल सरताज वापिस लौटा और अपने पूरे परिवार को घर से बहार ले आया। इसके बाद ही उसका पूरा घर मलबे में तब्दील हो गया।
अलाइका अपने परिवार के साथ जन्मदिन मनाने जा रही थी। पालमपुर के पास उसकी गाड़ी खाई से नीचे गिरने लगी और पेड़ के तने से लटक गई। इसके बाद अलाइका सबसे पहले होश में आई और लोगों को मदद के लिए बुलाया।
सौम्यदीप ने आतंकी हमले के दौरान अपनी मां और बहन की जान बचाई थी। इस दौरान उन्हें कई गोलियां लगी थी। घटना के बाद 6 महीने तक उन्हें अस्पताल पर भी रहना पड़ा। सौम्यदीप अभी भी व्हीलचेयर पर हैं। उन्हें वाल शक्ति पुरस्कार से नवाजा गया।
छत्तीसगढ़ की रहने वाली कांति पैकरा ने अपनी बहन को हाथियों को चंगुल से बचाया था। सरगुजा की रहनेवाली इस लड़की ने अपनी छोटी बहन के लिए खुद की जान जोखिम में डाल दी थी।
छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में रहने वाली भामेश्वरी निर्मलकर ने दो बच्चों को गांव के तालाब में डूबने से बचाया था। भामेश्वरी खुद 12 साल की हैं, पर अपनी जान की परवाह किए बिना यह मदद की थी।