
पीएम मोदी: एक सामान्य परिवार में जन्मने वाला आज देश का प्रधानमंत्री है। पीएम मोदी आज जिस मुकाम पर है उसके लिए नेतृत्व क्षमता, दूरदर्शिता, बेहतरीन संगठक और तमाम ऐसे गुण की आवश्यक हैं। नरेंद्र मोदी को पढ़ाने वाले शिक्षक उनको बचपन से ही हरफनमौला मानते रहे हैं। शिक्षकों की नजर में वह बचपन से ही एक जिज्ञासु बालक की भूमिका में रहे, पढ़ाई के अलावा भी हर काम में जिद कर बढ़चढ़कर हिस्सा लेते रहे हैं। गांव के ही बीएम हाईस्कूल में नरेंद्र मोदी को पढ़ाने वाले उनके शिक्षक प्रहलाद भाई पटेल बताते हैं कि वह हर इवेंट या स्पर्धा में पूरे जोश के साथ प्रतिभाग करते थे। वह उन दिनों की बात साझा करते हुए बताते हैं कि स्कूल में एक नाटक खेला जाने वाला था जिसमें जोगीदास खुमान की भूमिका के लिए एक दूसरे स्टूडेंट का चुना गया था लेकिन मोदी इस भूमिका के लिए जिद करने लगे। उनकी जिद के आगे शिक्षकों ने रोल बदला और मोदी को जोगीदास खुमान का रोल दिया। जब इस नाटक का मंचन हुआ तो सबसे अधिक तारीफ मोदी ने अपनी भूमिका के लिए बटोरी। हाथों में तलवार लेकर जिस शानदार ढंग से उन्होंने डॉयलाग डिलेवरी की उसका हर कोई मुरीद हो गया।
अमित शाह: केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की छवि एक दबंग राजनेता के रूप में होती है। लेकिन छात्र जीवन में यह दिग्गज नेता बेहद शरीफ और शांत स्वभाव का रहा है। अहमदाबाद में सीयू शाह साइंस कॉलेज की टीचर रहीं अनीता धोरखा, अमित शाह के साथ कॉलेज में पढ़ी भी थीं और छात्र राजनीति भी दोनों ने साथ किया था।
अनीता बताती हैं कि ‘कॉलेज में अमित भाई मुझसे एक साल जूनियर थे। सीयू शाह कॉलेज में वे दो साल रहे। अमित भाई अपनी क्लास के रिप्रेजेंटेटिव थे और मैं एलआर के रूप में। उस समय के छात्रसंघ चुनाव में कोई राजनीति नहीं थी और चुनाव केवल कॉलेज तक ही सीमित हुआ करते थे। अमित भाई की पहचान छात्र नेता की रही, लेकिन इस छवि के बावजूद उनका व्यवहार बिल्कुल सामान्य स्टूडेंट की तरह ही था। चुनाव के दौरान भी हम सभी दोस्त काफी मस्ती किया करते थे, लेकिन अमित भाई का स्वभाव हमेशा से धीर-गंभीर रहा है। छात्र राजनीति में रहते हुए भी उन्होंने कभी किसी शिक्षक के खिलाफ नहीं बोला और हमेशा उनका सम्मान किया।’
गौतम अडाणी: देश के सबसे चर्चित कारोबारी गौतम अडाणी के शिक्षक जगदीश पाठक को अपने स्टूडेंट पर गर्व है। वह बताते हैं कि वह एक ईमानदार स्टूडेंट के रूप में उनको हमेशा याद रखते हैं जो कभी होमवर्क अगर नहीं किया करता था तो बहाना बनाने की बजाय आकर खुद की बता देता था।
श्री पाठक बताते हैं कि वह साइंस स्टूडेंट होने के बाद भी भाषा की पढ़ाई को कमतर नहीं आंकता रहा। पूरी गंभीरता से पढ़ना, असाइनमेंट पूरा करना आदतों में शुमार रहा। वह बताते हैं कि आज भी वह अपने शिक्षकों को नहीं भूले हैं। जब उनके बेटे की शादी हुई तो उन्होंने अहमदाबाद के सीएन स्कूल के सभी टीचर्स को आमंत्रित किया था।
महेंद्र सिंह धोनी: भारतीय क्रिकेट के सबसे दिग्गज खिलाड़ियों में शुमार महेंद्र सिंह धोनी को शायद ही कोई न जानता हो। क्रिकेट प्रेमी तो उनके हेलीकॉप्टर शॉट के मुरीद ही रहे हैं। लेकिन कम लोग ही जानते होंगे कि धोनी को फुटबॉल खेलता देख एक गुरु ने बेहतरीन विकेटकीपर बनाने की ठानी और वह सफल भी हुए। यह कहानी शुरु होती है रांची के जवाहर विद्या मंदिर श्यामली कॉलोनी से। स्पोर्ट्स टीचर रहे केशव रंजन बनर्जी यानी धोनी के बनर्जी सर बताते हैं कि ये 1991 की बात है जब उन्होंने धोनी को पहली दफा फुटबॉल मैच खेलते देखा था। तब 8 साल के धोनी फुटबॉल में गोलकीपर थे। धोनी के डाइव मारकर बॉल पकड़ने के अंदाज के बनर्जी सर कायल हो गए। बनर्जी सर ने आठ साल के बच्चे को देख यह तत्काल तय कर लिया कि वह उसे तराश कर क्रिकेट का बेहतरीन खिलाड़ी बनाएंगे। दो साल बाद उन्हें स्कूल क्रिकेट टीम में एंट्री भी मिल गई। वह कहते हैं कि शुरुआत में धोनी फुटबॉल की तरह ही क्रिकेट की बॉल भी पकड़ा करते थे। हालांकि, एक बेहतरीन क्रिकेटर के रूप में धोनी को मकाम पर पहुंचाने में योगदान देने वाले बनर्जी सर के अनुसार धोनी बचपन से ही दमदार शॉट लगाते थे। तमाम बार स्कूल की खिड़कियों के शीशे टूट जाते थे। आजिज आकर एक दिन प्रिंसिपल ने बनर्जी सर को बुलाया और स्कूल में क्रिकेट खेल को बंद करने को कहा लेकिन उन्होंने साफ मना कर दिया और जुर्माना अपनी जेब से भरने का प्रस्ताव रख खेल को जारी रखने की पेशकश कर दी। आज दुनिया जिस धोनी को जानती है वह बनर्जी सर के जज्बे की देन है जो अपनी तनख्वाह गंवाने तक की नहीं सोचा। हालांकि, धोनी अपने गुरु को ऊंचाई पर पहुंचने के बाद भी नहीं भूले। धोनी के गुरु बताते हैं कि 2008 की बात है, धोनी देश-दुनिया में नाम कमा रहे थे। हर ओर उनकी धूम थी। उन्हें अपनी पत्नी का इमरजेंसी में अर्थाइटिस का इलाज करवाना था। सारी पहुंच और पैरवी करने के बाद भी CMC वेल्लोर में उनकी पत्नी का इलाज शुरू नहीं हो पा रहा था। 4 महीने बाद उन्हें बुलाया जा रहा था। हर जगह से थक हारकर उन्होंने अपने प्रिय शिष्य को फोन लगाया। उनके फोन रखने के 10 मिनट बाद ही CMC वेल्लोर से उन्हें फोन आ गया और उनकी पत्नी का इलाज शुरू हो गया।
नीरज चोपड़ा: टोक्यो ओलंपिक में जेवलिन थ्रो में गोल्ड जीतने वाले वंडर ब्वाय नीरज चोपड़ा के गुरु उनको लक्ष्य के प्रति बेहद संवेदनशील इंसान के रूप में याद करते हैं। नीरज हरियाणा के हैं और उनका काफी समय चंडीगढ़ में ही बीता। साल 2015-16 में डीएवी कॉलेज सेक्टर-10 में नीरज चोपड़ा ने बीए करने के लिए दाखिला लिया था। बीए पहले साल में पढ़ाई के दौरान ही वह आर्मी में भर्ती हो गए थे। डीएवी कॉलेज में नीरज के टीचर रहे कॉलेज के डायरेक्टर रविंदर चौधरी बताते हैं कि वह कॉलेज में जब आया तो एक सामान्य स्टूडेंट की तरह ही था लेकिन वह बिल्कुल ही फोकस्ड था। हमेशा डाउन टु अर्थ रहता था। वह अपने काम पर पूरा फोकस बनाए रखता था। सोशल मीडिया से पूरी तरह दूर रहना, मोबाइल का भी इस्तेमाल न करना आज के युवाओं में उसे अलग बनाता है।
अक्षय कुमार: फिल्म स्टार अक्षय कुमार को उनके शिक्षक या दोस्त उनके असली नाम राजीव भाटिया के नाम से जानते और पुकारते हैं। मुंबई के माटुंगा डॉन बॉस्को स्कूल और यहीं के खालसा कॉलेज में पढ़े अक्षय को उनके शिक्षक एक मिलनसार और खुशदिल स्टूडेंट के रूप में याद करते हैं। अक्षय के टीचर रहे सुधाकर तेली कहत हैं कि उन्होंने राजीव को 12वीं में हिंदी पढ़ाया। मैं उन्हें राजीव कहकर ही बुलाता था। राजीव का अर्थ 'कमल' होता है। उनके शिक्षक गर्व से कहते हैं कि वह राजीव यानी कमल की तरह खिला भी। वह कहते हैं कि राजीव अपने कॉलेज में भी दोस्तों को एक्सरसाइज के स्टेप्स सिखाता रहता था।
शाहरूख खान: फिल्म जगत में शाहरूख खान ने अपने अभिनय का लोहा मनवाया लेकिन उनके शिक्षक उनको दूसरे रूप में ही याद करते हैं। किंग खान के नाम से अपने चहेतों में मशहूर शाहरूख को उनके शिक्षक एक बेहतरीन किस्सागो मानते हैं। दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया से मास कम्युनिकेशन करते वक्त शाहरुख के प्रोफेसर रहे फरहत बसीर खान कहते हैं कि शाहरुख हर काम को अलग तरीके से किया करते थे, उनके जैसा स्टूडेंट मैंने पहली बार देखा था। वो बहुत अच्छे स्टोरीटेलर थे। जिन चीजों को लोग नजरअंदाज कर दिया करते थे, शाहरुख उन्हें भी बेहद सुंदर तरीके से लोगों के सामने पेश किया करते थे।