कोरोना ने छीना माता-पिता का रोजगार, दो वक्त की रोटी के लिए तरस रहा इस युवा एथलीट का परिवार

स्पोर्ट्स डेस्क। कोरोना वायरस महामारी के चलते लगे लॉकडाउन की वजह से काफी लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। पिछले साल टाटा स्टील भुवनेश्वर के हाफ मैराथन में  21.097 किमी में 1:33:05 के साथ दूसरे स्थान पर रहने वाली 24 साल की एथलीट प्राजक्ता गोडबोले को बहुत ही मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है। लॉकडाउन की वजह से उनकी मां बेरोजगार हो गई हैं, वहीं उनके पिता कुछ समय पहले लकवाग्रस्त हो गए थे। नागपुर के सिरासपेठ झु्गगी में रहने वाली प्राजक्ता का परिवार एक तरह से कोरोना के संकट के दौरान भुखमरी का सामना कर रहा है। लंबी दूरी की धावक प्राजक्ता गोडबोले का कहना है कि उन्हें नहीं पता कि अगले शाम के भोजन का प्रबंध कहां से होगा। 

Asianet News Hindi | Published : May 14, 2020 7:05 AM IST
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कोरोना ने छीना माता-पिता का रोजगार, दो वक्त की रोटी के लिए तरस रहा इस युवा एथलीट का परिवार

इटली में किया था भारतीय विश्वविद्यालयों का प्रतिनिधित्व
प्रजाक्ता गोडबोले ने 2019 में इटली में हुए वर्ल्ड यूनिवर्सिटीज स्पोर्ट्स कॉम्पिटीशन में 5000 मीटर के रेस में भारतीय विश्वविद्यालयों का प्रतिनिधित्व किया था। उस प्रतियोगिता में उन्होंने 18:23:92 का समय निकाला था, लेकिन फाइनल दौर के मुकाबले के लिए क्वालिफाई नहीं कर पाई थीं। बहरहाल, वे देश की उभरती एथलीट्स में प्रमुख स्थान रखती हैं और उनसे भारतीय खेल जगत को काफी उम्मीदें हैं।
 

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पिता थे सुरक्षाकर्मी
प्राजक्ता के पिता विलास गोडबोले एक सुरक्षाकर्मी के तौर पर काम करते थे, लेकिन एक दुर्घटना के बाद लकवाग्रस्त हो जाने के कारण वे बिस्तर पर पड़ गए। उनके इलाज में भी काफी पैसा खर्च हुआ और घर की सारी बचत लग गई। 

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मां पर है घर चलाने का दारोमदार
पिता के लकवाग्रस्त हो जाने के बाद घर चलाने का दारोमदार मां पर आ गया। प्राजक्ता की मां अरुणा ने रसोइए का काम करना शुरू कर दिया। वह विवाह सामरोहों और दूसरी पार्टियों में कैटरिंग वालों के साथ जुड़ कर काम करने लगीं। इससे उन्हें 5000-6000 रुपए महीने तक कमाई हो जाती थी। लेकिन लॉकडाउन लग जाने के कारण यह काम भी बंद हो गया। इससे परिवार के सामने भुखमरी की नौबत आ चुकी है। 
 

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मदद के लिए दूसरों पर निर्भर
प्राजक्ता का कहना है कि लॉकडाउन में आमदनी का कोई जरिया नहीं रह जाने के कारण उनका परिवार दूसरों की मदद पर निर्भर हो गया है। कुछ लोग चावल, दाल और दूसरी चीजें दे जाते हैं तो काम किसी तरह से चलता है, लेकिन ऐसा कब तक चल सकेगा, यह समझ में नहीं आ रहा। प्राजक्ता ने कहा कि इन हालात में मैं ट्रेनिंग के बारे में सोच भी नहीं सकती। यहां तो जिंदा रह पाना भी मुश्किल हो रहा है। प्राजक्ता ने कहा कि लॉकडाउन ने हमें बर्बाद कर दिया है। हमें यह पता नहीं कि क्या करें। हम किसी से मदद नहीं मांग रहे, बस लॉकडाउन के खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं। प्राजक्ता ने कहा कि उन्होंने जिला या राज्य स्तर किसी भी एथलेटिक्स अधिकारी से मदद नहीं मांगी है। 
 

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