इतनी मुश्किल होती है एक एथलीट की जिंदगी, ना खाने को मिलती है फेवरेट चीज ना अपनों से बात करने का होता है समय

स्पोर्ट्स डेस्क : कहते हैं एक खिलाड़ी की जिंदगी संघर्षों से भरी हुई रहती है। यह उस खिलाड़ी की मेहनत ही होती है जो उसे ओलंपिक खेलों तक ले जाती है। कई बार हमें अपनी मेहनत का फल मिलता है तो कई बार निराशा हाथ लगती है, लेकिन एक एथलीट की जिंदगी कितनी मुश्किलों से भरी होती है इसका अंदाजा लगा पाना भी शायद आम इंसान के बस की बात नहीं है। सालों की कड़ी मेहनत अपनों से दूर रहना और ना जाने क्या कुछ एक एथलीट को ओलंपिक के मंच तक पहुंचने के लिए बहुत कुछ त्यागना पड़ता है। कुछ ऐसे ही त्याग की भावना भारतीय शटलर पीवी सिंधु (PV Sindhu) ने दिखाई है। रियो ओलंपिक 2016 में सिल्वर मेडल जीतकर उन्होंने इतिहास रचा लेकिन इस बार टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympics 2020) में वह अपने सिल्वर को गोल्ड में तब्दील करना चाहती हैं। आइए आज हम आपको बताते हैं कि सिंधु ने कितने संघर्ष और त्याग के साथ अपने जीवन को सफल बनाया...

Asianet News Hindi | Published : Jul 28, 2021 1:01 AM IST / Updated: Jul 28 2021, 08:48 AM IST
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इतनी मुश्किल होती है एक एथलीट की जिंदगी, ना खाने को मिलती है फेवरेट चीज ना अपनों से बात करने का होता है समय

कहते हैं हर कामयाब आदमी के पीछे एक औरत का हाथ होता है, लेकिन इससे उलट कई बार एक सक्सेसफुल वीमेन के पीछे एक आदमी का हाथ भी होता है। जरूरी नहीं कि वह आदमी आपका हमसफर ही हो, वह आपका कोच, मेंटर या कोई भी हो सकता है। 

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रियो ओलंपिक 2016 में सिल्वर मेडल जीतने वाली पीवी सिंधु की जिंदगी में भी उन्हें कामयाब बनाने में उनके कोच पुलेला गोपीचंद की एक अहम भूमिका रही है। वह ना सिर्फ उन्हें बेहतरीन ट्रेनिंग देते हैं बल्कि 1 पेरेंट की तरह उनका ख्याल रखते हैं।

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एक इंटरव्यू के दौरान पीवी सिंधु ने बताया था कि रियो ओलंपिक में जाने से पहले 3 महीने तक उनके पास मोबाइल नहीं था। वह किसी से बात कर पाती थी और ना किसी से मिल पाती थी सिर्फ और सिर्फ उनका फोकस उनके खेल पर था। सिंधु के कोच ने भी बताया था कि उन्होंने कड़ी मेहनत कर ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीता और इसके बाद ही कोच ने उन्हें उनका फोन वापस किया।

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पीवी सिंधु के कोच पुलेला गोपीचंद बताते हैं कि वह सिंधु की हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी चीज का ख्याल रखते हैं। उनकी फिटनेस से लेकर उनके खाने-पीने तक। सिंधु का वजन ना बढ़े इसके लिए वह सिंधु की प्लेट से खाना तक निकाल कर बाहर कर देते थे ताकि वह फिट रह सकें।

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गोपीचंद अपनी अकेडमी में हर चीज का बहुत ध्यान रखते हैं। एथलीट्स के खेल से लेकर उनके खाने-पीने तक उनके अकेडमी में ब्रेड और शुगर पूरी तरह से बैन है। इतना ही नहीं कार्बोहाइड्रेट्स बढ़ाने वाले प्रोडक्ट भी वह एथलीट की थाली से दूर रखते हैं। वह बताते हैं कि सिंधु पर चॉकलेट और हैदराबादी बिरयानी खाने पर भी पाबंदी लगा दिया गया था।

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हालांकि रियो ओलंपिक 2016 में सिल्वर मेडल जीतने के बाद सिंधु ने सबसे पहले आइसक्रीम खाने की इच्छा जताई थी। जिसे पूरा करते हुए गोपीचंद ने कहा था कि सिंधु को पूरी छूट है वह जीत के बाद जो चाहे वह खा सकती हैं।

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पीवी सिंधु की सक्सेस के पीछे उनकी कोच का बहुत बड़ा हाथ रहा है। इस बात को सिंधु के पिता भी स्वीकार कर चुके हैं कि गोपीचंद ने उनकी बेटी के बराबर मेहनत की है।

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आपको बता दें कि गोपीचंद को अपनी बैडमिंटन अकेडमी शुरू करने के लिए अपने घर तक को गिरवी रखना पड़ा था। दरअसल, आंध्र प्रदेश सरकार ने गोपीचंद को अकेडमी बनाने के लिए जमीन तो दी थी, लेकिन प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। ऐसे में उन्होंने अपने और एथलीट्स का सपना पूरा करने के लिए अपने घर को तक गिरवी रख दिया था।

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अब एक बार फिर भारत को शटलर पीवी सिंधु से पदक की उम्मीद है। टोक्यो ओलंपिक 2020 में पीवी सिंधु बेहतरीन फॉर्म में चल रही है। अपना पहला मुकाबला उन्होंने आसानी से जीत लिया था। अब उनका लक्ष्य अपने देश के लिए गोल्ड लाने का है। 

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