पति की जान बचाने 28 घंटे तक ठेला चलाते हुए 64 किमी दूर हॉस्पिटल पहुंचकर ली राहत की सांस

राजकोट, गुजरात. यह तस्वीर लॉकडाउन में सरकारी व्यवस्थाओं की हकीकत बयां करती है। जिन गरीबों के पास खाने के पैसे न हो, वे एम्बुलेंस का खर्चा कहां से उठा पाएंगे? यह महिला अपने पति का इलाज कराने हाथ ठेले पर हॉस्पिटल पहुंची। दूरी भी कुछ कम नहीं थी, पूरे 64 किमी दूर वे थकी-हारी..लेकिन ठेला चलाती रही। उसे यह दूरी तय करने में करीब 28 घंटे लगे। यह हैं मोरबी के पुराने पावर हाउस के करीब पेपर मिल के पास रहने वाले सुरेश कुमार। करीब 3 महीने पहले इनके पैर में कांच घुस गया था। डॉक्टर न सर्जरी करके प्लास्टर चढ़ा दिया था। महीने में दो बार उन्हें राजकोट के हास्पिटल ले जाना पड़ता था। लेकिन लॉकडाउन के दौरान वे हास्पिटल नहीं जा सके, तो हालत खराब हो गई।
 

Asianet News Hindi | Published : Apr 22, 2020 7:55 AM IST / Updated: Apr 22 2020, 01:30 PM IST
15
पति की जान बचाने 28 घंटे तक ठेला चलाते हुए 64 किमी दूर हॉस्पिटल पहुंचकर ली राहत की सांस

सुरेश की पत्नी मुन्नी ने बताया कि एम्बुलेंस वाले 3-4 हजार रुपए मांग रहे थे। उनके पास खाने को पैसे नहीं, इतने पैसे कहां से लाते? लिहाजा, उन्होंने एक सब्जीवाले से ठेला लिया और पति को उस पर बैठाकर हॉस्पिटल ले आई। मुन्नी ने बताया कि रास्ते में बहुत सारे लोग मिले। पूछताछ की, लेकिन किसी से मदद नहीं की। हालांकि मुन्नी को राहत है कि वे आखिरकार हॉस्पिटल पहुंच ही गईं।

(आगे पढ़िए कैसे पैदल चलते हुए दुनिया से चली गई एक बच्ची..)

25

यह मामला छत्तीसगढ़ के बीजापुर से जुड़ा हुआ है। एक गरीब और लाचार परिवार को लॉकडाउन की कीमत अपनी इकलौती 12 साल की बेटी को खोकर चुकाना पड़ी। यह मजदूर बच्ची तेलंगाना के पेरूर गांव से पैदल अपने गांव के लिए निकली थी। बच्ची बीजापुर जिले के आदेड़ गांव की रहने वाली थी। लॉकडाउन में काम-धंधा बंद हो जाने पर यह बच्ची गांव के ही 11 दूसरे अन्य लोगों के साथ घर को लौट रही थी। ये लोग 3 दिनों में करीब 100 किमी चल चुके थे। इस दौरान बच्ची ने कई बार कहा कि उसका पेट दु:ख रहा है। साथ चल रहे लोगों ने सोचा कि पैदल चलने से ऐसा हो रहा होगा। वे बच्ची को दिलासा देते रहे..कभी प्यार से हाथ फेरते रहे और कहते रहे कि बस घर आने ही वाला है। सचमुच घर नजदीक आ चुका था। लेकिन घर से 14 किमी पहले बच्ची ऐसी गिरी कि फिर उठ न सकी। 

35

यह तस्वीर मप्र के अशोकनगर की है। यह हैं भगवंत सिंह। 5 साल पहले ट्रेन हादसे में इनका पैर कट गया था। परिवार में पत्नी, बेटा-बहू और दो पोती हैं। बेटा-बहू होटल में काम करते हैं, लेकिन लॉकडाउन के कारण कामकाज बंद होने से इन्हें राशन के लिए भटकना पड़ रहा है। 

आगे देखिए मजबूर मजदूरों से जुड़ीं कुछ तस्वीरें...

45

यह तस्वीर पश्चिम बंगाल की है। अपनी छोटी-सी दुकान पर उदास बैठा दुकानदार। कुछ बिके, तो उसके खाने का इंतजाम हो।

55

यह तस्वीर गुरुग्राम की है। इन मासूमों को नहीं मालूम कि कोरोना क्या है, लॉकडाउन का क्या मतलब होता है..उन्हें तो बस यह समझ आ रहा है कि पेट भरना है, तो लाइन में लगना पड़ेगा।

Share this Photo Gallery
click me!

Latest Videos

Recommended Photos