कोरोना में सिर्फ मुकेश अंबानी नहीं, 26 साल की यह लेडी भी बन गई करोड़पति, जानें सक्सेस कहानी

दिल्ली. कोरोना काल में हजारों लोगों के बिजनेस डूब गए। लोग काम-धंधा बंद होने से रोजी-रोटी को परेशान हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं, जिन्होंने ऐसे कठिन समय में भी अपना धैर्य नहीं खोया। अपने हुनर और आइडियाज के बूते मिसाल कायम की। पिछले दिनों एक खबर मीडिया की चर्चा में रही कि जब कोरोना में अच्छे-खासों का कारोबार डूब गया, मुकेश अंबानी पिछले 6 महीने से हर घंटे 90 करोड़ रुपए कमा रहे हैं। हुरुन इंडिया रिच लिस्ट 2020 (Hurun India Rich list) के अनुसार अंबानी के अलावा और भी कई बिजनेसमैन इस दौर में भी सफल रहे। ऐसा ही एक उदाहरण बनीं 26 साल की वंशिका चौधरी। पेशे से फैशन डिजाइनर वंशिका 'कन्या' नाम का ब्रांड चलाती हैं। कोरोना काल में उन्होंने 200 से ज्यादा अस्पतालों को 6 लाख से अधिक पीपीई किट(Personal Protective Equipment kit) बेचीं। उनकी कंपनी इतने ही होटल्स, स्कूल और रेस्टोरेंट्स को यूनिफॉर्म बनाकर देती है। इस तरह उनकी कंपनी का सालाना टर्न ओवर करीब 5 करोड़ रुपए है। यानी कोरोना काल में भी उनकी कंपनी ने अच्छी कमाई की। पढ़िए वंशिका की सक्सेस कहानी...

Asianet News Hindi | Published : Oct 1, 2020 8:38 AM IST / Updated: Oct 01 2020, 02:12 PM IST

110
कोरोना में सिर्फ मुकेश अंबानी नहीं, 26 साल की यह लेडी भी बन गई करोड़पति, जानें सक्सेस कहानी

26 साल की वंशिका दिल्ली की रहने वाली हैं। हालांकि पिछले साल ही वे मुंबई शिफ्ट हुई हैं। दिल्ली में पढ़ाई करने के बाद वंशिका ने सिंगापुर से फैशन डिजाइनिंग में ग्रेजुएशन किया है। वंशिका को ग्रेजुएशन के अंतिम वर्ष में एक ब्रांड और बिजनेस मॉडल तैयार करने का प्रोजेक्ट मिला था। वंशिका ने अपने ब्रांड का नाम कन्या रखा। इस दौरान उन्हें काफी कुछ सीखने को मिला। तभी उन्होंने तय कर लिया था कि वे अपने इसी ब्रांड को आगे बढ़ाएंगी।  आगे पढ़ें वंशिका की ही कहानी...

210

वंशिका के पति अभिजीत काजी ने स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से एमबीए किया है। अब वे अपनी पत्नी का ब्रांड संभालते हैं। वंशिका 2015 में ग्रेजुएशन पूरा करके सिंगापुर से दिल्ली आ गई थीं। वर्ष, 2017 में कन्या ब्रांड को रजिस्टर्ड कराया। इसके बाद वेबसाइट आदि पर करीब 1 लाख रुपए खर्च किया। वंशिका ने रिसर्च के दौरान पाया कि वर्किंग वुमेन के लिए ड्रेस के विकल्प कम हैं। बस फिर क्या था..वंशिका ने कम लागत और अच्छी क्वालिटी की ड्रेस तैयार करना शुरू कीं। इन्हें पहनना भी आरामदायक था। कुछ ड्रेस लांच कीं। इसके बाद उनकी डिमांड बढ़ती गई। आगे पढ़ें वंशिका की ही कहानी...
 

310

वंशिका बताती हैं कोरोना के कारण उनके ऑर्डर कैंसल होने लगे थे। इसी दौरान उन्हें पीपीई किट बनाने का विचार आया। हालांकि यह आइडिया उनके दिमाग में तभी आ गया था, जब चीन में कोरोना को लेकर चर्चा शुरू हो गई थी। वंशिका का ब्रांड 400-600 रुपए कीमत में पीपीई किट उपलब्ध करा रहा है। 


 आगे पढ़ें-बेरोजगारों में यह खबर जोश भर देगी, भाभी-ननद ने 12 साल पहले शुरू की एक योजना और आज करोड़पति हैं

410

जबलपुर, मध्य प्रदेश. वंदना अग्रवाल और उनकी ननद डॉ. मोनिका अग्रवाल ने 12 साल के अंदर अपना काम-धंधा ऐसा जमाया कि आज इनका सालाना टर्न ओवर करीब 2 करोड़ रुपए है। भाभी-ननद मिलकर डेयरी चलाती हैं। उनकी डेयरी टोटली हाईटेक है। डिलीवरी, पेमेंट से लेकर मेंटेनेंस तक सभी हाईटेक है। ये 400 घरों तक दूध और पनीर, खोया आदि की डिमांड पूरी करती हैं। 44 वर्षीय वंदना एनवायरमेंटल साइंस से मास्टर्स हैं। वहीं, 36 वर्षीय मोनिका वेटनरी डॉक्टर। 

बात 2008 की है। वंदना के बेटे की तबीयत खराब हुई। डॉक्टर ने दूध पिलाने को कहा। लेकिन यह भी हिदायत दी कि बाहर के मिलावटी या दूषित दूध से बचना है। लिहाजा उनके भाई ने एक भैंस खरीद ली। यही से उनके दिमाग में डेयरी डालने का आइडिया आया। आज इनके पास 200 से ज्यादा भैसें हैं। वहीं, 10-12 गायें। इनकी डेयरी से 25 लोगों को रोजगार भी मिला है। इन्होंने 24K milk नाम से एक ऐप भी बनाया है। इसके जरिये आप ऑनलाइन प्रोडक्ट्स मंगा सकते हैं।

आगे पढ़ें...मजदूरी करके घर चलाती थी यह महिला, 3 साल पहले 4000 की एक मशीन ने बदल दी किस्मत

510

पटियाला, पंजाब. एक छोटे से गांव मवी सपां की रहने वालीं शिंदरपाल कौर की कहानी उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है, जो बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहे हैं। कभी मजदूरी और सिलाई-कढ़ाई करके अपने परिवार का पेट पालने वालीं शिदरपाल आज 30 से ज्यादा महिलाओं के रोजगार का जरिया बन गई हैं। ये महिला कभी दिन में 100-200 रुपए से ज्यादा नहीं कमा पाती थी, आज हर 10 दिनों में 60000 रुपए का मुनाफ कमा रही है। दो बच्चों की मां शिंदरपाल की सक्सेस स्टोरी शुरू होती है तीन साल पहले से, जब उन्होंन बैंक से 4000 रुपए का लोन लिया था। वे माता गुजरी सेल्फ हेल्प ग्रुप से जुड़ गई थीं। इसके बाद उन्होंने चारा काटने की मशीन खरीदी। यह काम उनका ठीकठाक चला। इसके बाद उन्होंने एक सेकंड हेंड थ्री व्हीलर खरीदी। वे और कुछ बेहतर करना चाहती थीं। इन सब कामों के अलावा उन्होंने फुलकारी और खिलौने बनाने की ट्रेनिंग ली। आगे पढ़ें इसी सक्सेस स्टोरी के बारे में...

610

शिंदरपाल बताती हैं कि वे फुलकारी काम और खिलौनों को लेकर मेलों में जाने लगीं। उनका यह काम लोगों को पसंद आया। इससे उनकी अच्छी-खासी कमाई होने लगी। शिंदरपाल ने पैसे बचाए और एक छोटा-सा खेत खरीदा। इसे उन्होंने खेतीबाड़ी के लिए किराये पर दे दिया। आगे पढ़ें इसी सक्सेस स्टोरी के बारे में...

710

काम-धंधे के बीच शिंदरपाल ने होटल मैनेजमेंट की ट्रेनिंग भी ले ली। उन्हें सरकारी मीटिंगों में खाना उपलब्ध कराने का काम मिलने लगा। हाल में पटियाला में हुए हेरिटेज फेस्टिबल में उन्होंने 2 लाख रुपए से ज्यादा की कमाई की। यह उनके लिए उत्साह बढ़ाने वाला हुआ। आगे पढ़ें इसी सक्सेस स्टोरी के बारे में...

810

 शिंदरपाल उन महिलाओं में शुमार हैं, जिन्होंने रुकना नहीं सीखा। काम-धंधे के बीच उन्होंने 10वीं पास की। इस कामयाबी को देखते हुए उन्हें राज्यस्तरीय बैंकर्स कमेटी को संबोधित करने का अवसर मिला। शिंदरपाल अपने गांव में अब सुच्चा मोती महिला ग्राम संगठन नाम का समूह चलाती हैं। इससे 31 महिलाएं जुड़ी हैं।

आगे पढ़ें -फटेहाल थी जिंदगी, फिर इस लेडी को आया एक आइडिया और अब कमाने लगी खूब

910

फिरोजपुर, पंजाब. यह हैं संतोष रानी। ये गुरुहरसहाय क्षेत्र के गांव मोहन के उताड़ में रहती हैं। संतोष ने लोन लेकर कमर्शियल वाहन खरीदा। अब ये लोडिंग-अनलोडिंग का काम करके इतना कमा रही हैं कि परिवार मजे की जिंदगी गुजार रहा है। संतोष रानी ने एक एनजीओ की मदद से आजीविका ग्रामीण एक्सप्रेस योजना के तहत 5.20 लाख रुपए का लोन लेकर लोडिंग ऑटो खरीदा। अब वे और उनके पति मुख्तयार सब्जी और अन्य तरह के मटेरियल की लोडिंग-अनलोडिंग करते हैं। इससे उनकी इतनी कमाई हो जाती है कि बच्चे स्कूल में ठीक से पढ़ने लगे हैं। घर का खर्च भी आसानी से उठ जाता है। आगे पढ़िए आत्मनिर्भर किसानों की कहानियां...

1010

रांची, झारखंड. यह कहानी झारखंड के रांची जिले के देवडी गांव है। इसे लोग एलोवेरा विलेज के रूप में जानते हैं। यहां 2 साल पहले तक गांववाले रोटी-रोटी को मोहताज थे। फिर बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की एक एक परियोजना के तहत लोगों को एलोवेरा की खेती करने को प्रोत्साहित किया गया। बता दें कि एलोवेरा का एक पौधा 15-30 रुपए तक में बिकता है। इस गांव में अब आयुर्वेद और कास्मेटिक बनाने वालीं कई बड़ी कंपनियां आने लगी हैं। कोरोना काल में सैनिटाइजर की काफी डिमांड बढ़ी है। 

Share this Photo Gallery
click me!
Recommended Photos