गुरिल्ला युद्ध और लगातार 7 दिनों तक लड़ाई...नक्सलियों ने जिस कोबरा जवान को पकड़ा है उसकी ऐसी है ट्रेनिंग

छत्तीसगढ़ के बीजापुर में नक्सली हमले के दौरान लापता जवान राकेश्वर सिंह नक्सलियों के कब्जे में है। नक्सलियों ने उनकी एक फोटो जारी की है, जिसमें वे नक्सलियों के कैंप में बैठे नजर आ रहे हैं। राकेश्वर सिंह कोबरा बटालियन के हैं, जिन्हें जंगल में लड़ने के लिए खास ट्रेनिंग दी जाती है। कोबरा जवान 7 दिनों तक लगातार जंगल में लड़ सकते हैं। इन्हें जंगल वॉरियर्स भी कहा जाता है।

Asianet News Hindi | Published : Apr 7, 2021 9:54 AM IST / Updated: Apr 07 2021, 03:25 PM IST

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गुरिल्ला युद्ध और लगातार 7 दिनों तक लड़ाई...नक्सलियों ने जिस कोबरा जवान को पकड़ा है उसकी ऐसी है ट्रेनिंग

COBRA जवानों को गुरिल्ला रणनीति सिखाई जाती है
COBRA भारत की केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) की एक स्पेशल ऑपरेशन यूनिट है, जो गुरिल्ला रणनीति और जंगल में युद्ध के एक्सपर्ट होते हैं। मूल रूप से नक्सली समस्या का सामना करने के लिए स्थापित COBRA को विद्रोही समूहों का सामना करने के लिए तैनात किया गया है।
 

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2009 में गृह मंत्रालय ने 10 COBRA (कमांडो बटालियन फॉर रेसोल्यूट एक्शन) को नक्सलियों द्वारा उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने के लिए मंजूरी दे दी। इन्हें नक्सली विद्रोहियों पर हमला करने के लिए तैयार किया गया।
 

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मल्टी टास्किंग स्किल ऑपरेशंस के लिए रहते हैं तैयार
COBRA बटालियन को खतरनाक इलाकों में मल्टी टास्किंग स्किल ऑपरेशंस के लिए तैयार किया जाता है। कोबरा के जवानों को गुरिल्ला युद्ध, फील्ड इंजीनियरिंग, विस्फोटकों की ट्रैकिंग, जंगल में विद्रोहियों से लड़ने का तरीका, सबके बारे में ट्रेनिंग दी जाती है।
 

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2021 में 88 महिला बटालियन का भी गठन किया गया
कोबरा कमांडो आशीष कुमार तिवारी को माओवादियों के एक ग्रुप को मार गिराने के लिए शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया। मार्च 2021 में 88 महिला (महिला) बटालियन का गठन किया गया था। इस टीम में सिर्फ महिलाओं को रखा गया। 
 

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कितनी घातक होती है कोबरा जवानों की ट्रेनिंग?
कोबरा जवानों को बेलगाम और कोरापुट के जंगलों में ट्रेनिंग दी जाती है। उनकी ट्रेनिंग एनएसजी कमांडोज जैसी होती है। उन्हें जंगल में युद्ध लड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार किया जाता है। सर्चिंग, लंबी दूरी तक गश्त, विद्रोहियों के ठिकानों की खुफिया जानकारी इकट्ठा करना और जरूरत पड़ने पर घात और सटीक हमले करना सिखाया जाता है। बेलगाम या कोरापुट में तीन महीने की ट्रेनिंग के बाद कोबरा जवानों को नक्सली गतिविधियों का मुकाबला करने के लिए उनकी यूनिट में तैनात किया जाता है।
 

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कोबरा के जवान 7 दिनों तक लगातार लड़ सकते हैं
कोबरा जवानों को लगातार 7 दिन तक जंगल में लड़ने की ट्रेनिंग दी जाती है। खुखरी की तर्ज पर कोबरा कमांडो मैशे चाकू लिए होते हैं। जीपीएस के अलावा रात में देखने के लिए खास चश्मा भी होता है। 
 

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खाना न मिलने पर जंगली वनस्पतियों से चलाते हैं काम
कोबरा जवानों को जंगल में ही लड़ाई लड़नी होती है इसलिए इन्हें ऐसी ट्रैनिंग दी जाती है, जिससे अगर खाना नहीं भी होता है तो वे कई जंगली वनस्पतियों को खाकर अपनी भूख मिटा सकते हैं। 
 

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