स्थापना दिवस: अटलजी ने दिया था 'भारतीय जनता पार्टी' नाम, जानें कैसे 2 सीटों से 303 पर पहुंची BJP

नई दिल्ली. भारतीय जनता पार्टी (BJP) आज अपना 41वां स्थापना दिवस मना रही है। 6 अप्रैल, 1980 को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता में जनसंघ से निकले लोगों ने बीजेपी बनाई। वाजपेयी और लंबे अरसे तक पार्टी में उनकी परछाई बनकर रहे पूर्व उप-प्रधानमंत्री लालकृष्‍ण आडवाणी ने मिलकर पार्टी को 1984 में दो सीट से 1998 में 182 सीटों तक ला खड़ा कर दिया था। हिंदुत्व और राम जन्मभूमि के एजेंडे पर आगे बढ़ी बीजेपी ने 2014 में अपने दम पर पूर्ण बहुमत का स्वाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चखा। 2014 में बीजेपी ने 282 सीटों पर जीत दर्ज की थी तो वहीं 2019 में उसकी सीटों का आंकड़ा 300 पार चला गया था।

Asianet News Hindi | Published : Apr 6, 2021 6:13 AM IST / Updated: Apr 06 2021, 12:02 PM IST

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स्थापना दिवस: अटलजी ने दिया था 'भारतीय जनता पार्टी' नाम, जानें कैसे 2 सीटों से 303 पर पहुंची BJP

आडवाणी ने अपनी आत्‍मकथा 'मेरा देश, मेरा जीवन' (प्रभात प्रकाशन) में बीजेपी के अस्तित्‍व में आने पर एक पूरा चैप्‍टर लिखा है। 'कमल का खिलना, भारतीय जनता पार्टी का जन्‍म' चैप्‍टर में आडवाणी बताते हैं कि किस तरह जनसंघ के टुकड़े हुए और बीजेपी बनी।

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अपनी किताब में आडवाणी ने लिखा है कि 'एक विषय जिसने पूरा राजनीतिक जीवन में मुझे चकित किया है, वह है भारतीय मतदाता चुनावों में अपनी पंसद का निर्धारण कैसे करते हैं? कई बार उनके रुझान का अनुमान लगाया जा सकता है, लेकिन ज्यादातर नहीं। भारतीय मतदाताओं के विशाल विविधता के चलते सामान्यत चुनाव के परिणामों का पूर्वानुमान लगाना असंभव होता है। हालांकि, कई बार ऐसा भी होता है कि मतदाताओं का सामूहिक व्यवहार किसी एक भावना संचालित होता दिखता है और इससे उनकी पसंद का अनुमान लगाया जा सकता है। औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त न करने के बावजूद एक अनुभवी राजनीतिक कार्यकर्ता अक्सर यह भविष्यवाणी कर सकता है कि चुनावी हवा किस ओर बह रही है।'

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आडवाणी बताते हैं कि 'उन्होंने ऐसा साल 1977 के आम चुनावों से पहले किया था, जो आपातकाल के बाद हुए थे और उन्होंने दोबारा ऐसा ही 1980 की शुरुआत में की थी। जब छटी लोकसभा भंग होने के बाद मध्यावधि चुनाव हुए थे। वो जानते थे कि राजनीतिक पार्टी का सफाया हो जाएगा और इंदिरा गांधी दोबारा सत्ता में लौटेंगी। इसका कारण साफ था। यदि आपातकाल के विरुद्ध रोष का भावना ने 1977 में जनता पार्टी को सत्ता दिलाई तो एक अन्य सामूहिक आपसी झगड़ों के कारण जनता पार्टी की सरकार गिरने से उत्पन्न हुई निराशा ने लोगों के भ्रम को तोड़ दिया और इस बार यह मतदाताओं के व्यवहार को प्रभावित करने वाली थी।'

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पूर्व उप-प्रधानमंत्री ने अपनी आत्मकथा में लिखा कि 'जमता पार्टी की भारी पराजय ने मुझे मतदाताओं के व्यवहार के एक अन्य पहले के बारे में भी परिचित करवाया। जब मतादाता एक पथभ्रष्ट राजनीतिक दल को सबक सिखाना चाहते हैं तो अक्सर उश दल के विरुद्ध आक्रोश के कारण। 1980 में हमने यह भी सीखा कि गहरा मोहभंग भी हमें उस पार्टी को सजा देने के लिए उकसा सकता है, जो सकी आशाओं पर खरा नहीं उतरती। 

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'चुनावी पराजय ने जनता पार्टी के भीतर दोहरी सदस्यता के विवाद को और गहरा दिया था, जो संसदीय चुनावों तक प्रभावी रहा। 25 फरवरी, 1980 को जगजीवन राम ने पार्टी अध्यक्ष चंद्रशेखर को एक पत्र लिखकर इस मुद्दे पर चर्चा की मांग की। हार के पूरा दोष उन लोगों पर मढ़ने की कोशिश की गई, जो जनसंघ से जुड़े हुए थे और इस बात पर अडिग थे कि वे संघ से अपने संबंध नहीं तोड़ेंगे।'
 

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आडवाणी उन परिस्थितियों के बारे में बताते हैं जिनसे बीजेपी का जन्‍म हुआ। वो लिखते हैं कि 'जनता पार्टी के भीतर संघ विरोधी अभियान ने 1980 के लोकसभा चुनावों में कार्यकर्ताओं के उत्साह को ठंडा कर दिया था। इससे स्पष्ट रूप से कांग्रेस को लाभ हुआ और चुनावों में इसने जनता पार्टी के प्रदर्शन को गिराने की कोशिश की। 4 अप्रैल को जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की एक अहम बैठक नई दिल्ली में निश्चित की गई, जिसमें दोहरी सदस्यता के बारे में आखिरी फैसला लिया जाना था।' 
 

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'मोरारजी देसाई और कुछ अन्य सदस्यों ने हमें पारस्परिक समझौते की स्वीकार्यता के आधार पर जनता पार्टी में बनाए रखने की अंत तक कोशिश करते रहे। परंतु भविष्य लिखा जा चुका था। जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने समझौते फॉर्मूले को 14 की तुलना में 17 वोटों से अस्वीकार कर दिया और प्रस्ताव पारित किया गया कि पूर्व जनसंघ के सदस्यों को निष्काषित कर दिया जाए।'
 

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आडवाणी अपनी किताब में लिखते हैं कि 'शुरुआत से ही हमारा जोर जनसंघ पर वापस लौटने पर नहीं था, बल्कि एक नई शुरुआत करने का था। यह पार्टी के वरिष्ठ सदस्यों द्वारा नई पार्टी के नाम पर हुए गहन विचार-विमर्श से भी स्पष्ट होता है। कुछ लोगों को लगता था कि इसको भारतीय जनसंघ कहना चाहिए।' 

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'पर भारी बहुमत ने अटलजी द्वारा दिए गए नाम भारतीय जनता पार्टी का समर्थन किया, जो कि हमारे भारतीय जनसंघ और जनता पार्टी, दोनों को गौरवपूर्ण संबंधों को दर्शाता था और यह स्पष्ट करता था कि हम नई पहचान के साथ एक नहीं पार्टी हैं।'

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