योग, आयुर्वेद और सख्त प्रोटोकॉल...इन तरीकों से कोयंबटूर में ईशा आश्रम के 3000 लोगों ने कोरोना से लड़ी जंग

देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने सभी को डरा कर रख दिया। कईयों के घर उजड़ गए। इस बीच कुछ जगहों पर लोगों ने कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए अपनी और दूसरों की जान बचाई। उन्हीं जगहों में से एक तमिलनाडु के कोयंबटूर में ईशा फाउंडेशन आश्रम है, जहां हजारों स्वयंसेवकों ने कोरोना काल में खुद और आसपास के 43 गांवों को जागरूक किया और बीमारी के संक्रमण से बचाने की कोशिश की। लेकिन सोचने वाली बात ये है कि इतनी बड़ी संख्या में लोगों को बचाने के लिए स्वयंसेवकों ने क्या तरीका अपनाया? 

Asianet News Hindi | Published : Jun 1, 2021 6:53 AM IST / Updated: Jun 12 2021, 11:24 AM IST

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योग, आयुर्वेद और सख्त प्रोटोकॉल...इन तरीकों से कोयंबटूर में ईशा आश्रम के 3000 लोगों ने कोरोना से लड़ी जंग

ईशा आश्रम के लोगों ने कैसे लड़ी कोरोना से जंग? 
तमिलनाडु में स्थिक ईशा आश्रम के लोगों ने कोरोना से लड़ने का शानदार तरीका अपनाया। यहां 3,000 से अधिक स्वयंसेवक हैं। यहां के लोगों का मानना है कि उन्होंने खुद के बनाए गए सख्त लॉकडाउन प्रोटोकॉल का पालन किया। एक टीवी इंटरव्यू में ईशा योग केंद्र की मां जयत्री ने कहा, पिछले एक साल से हम कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करने में बहुत सावधानी बरत रहे हैं।

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मास्क नहीं पहनने पर दो घंटे खड़े रहने की सजा
मां जयत्री ने बताया कि हमने कोरोना से निपटने के लिए आश्रम में कई नियम बनाए। एक नियम बनाया कि अगर किसी ने मास्क नहीं पहना तो उसे दो घंटे तक खड़े रहने की सजा दी जाती है।

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रोजाना टेंपरेचर की जांच करना अनिवार्य
आश्रम में नियम बनाया गया कि रोज टेंपरेचर की जांच, स्वच्छता और सामाजिक दूरी अनिवार्य है। इसके अलावा रोजाना योग, खाना बनाना, बागवानी, खेती, लेखन, ग्राफिक डिजाइन और संगीत का काम जारी रखा गया। 

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योग के जरिए खुद को कैसे मजबूत किया?
मां जयत्री ने बताया, आश्रम में स्वयंसेवकों को फिट और स्वस्थ रखने के लिए कई नियम बनाए गए। स्वयंसेवक रोजाना सिंह क्रिया नाम के तीन मिनट के योग अभ्यास करते हैं, जिससे फेफड़ों की क्षमता और इम्युनिटी सिस्टम मजबूत होती है।

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स्वयंसेवकों का यह भी दावा है कि खाने में सफाई की आदतों ने कोरोना से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ईशा योग आश्रम के डॉक्टर सुमन ने कहा, हमारे यहां जो खाना है वह सात्विक भोजन है। ज्यादातर कच्ची सब्जियां और फल दिन में दो बार खाते हैं। आश्रम के स्वयंसेवकों की दिनचर्या के बारे में मां जयत्री ने बताया। उन्होंने कहा, दिन की शुरुआत सुबह 4.30 बजे नीम के पत्तों और एक गिलास गर्म पानी के साथ होती है। इसके अलावा हम एक आयुर्वेदिक पेय पीते हैं जिसे नामक कहा जाता है। दिन में दो बार खाली पेट निलवेम्बु कश्यम लेते हैं।

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पास के 43 गांवों को भी मिला फायदा 
आश्रम के स्वयंसेवकों की वजह से आसपास के 43 गांवों को भी फायदा हुआ। एक गांव के प्रधान ने कहा, यहां की 13 बस्तियों में शायद ही कोरोना का कोई केस आया हो। कोई बाहर नहीं जाता है, केवल कुछ ही लोग आवश्यक सामान लेने के लिए जाते हैं।

43 गांव के लोगों को 15 जड़ी-बूटियों का मिश्रण दिया
आश्रम के स्वयंसेवकों ने आसपास के 43 गांवों में लगभग एक लाख लोगों को 15 जड़ी-बूटियों का मिश्रण बांटा। साथ ही कश्यम खाने और योग करने की सलाह दी।

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Asianet News का विनम्र अनुरोधः आइए साथ मिलकर कोरोना को हराएं, जिंदगी को जिताएं...। जब भी घर से बाहर निकलें मास्क जरूर पहनें, हाथों को सैनिटाइज करते रहें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। वैक्सीन लगवाएं। हमसब मिलकर कोरोना के खिलाफ जंग जीतेंगे और कोविड चेन को तोडेंगे। #ANCares #IndiaFightsCorona

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