कोरोना ने तोड़ दी काशी में 350 साल की रस्म, धधकती चिताओं के बीच नगर वधुओं ने नहीं किया डांस

Published : Apr 01, 2020, 05:01 PM ISTUpdated : Apr 01, 2020, 06:42 PM IST

वाराणसी (Uttar Pradesh) । कोरोना वायरस के इस बढ़ते सिलसिले और लॉकडाउन के बीच काशी की सदियों पुरानी परंपरा भी टूट गई। इस बार मणिकर्णिका घाट के किनारे स्थित बाबा मसान नाथ में नगर वधुएं अपनी नृत्यांजली अर्पित नहीं कर सकीं। हर साल बाबा के वार्षिक श्रृंगार की रात को नगर बधुएं यहां पहुँचकर आधी रात में डांस करती थीं। लेकिन, इस बार कोरोना के कहर के कारण आयोजकों पर रोक लगाई गई है। ऐसा न हो पाने से काशी में 350 सालों से चली आ रही ये परंपरा टूट गई।

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कोरोना ने तोड़ दी काशी में 350 साल की रस्म, धधकती चिताओं के बीच नगर वधुओं ने नहीं किया डांस
मणिकर्णिका घाट, गंगा की बहती शीतल धारा, जल रही पचासों चिताओं के बीच नगर बधुएं का बाबा मसान के द्वार पर झूम-झूम कर नृत्य करती थी। ये नृत्य विश्व में प्रसिद्ध था। (फाइल फोटो)
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हकीकत न जानने वाला और इस नृत्य को देखने और उसके बारे में सुनने वाला हर कोई चौंक जाता है। वह सोचता है आखिर कैसे हो सकता है कि जलती लाशों के बीच में कोई उत्सव कर हो। लेकिन, काशी में ऐसा बाबा मसान के वार्षिक श्रृंगार की रात ऐसा ही नजारा दिखता है। (फाइल फोटो)
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मान्यता है कि नगर वधुएं बाबा मसान नाथ के दरबार में नृत्य कर अपने अगले जन्म के बेहतर होने की कामना करती हैं। बाबा के दर पर जाकर कहती हैं कि है मसान नाथ इस बार तो हम ये जीवन जी रहे हैं अगली बार की जिंदगी अच्छी देना।(फाइल फोटो)
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मान्यता है कि 17वीं शताब्दी में काशी नरेश राजा मान सिंह ने बाबा मसान नाथ के मंदिर का निर्माण कराया। इसके बाद संगीत का कार्यक्रम आयोजित कराना चाहा। लेकिन, श्मशान होने के कारण सभी कलाकारों के इनकार कर देने ले बाद नगर वधुओं ने हामी भरी। (फाइल फोटो)
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मसान नाथ के दरबार में अपनी नृत्यांजलि अर्पित की। जलती चिताओं के बीच अपनी कला का प्रदर्शन किया। साथ ही अपने अगली जीवन के लिए आराधना की। तब से ये परंपरा काशी में शान और शौक से निभाई जाती रही है। लेकिन, कोरोना के कारण इस बार यह परंपरा टूट गई। (फाइल फोटो)

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