अंत में दोनों दोस्त थक-हारकर मां गंगा की शरण में पहुंचे और वहां अपनी एक पैत्रिक नाव पर ही खुद को क्वारंटीन कर किया। लगभग ढाई हफ्ते का वक्त बीत जाने के बावजूद पप्पू और कुलदीप निषाद गंगा की लहरों पर ही अपनी पैतृक नाव पर खुद को क्वारनटीन किए हुए हैं। गांव में जरूरत का सामान लेने गए तो गांव वालों ने रोक दिया। साग-सब्जी नहीं मिल पा रही है तो गंगा में से मछली पकड़कर उसे पकाकर खा रहे हैं।