कोरोना का संकट: कोई जुटा रहा था बहन की शादी के लिए पैसे-किसी को बनाना था अपना घर...सारे अरमान रह गए अधूरे

Published : Mar 27, 2020, 11:08 AM ISTUpdated : Mar 27, 2020, 11:14 AM IST

लखनऊ(Uttar Pradesh ). देश में फैल रहे कोरोना वायरस के खौफ और लॉकडाउन से लोगों के मुंह से छिने निवाले की दास्तां दिल को झकझोर देने वाली है। सरकार ने कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए देश में लॉकडाउन की घोषणा की है। सरकार ने इस फैसले से लोगों को दिक्क्तें न हो इसके लिए काफी प्रयास किए हैं लेकिन बावजूद इसके लॉकडाउन में रोजाना की कमाई पर गुजर-बसर करने वाले लोगों का बुरा हाल है। प्रदेश से बाहर रहकर रोजी-रोटी कमाने वाले लोग इस समय काफी संकट में हैं। काम बंद होने से भुखमरी की कगार पर हैं। लिहाजा वह अपने घर पैदल ही लौट रहे हैं। 

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कोरोना का संकट: कोई जुटा रहा था बहन की शादी के लिए पैसे-किसी को बनाना था अपना घर...सारे अरमान रह गए अधूरे
सोनभद्र के रेनूकूट के रहने वाला अनिल यादव दिल्ली में रहकर मजदूरी करता। वह दिल्ली अपने छोटे भाई विजय के साथ रहता है। विजय भी एक फैक्ट्री में मजदूर है। लॉकडाउन के कारण फैक्ट्री बंद हुई तो उनका काम भी छिन गया। जो थोड़े बहुत पैसे थे वह खाने और कमरे के किराए में खर्च हो गए। फैक्ट्री बंद होने के बाद उनकी तीन दिन की मजदूरी भी नहीं मिली। भुखमरी की कगार पर पहुंचे दोनों भाई घर वापसी के लिए निकल पड़े। लॉकडाउन के कारण साधन नहीं मिला तो दोनों भाई पैदल ही घर चल पड़े। अनिल को इसी जून में बहन की शादी करनी है। वह इस चिंता में है कि आखिर अब उसका अरमान कैसे पूरा होगा।
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मेरठ से प्रयागराज पैदल आ रहा रविशंकर बारिश आने के पहले अपना घर बनवाना चाहता था। उसका कच्चा मकान गिर गया था। इसलिए वह एक कमरे का पक्का मकान बनवा रहा है। आधा काम भी पूरा हो चुका है। छत बाकी है इसलिए वह मेरठ फैक्ट्री में दिन रात मेहनत कर रहा था। लेकिन लॉकडाउन के कारण फैक्ट्री बन हुई तो उसे मायूस पैदल ही घर वापस लौटना पड़ रहा है।
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इसी तरह प्रतापगढ़ के अब्दुल कयूम की भी कहानी कुछ ऐसी ही है। वह भी मेरठ में ही एक फैक्ट्री में काम करता था। फैक्ट्री बंद हुई तो उसे घर वापस लौटना पड़ रहा है। लॉकडाउन के कारण वह पैदल ही घर वापस लौट रहा है। उसके जेब में एक भी पैसे नहीं नहीं है। कानपुर में बीएस स्टेशन पर पुलिस द्वारा उसे खाना खिलाया गया था।
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जौनपुर का श्यामशंकर दिल्ली में एक फैक्ट्री में वाचमैन है। कोरोना के खौफ और फैक्ट्री बंद होने के कारण वह भी पैदल घर वापस आ रहा है। उसका कहना है सबसे जरूरी जान बचाना है। जिंदगी रहेंगी तो नौकरी फिर से मिल जाएगी।
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प्रदेश से बाहर जाने वाले लगभग सभी रास्तों पर इस समय पैदल वापस आने वाले लोग दिखाई दे रहे हैं। कोरोना के खौफ और काम बंद होने के कारण पैसों व भोजन की किल्ल्त ने उन्हें मायूस कर दिया है। वाहनों के न चलने के कारण भी वह पैदल घर वापस आने को मजबूर हैं।

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