जब भारत में लाशों से पट गई थी गंगा, जलाने को कम पड़ गई थी लकड़ियां, महामारी में गई थी 2 करोड़ जानें

Published : Mar 18, 2020, 03:09 PM ISTUpdated : Mar 19, 2020, 12:39 PM IST

हटके डेस्क: आज पूरी दुनिया कोरोना वायरस से जंग लड़ रही है। चीन के वुहान से शुरू हुए इस वायरस ने आज दुनिया के कई देशों को अपनी चपेट में ले लिया है। दुनिया में इस वायरस की चपेट में एक लाख 70 हजार से ज्यादा लोग आ गए हैं। वहीं सात हजार से अधिक लोगों की मौत वायरस के कारण हो चुकी है। इस बीच 1918 में फैले स्पेनिश फ्लू की यादें ताजा हो गई। इस फ्लू ने दुनिया में भयंकर तबाही मचाई थी। यूरोप से शुरू हुए इस वायरस ने भी दुनिया के कई देशों को अपना निशाना बनाया था। भारत भी इससे अछूता नहीं रहा था। इस फ्लू से भारत में करीब दो करोड़ लोगों की मौत हुई थी। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस वायरस की चपेट में महात्मा गांधी भी आ गए थे। तब कई महीनों तक बिस्तर में पड़े रहे महात्मा गांधी के स्वास्थ्य से सब चिंतित हो गए थे। आइए आपको बताते हैं कैसे इस महामारी ने भारत में पांव पसारे थे...   

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जब भारत में लाशों से पट गई थी गंगा, जलाने को कम पड़ गई थी लकड़ियां, महामारी में गई थी 2 करोड़ जानें
1918 में दुनिया में स्पेनिश फ्लू ने आतंक मचाया था। इस वायरस ने दुनिया के कई देशों को अपना निशाना बनाया था।
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भारत में भी इस वायरस ने कहर बरपाया था। इस फ्लू की चपेट में आकर लगभग दो करोड़ भारतीयों की मौत हो गई थी।
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फ्लू की चपेट में भारत में ज्यादातर महिलाएं आई थीं। इसके पीछे कारण था कि महिलाएं ही बीमार पुरुषों का ख्याल रख रही थीं। ऐसे में वो आसानी से वायरस की चपेट में आ जा रही थीं।
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गुजरात के साबरमती आश्रम में रहने वाले महात्मा गांधी और कई अन्य लोग भी इस खतरनाक फ्लू की चपेट में आ गए थे।
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महात्मा गांधी की तबियत इस फ्लू के कारण काफी खराब हो गई थी। वो कई महीनों तक बिस्तर पर पड़े थे। उन्होंने अपनी डाइट पूरी तरह लिक्विड कर ली थी।
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अखबारों में उनकी सेहत को लेकर काफी खबरें छपती थी। काफी समय तक सभी से अलग रहने के बाद धीरे-धीरे उन्हों इस बीमारी से निजात पाया। आश्रम में फ्लू से पीड़ित लोगों को सबसे दूर रखा गया।
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स्पेनिश फ्लू के कारण भारत के महान कवि निराला की बीवी और कई रिश्तेदारों की जान चली गई थी। उन्होंने अपना दर्द बयान करते हुए बताया था कि कैसे इस महामारी के कारण उनकी आंखों के सामने सब कुछ गायब हो गया।
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महामारी की स्थिति इतनी भयंकर थी कि गंगा नदी लाशों से पट गई थी। चूंकि उस समय मौत होने पर कई लोग लाशों को नदी में बहा देते थे।
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मौत का आंकड़ा इतना ज्यादा था कि शमशान घाटों में लकड़ी की कमी हो गई थी। कई शहर इस फ्लू से वीरान हो गए थे।
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बीबीसी में छपी खबर के मुताबिक, 1918 में इस फ्लू के कारण भारत में कर दिन 230 लोगों की मौत हो रही थी। इस फ्लू ने भारत में कुछ ही महीनों में करीब 2 करोड़ लोगों की जान ले ली थी।
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इस फ्लू का कोई इलाज नहीं मिल पाया। समय के साथ लोगों की बॉडी इस फ्लू के खिलाफ लड़ने में सक्षम हो गई। जिसके बाद अपने आप ही फ्लू तबाही मचाकर गायब हो गया।

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