यह किस्सा तब का है, जब वे उतने प्रसिद्ध नहीं हुए थे। वे जयपुर में थे। वहां के राजा उनके बड़े भक्त थे, इसलिए स्वामीजी को अपने महल बुलवाया। राजा-महाराजा जब किसी मेहमान को अपने महल बुलवाते हैं, तो वहां नाच-गाने का प्रबंध होता है। इसी रस्म को निभाते हुए राजा ने स्वामीजी के स्वागत में एक सुंदर वेश्या को भेजा। लेकिन फिर राजा को गलती का एहसास हुआ कि स्वामीजी तो संन्यासी हैं। वेश्या को देखकर स्वामीजी डर गए कि कहीं उनकी वासना न जाग जाए, इसलिए उन्होंने खुद को एक कमरे में बंद कर दिया। यह देखकर वेश्या को दु:ख हुआ। उसने अपने नाच-गाने में अपनी व्यथा पेश की। यह सुनकर स्वामीजी का डर दूर हुआ। उन्होंने उस वेश्या को पवित्र आत्मा कहा। जिसके कारण उनके मन के अंदर की वासना दूर हुई।
(स्वामीजी और उनकी मां)