Published : Apr 22, 2020, 08:10 AM ISTUpdated : Apr 22, 2020, 09:45 AM IST
वाशिंगटन. कोरोना वायरस के कहर से अमेरिका में भयंकर तबाही मची हुई है। पिछले 24 घंटे में 2804 लोगों की मौत हुई है। जबकि संक्रमित मरीजों की संख्या 8 लाख के पार पहुंच गई है। यहां अब तक 45 हजार से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। यदि पूरी दुनिया में दिसंबर से लेकर अब तक हुए कोरोना वायरस के फैलाव की बात करें तो चीन का वुहान शहर, जहां दिसंबर में इसकी शुरुआत हुई थी वहां पर अब ये काबू में आ चुका है। लेकिन इससे 12 हजार किमी दूर स्थित अमेरिका के न्यूयॉर्क में इसका सबसे अधिक असर देखा जा रहा है। इन सभी के पीछे छिपे कारणों को हमारे लिए जानना बेहद जरूरी है। जानिए किन कारणों से अमेरिका में इतनी भयंकर तबाही मची हुई है।
चीन के वुहान में पहला मामला सामने आने के बाद 19 जनवरी को अमेरिका के वाशिंगटन में इसका पहला मामला सामने आया था। इसके बाद लगातार इसके मामले अलग-अलग राज्यों में सामने आने लगे थे। बावजदू इसके अमेरिकी प्रशासन का ध्यान इस पर काफी देर से गया।
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22 मार्च को राष्ट्रपति ट्रंप ने Major Disaster घोषित किया था और गवर्नर ने घर से बाहर न निकलने की हिदायत दी थी। इस प्रतिबंध को बाद में 4 मई तक के लिए बढ़ा दिया गया।
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जिस वक्त तक चीन ने अपने यहां पर बाहर से आने और जाने वाली सभी उड़ाने बंद कर दी थी तब तक 4 लाख से अधिक लोग चीन से अमेरिका पहुंच चुके थे। अमेरिका ने अपने यहां पर विदेशों से आने वाले विमानों की आवाजाही को रोकने में काफी देर कर दी थी।
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इतना ही नहीं 16 मार्च तक भी अमेरिका ने इसको सभी देशों के लिए एक समान तौर पर लागू नहीं किया था। चीन से आने वाले विमानों की आवाजाही को रोकने के बाद भी लोग दूसरे देशों से होते हुए अमेरिका पहुंच रहे थे।
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14 मार्च को न्यूयॉर्क में कोरोना वायरस की वजह से पहली मौत हुई थी। हालांकि यहां पर 7 मार्च को ही गवर्नर ने स्टेट इमरजेंसी का ऐलान कर दिया था और लोगों को घरों में रहने की सख्त हिदायत दी गई थी।
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इसके बाद भी लोगों ने इसको गंभीरता से नहीं लिया जिसकी वजह से ये यहां पर हालात बेकाबू हो गया। 23 मार्च को न्यूयॉर्क के तट पर सैकड़ों लोगों की जमा भीड़ की फोटो वायरल होने के बाद गवर्नर ने लॉकडाउन को सख्ती से लागू करने के आदेश दिए थे।
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चीन में इस वायरस के लगातार फैलने की बीच अमेरिका ने चीन को काफी मात्रा में पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्यूपमेंट्स दिए थे। उस वक्त तक ये वायरस अमेरिका समेत कई देशों में फैल चुका था। इसके बाद भी अमेरिका में लगातार बढ़ रहे मामलों पर ध्यान नहीं दिया गया।
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राज्यों के गवर्नरों की राय और हेल्थ डिपार्टमेंट के टॉप विशेषज्ञों की राय को राष्ट्रपति डोनाल्ड डोनाल्ड ट्रंप ने नजरअंदाज किया। अमेरिका के टॉप विशेषज्ञ डॉक्टर फॉसी से उनका टकराव इसका जीता जागता सुबूत है।
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राष्ट्रपति ट्रंप की तरफ से लगातार ये कहा जाता रहा कि प्रशासन इस पर काबू पा लेगा और इसकी वजह से अमेरिकियों को कोई खतरा नहीं है।
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अमेरिका में इस वायरस से लड़ने और इसकी रोकथाम पर ध्यान देने की बजाए राष्ट्रपति ट्रंप डब्ल्यूएचओ से भिड़ गए और उसकी फंडिंग रोकने तक का फैसला ले लिया।
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राष्ट्रपति ट्रंप इस वायरस की उत्पत्ति के लिए चीन को घेरते दिखाई दिए। जबकि दूसरे देश उस वक्त केवल इसकी रोकथाम पर ही ध्यान दे रहे थे।
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केलिफोर्निया, न्यूयॉर्क, मिशिगन, वाशिंगटन में हेल्थ वर्कर्स ने दो दिन पहले ही सड़कों पर उतरकर वेंटिलेटर, मास्क, गाउन की कमी के खिलाफ प्रदर्शन किया था।
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चीन, इटली और स्पेन से नहीं ली सीख- अमेरिका का मानना है कि कोरोना वायरस से देश में कुल 2 लाख से ज्यादा मौतें होंगी। लेकिन जब इटली और स्पेन में हर रोज मौत का आंकड़ा बढ़ रहा था, उस वक्त अमेरिका ने समय रहते इन सबसे से निपटने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। यहां ना तो अंतरराष्ट्रीय सीमाएं बंद की गईं ना ही लॉकडाउन जैसा कोई कदम उठाया गया।
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स्क्रीनिंग में कमी- अमेरिका की सबसे बड़ी चूक स्क्रीनिंग को लेकर हुई। यहां सिर्फ चीन से आने वाले यात्रियों की जांच की गई या उन लोगों की जांच की गई, जो हाल ही में चीन से लौटे थे। इसके अलावा अमेरिका ने ना तो अन्य देशों से आने वाले नागरिकों की जांच की और ना ही यात्रियों के संबंधों की जांच की।
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टेस्ट की संख्या में कमी: अमेरिका में मार्च में संक्रमण के काफी कम मामले सामने आए। इसका प्रमुख कारण जांचों की संख्या थी। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने शुरुआत में 50 लाख जांचों का लक्ष्य रखा था, लेकिन अंत तक सिर्फ 10 लाख टेस्ट हुए। जब इन टेस्टों के रिजल्ट आए तो एकदम से मामले ज्यादा हो गए।
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लॉकडाउन में देरी: WHO ने जब सभी देशों को लॉकडाउन की सलाह दी। तो अमेरिका ने खुद इसे नहीं माना। अमेरिका ने लॉकडाउन का ऐलान करने में काफी वक्त लगा दिया। इससे यहां ना तो सोशल डिस्टेंसिंग मानी गई और ना ही गतिविधियां रुकीं।
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अमेरिका में कई जगहों पर चर्चों में भारी भीड़ जुटती रही। लोग खुले में घूमते दिखे। साफ तौर पर नजर आ रहा था कि राज्य और स्थानीय सरकारें भी सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर गंभीर नहीं थीं। इसलिए यहां कोई सख्ती भी नहीं की गई।