चौंकाने वाले हैं कुरान के 'रहस्य', इस्लाम की नजर में ये है ईसा मसीह की हैसियत

यरुशलम: भले ही आस्था और उसे मानने के तौर तरीकों को लेकर ईसाइयत, इस्लाम से अलग है मगर दोनों के बीच गहरा रिश्ता है। इस रिश्ते का सबूत इस्लाम की सबसे पवित्र किताब कुरआन-ए-शरीफ (बोलचाल की भाषा में कुरान) में भी मिलता है। हालांकि 'श्रेष्ठता' और कुछ मतभेदों की वजह से सैकड़ों साल के इतिहास में इस्लाम और ईसाइयत के बीच कई मर्तबा खूनी संघर्ष के उदाहरण मिलते हैं।

Asianet News Hindi | Published : Dec 25, 2019 8:19 AM IST / Updated: Dec 25 2019, 08:37 PM IST
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चौंकाने वाले हैं कुरान के 'रहस्य', इस्लाम की नजर में ये है ईसा मसीह की हैसियत
मुसलमानों की नजर में ईसा मसीह ईसाइयों के पैगंबर हैं। मुसलमान, ईसा मसीह को भी सम्मान देते हैं। कुरान में ईसा मसीह का जिक्र एक ऐसे अहम व्यक्ति के तौर पर की गई है जो पैगंबर मोहम्मद साहब से पहले के थे। अरबी भाषा में जीसस को ईसा कहते हैं। कुरान में कई बार, पैगंबर मोहम्मद के नाम से ज्यादा ईसा के नाम का जिक्र हुआ है।
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बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि कुरान में केवल एक महिला का जिक्र है। वो महिला वर्जिन मेरी है जिन्हें अरबी में मरियम कहा जाता है। मरियम ईसा मसीह की मां थीं। कुरान में इनके नाम एक पूरा अध्याय है जिसमें ईसा मसीह के जन्म की कहानी है। हालांकि इस्लाम में ईसा मसीह के जन्म की कहानी बाइबल से अलग है। कुरान में जन्म की कहानी में न तो जोसेफ हैं और न ही फरिश्ते।
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कहानी के मुताबिक मरियम ने रेगिस्तान में ईसा को जन्म दिया था। वो अकेले थीं और जन्म के वक्त उन्होंने एक सूखे हुए खजूर के पेड़ की पनाह ली थी। जन्म देने के बाद एक चमत्कार हुआ। मरियम के खाने के लिए पेड़ से खजूर गिरा और पास ही पानी का एक सोता भी फूट गया।
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मरियम कुंवारी थीं। इस एक से अविवाहित महिला का बच्चे को जन्म देना उसके चरित्र पर सवाल खड़े कर सकता था। मगर उस दौरान नवजात ईसा ने ईश्वर के दूत की तरह बोलना शुरू कर दिया। चमत्कार से एक मां निर्दोष साबित हो जाती है।
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मुस्लिमों का मानना है कि कयामत के दिन ईसा जो पैगंबर भी हैं, वापस लौटेंगे। अरबी मुस्लिम साहित्य में ईसा की तारीफ के सबूत कुरान से पहले है। एक सूफी ने उन्हें "आत्माओं का पैगंबर" बुलाया है।
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ईसा और मरियम के नाम भी मुसलमानों में प्रसिद्ध हैं। मगर मुस्लिम जगत ईसा के जन्मदिन का जश्न नहीं मनाता। ठीक इसी तरह ईसाई समाज भी पैगंबर मोहम्मद से जुड़े जश्न नहीं मनाता।
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