बांग्लादेश हादसा: आग लगने के बाद भी 40-45 मिनट तक चक्कर काटती रही फेरी; इसी गलती से 41 लोग जिंदा जल गए

ढाका. बांग्लादेश में 24 दिसंबर को फेरी में लगी आग को लेकर चालक दल की बड़ी लापरवाही सामने आ रही है। शुक्रवार को झलकाठी में सुगंधा नदी पर एमवी ओभिजन 10 में आग लगने से कम से कम 41 लोगों की मौत हो गई थी। प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि फेरी रवाना होने से करीब 20-25 मिनट बाद सुगंधा नदी(Dapdapia point) के दपडापिया बिंदु (Sugandha River) को पार करते समय इंजन में आग लग गई थी। बरगुना के राशेद नामक एक यात्री ने सबसे पहले इंजन में आग देखी। रशीद ने UNB के रिपोर्टर को बताया कि वो इंजन के पास बैठा था, तभी उसकी नजर आग पर पड़ी। इसके बावजूद फेरी 40-45 मिनट तक चलती रही। अगर उसे समय पर किनारे ले जाया जाता, तो इतना बड़ा हादसा नहीं होता। फेरी के कर्मचारी वहीं आग बुझाने में लगे रहे। बारीसाल संभागीय आयुक्त(Barisal Divisional Commissioner) सैफुल अहसान बादल ने कहा कि इस हादसे के लिए नाविक की अक्षमता एक बड़ा अपराध है। अगर आग लगने के बाद वो बिना जोखिम उठाए फेरी को किनारे ले आता, तो इतनी बड़ी त्रासदी नहीं होती।
 

Asianet News Hindi | Published : Dec 25, 2021 7:52 AM IST / Updated: Dec 25 2021, 01:27 PM IST

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बांग्लादेश हादसा: आग लगने के बाद भी 40-45 मिनट तक चक्कर काटती रही फेरी; इसी गलती से 41 लोग जिंदा जल गए

झालाकाठी जिले के एडिशनल डिप्टी कमिश्नर मोहम्मद नजमुल आलम के मुताबिक फेरी में करीब 1,000 लोग बैठे थे। फेरी सुगंधा नदी में ढाका से बरगुना जिले की तरफ जा रही थी।

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यह भयंकर हादसा ढाका से 250 किमी दूर झालाकाठी गांव के पास हुआ। स्थानीय पुलिस चीफ मोईनुल इस्लाम के मुताबिक, बीच नदी में तीन मंजिला फेरी ओभिजन में आग लगी थी। 

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आग लगने के बाद कुछ लोगों ने नदी में कूदकर अपनी जान बचाई। आग में 200 से अधिक लोग जख्मी हुए हैं। उन्हें अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती कराया गया है।

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शनिवार को झलकाठी प्रशासन ने 32 शवों को बरगुना जिला अधिकारियों को सौंपा। इनमें से सिर्फ 2 की पहचान हो सकी। यानी 30 शवों को सामूहिक रूप से कब्र में दफनाया गया। शवों के डीएनए संरक्षित रखे गए हैं।

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फेरी की आग से सुरक्षित बचे एक यात्री सईदुर रहमान ने मीडिया को बताया कि आग सुबह करीब 3 बजे  लगी थी। फेरी में बड़ी संख्या में बच्चे और बुजुर्ग शामिल थे।

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आग इतनी तेजी से फैली कि किसी को बचने का मौका ही नहीं मिला। जो लोग तैरना जानते थे, वे नदी में कूद गए। बाकी लोग बचने का इंतजात ढूंढते रहे।

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