नींद में जा सकती है नवजात बच्चे की जान, जानें कारण और बचाव

Published : Nov 24, 2022, 02:49 PM ISTUpdated : Nov 24, 2022, 05:20 PM IST
नींद में जा सकती है नवजात बच्चे की जान, जानें कारण और बचाव

सार

नवजात शिशु की देखभाल बहुत जरूरी होती है। उनके हर एक्टिविटी पर नजर रखना पड़ता है। नींद में बच्चे की जान जाना माता-पिता के लिए एक गंभीर समस्या है। आइए जानते हैं सोते हुए बच्चे की जान क्यों चली जाती हैं। इसके पीछे कौन सी वजह है।

हेल्थ डेस्क. कभी-कभी देखा गया है कि स्वस्थ शिशु बिना किसी कारण के मौत के शिकार हो जाते हैं। ऐसा शिशु के जन्म के तीन महीने में होने की ज्यादा आशंका होती है। इस स्थिति को डन इन्फेंट डेथ सिंड्रोम (एसआईडीएस) कहा जाता है। इसे मेडिकल टर्म में क्रिब डेथ भी कह सकते हैं। हालांकि मौत की सही वजह अभी तक पता नहीं चल पाया है। लेकिन स्टडी और विशेषज्ञों की मानें तो एसआईडीएस शिशु के मस्तिष्क के कारण होता है। 

एसआईडीएस उस अवस्था में ज्यादा होता है जब नवजात कॉट में सोता है। हालांकि ऐसा कहीं भी सोने से हो सकता है। लेकिन ज्यादातर मामले कॉट के ही सामने आते हैं। दरअसल, मस्तिष्क का एक हिस्सा नींद में सांस लेने और उत्तेजना को नियंत्रित करता है। अगर यह ठीक से काम नहीं करता है तो मौत की वजह बन जाती है। विशेषज्ञ इसे मस्तिष्क दोष मानते हैं जो जन्म के साथ ही आता है।

एसआईडी के कौन-कौन से कारण हैं
अगर बच्चे का प्रीमेच्योर बर्थ होता है, तो उसका मस्तिष्क परिपक्व नहीं हो पाता है। ऐसी स्थिति में सांस लेने और  हृदय गति  अनियंत्रित हो जाता है। जिसकी वजह से  एसआईडीएस का खतरा बढ़ जाता है।

सर्दी के मौसम भी एसआईडीएस को बढ़ावा देता है। एक रिपोर्ट की मानें तो इस मौसम सांस लेने में समस्या पैदा होती है। जिसकी वजह से नवजात इसके शिकार हो जाते हैं। 

बच्चे की सोने की स्थिति और वहां मौजूद चीजें भी उनकी हेल्थ प्रॉब्लम को बढ़ाती है। मसलन बच्चा अगर पेट के बल सोया हुआ है, या  बाजू  की करवट के सोया होता है तो क्रीब डेथ का जोखिम बढ़ जाता है। क्योंकि उनका  श्वसन मार्ग बाधित हो जाता है और वो सांस नहीं ले पाते हैं।

एसआईडी से बचाव
-अचानक शिशु मृत्यु सिंड्रोम होना दुर्लभ है। कई विकसित देशों की तुलना में भारत में इसके मामले बहुत कम हैं। लेकिन बचाव बहुत जरूरी है। 

-शिशु को अपने साथ कॉट में पीठ के बल सुलाएं।  पीठ के बल लिटाकर सुलाया जाए, तो उनका दम नहीं घुटता है। इसके साथ ही बच्चे पर हमेशा नजर रखें। 

-पालने में मजबूत गद्दा बिछाएं। मोटी रजाई, चादर ये बच्चे को ना ढके। इतना ही नहीं उनके आसपास कोई खिलौना भी ना रखें।

 -शिशु के कमरे में 23 से 25 डिग्री सेल्सियस का आरामदायक तापमान रखें। उन्हें हीटर, ब्लोअर, आग या सूरज की रोशनी के सामने ना सुलाएं।

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