कर्नल होशियार सिंह ने 1971 में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में हुई लड़ाई में अहम रोल निभाया था। जंग के दौरान वह घायल हो गए थे, इसके बाद भी आगे बढ़कर पाकिस्तानी सेना पर हमला बोल दिया था। उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
नई दिल्ली। भारत को आजाद हुए 75 साल हो गए। आजादी के बाद देश ने कई मुसीबतों का सामना किया। चीन और पाकिस्तान से कई जंग हुए। इन लड़ाइयों में भारतीय सेना के वीर सपूतों ने अदम्य साहस का परिचय दिया। आज हम आपको ऐसे ही एक वीर योद्धा कर्नल होशियार सिंह के बारे में बता रहे हैं।
कर्नल होशियार सिंह 1971 की लड़ाई में बहादुरी की मिसाल थे। घायल होने के बाद भी उन्होंने अपनी सेना का मनोबल इस तरह से बढ़ाया था कि उनकी यूनिट ने असंभव लगने वाले लक्ष्य को हासिल कर लिया था। घायल होशियार सिंह अपने साथियों का हौसला बढ़ाने के लिए लगातार एक बेस से दूसरे बेस तक दौड़ लगा रहे थे। उनकी यह मेहनत रंग भी लाई और इंडियन आर्मी ने जरपाल पर कब्जा कर लिया था।
हरियाणा में हुआ था जन्म
कर्नल होशियार सिंह का जन्म 5 मई, 1936 को हरियाणा के सोनीपत जिले में हुआ था। बचपन से ही होशियार सिंह का सपना था कि उन्हें देश की सेवा के लिए इंडियन आर्मी में शामिल होना है। होशियार सिंह पढ़ाई में बहुत अच्छे थे। वह अपनी स्कूल लाइफ में खेलकूद में भी एक्टिव रहते थे। होशियार सिंह दाहिया जाट परिवार से थे। रोहतक के जाट कॉलेज में अपनी स्कूली शिक्षा और एक वर्ष का अध्ययन करने के बाद वे सेना में शामिल हो गए।
कब हुए सेना में शामिल
होशियार सिंह का बचपन से सपना था कि वो सेना में शामिल हों। उनका सपना तब हकीकत में बदला जब वो 1957 में जाट रेजिमेंट में शामिल हुए। इसके बाद वो 3 ग्रेनेडियर्स में अफसर बने। 1971 की लड़ाई में उनकी बहादुरी के लिए उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
1971 के युद्ध के समय वो शंकरगढ़ सेक्टर पर पदस्थ थे। उनकी बटालियन को बसंतर नदी में एक पुल बनाने का काम दिया गया था। नदी के दोनों तरफ पाकिस्तानी सेना का कब्जा था। होशियार सिंह को पाकिस्तान के जरपाल पर कब्जा करने का आदेश मिला था। आदेश मिलने के बाद से ही उन्होंने दुश्मनों पर हमला बोल दिया। इस लड़ाई में पाकिस्तानी सेना को बहुत नुकसान हुआ। पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई की, लेकिन भारतीय सेना पीछे नहीं हटी। होशियार सिंह घायल थे, इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी सेना का मनोबल बढ़ाते रहे। अंत में भारतीय सेना ने जरपाल पर कब्जा कर लिया।
घायल होने के बाद भी सीजफायर होने के बाद वो अपनी जगह से हटे नहीं थे। उनकी इस बहादुरी के लिए उनको परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। वो आर्मी से ब्रिगेडियर की पोस्ट से रिटायर हुए। 6 दिसंबर 1998 को उनका निधन हुआ था।