India@75:रास बिहारी बोस ने सुभाष चंद्र को सौंपी थी आजाद हिन्द फौज की कमान, बचपन से करते थे ब्रिटिश राज से नफरत

स्वतंत्रता सेनानियों में रास बिहारी बोस का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। उनका जन्म 1886 में कलकत्ता में हुआ था। उन्होंने आजाद हिंद फौज की स्थापना की थी और बाद में इसकी बागडोर नेताजी सुभाष चंद्र बोस को सौंप दी थी। 

Asianet News Hindi | Published : Jul 8, 2022 8:39 AM IST / Updated: Jul 08 2022, 02:15 PM IST

नई दिल्ली। भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी यूं ही नहीं मिली थी। इसके लिए लाखों वीर सपूतों ने अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया था। इन स्वतंत्रता सेनानियों में रास बिहारी बोस का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। उन्होंने आजाद हिंद फौज का गठन किया था। बाद में उन्होंने आजाद हिंद फौज की बागडोर नेताजी सुभाष चंद्र बोस को सौंप दी थी। 

रास बिहारी बोस का जन्म 1886 में कलकत्ता में हुआ था। ब्रिटिश अधिकारियों की घोर क्रूरता के चलते वह बचपन से ही अंग्रेजों के शासन से नफरत करने लगे थे। अकाल और महामारियों ने उस दौरान भारी तबाही मचाई थी, लेकिन ब्रिटिश शासक जनता की मदद के बदले भारत को लूटने में लगे रहे। इससे पूरे देश में आक्रोश था। 

ब्रिटिश राज के अत्याचार ने रास बिहारी बोस को बंगाल के क्रांतिकारियों का प्रशंसक बना दिया था। वह विदेशी शासन को हिंसक रूप से उखाड़ फेंकने में विश्वास करते थे। वह एक मेधावी छात्र भी थे। उन्होंने फ्रांस से चिकित्सा और जर्मनी से इंजीनियरिंग में डिग्री ली थी। पढ़ाई पूरी करने के बाद बोस ने विलासितापूर्ण जीवन जी सकते थे, लेकिन उन्होंने क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी बनने का फैसला किया। वह बंगाली विद्रोहियों के संगठन जुगंतर के साथ जुड़ गए। वह 23 दिसंबर 1912 को दिल्ली में गवर्नर जनरल लॉर्ड हार्डिंग के खिलाफ असफल लेकिन सनसनीखेज हत्या के प्रयास में शामिल थे।

जापान भाग गए थे बोस
बोस 1915 में हुए गदर विद्रोह में भी सबसे आगे थे। उस समय ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल भारतीय सैनिकों ने विद्रोह कर दिया था। विद्रोह का आयोजन उत्तरी अमेरिका स्थित गदर पार्टी ने किया था। इसके बाद उन्होंने बड़ी संख्या में राष्ट्रवादियों को गोलबंद किया था। गदर विद्रोह में शामिल सैनिकों के खिलाफ लाहौर षडयंत्र मामले में मुकदमा चलाया गया और 42 को फांसी दी गई। पकड़े जाने से पहले बोस 1915 में लाला लाजपत राय की सलाह पर जापान भाग गए थे।

बोस ने अपना शेष जीवन भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए जापान का समर्थन पाने में बिताया। उन्होंने विभिन्न दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में काम करने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ एक एशियाई प्रतिरोध आंदोलन का अभियान चलाने के लिए इंडिया इंडिपेंडेंस लीग का गठन किया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने ब्रिटिश सेना में काम कर चुके भारतीय सैनिकों को साथ लेकर आजाद हिंद फौज का गठन किया था। इसमें जापान ने मदद की थी।

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जापानी महिला से की थी शादी
1943 में रास बिहारी बोस ने सुभाष चंद्र बोस को टोक्यो आमंत्रित किया और आजाद हिंद फौज का नेतृत्व सौंप दिया। रास बिहारी बोस ने एक जापानी महिला से शादी की और वहां के नागरिक बन गए। उन्हें दूसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार मिला था। जापान के उच्च नागरिक सम्मान द सेकेंड ऑर्डर ऑफ द राइजिंग सन जीतने के एक साल बाद 1945 में टोक्यो में उनका निधन हो गया था।

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