India@75: वह पहलवान जिसने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में भारत के लोगों का बढ़ाया आत्मविश्वास

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन (Indian freedom movement) के दौरान कई भारतीयों ने अभूतपूर्व साहस का परिचय दिया था। उन्हीं में से एक हैं गामा पहलवान। 
 

नई दिल्ली. कई भारतीयों का मानना ​​था कि मांस खाने वाले अंग्रेजों को कुश्ती में हराना असंभव है। लेकिन 1910 में एक भारतीय पहलवान ने इस मिथक को तोड़ दिया। इतना ही नहीं उसने करोड़ों भारतीयों का आत्मविश्वास जगाया और राष्ट्रीय आंदोलन को मजबूत किया। उनका नाम था गुलाम मोहम्मद बख्श बट, जिन्हें महान गामा पहलवान कहा जाता था।

पंजाब से जुड़ा है रिश्ता
गामा पहलवान पंजाब में पटियाला के राजा के दरबार में पहलवान थे। 1878 में कश्मीर में एक पहलवान परिवार में उनका जन्म हुआ था। युवा गामा ने जल्द ही कई बड़े सितारों के खिलाफ जीत हासिल करके प्रसिद्धि प्राप्त की। 1910 में गामा को एक धनी बंगाली राष्ट्रवादी शरत कुमार मित्रा द्वारा प्रायोजित जॉन बुल वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में भाग लेने के लिए लंदन भेजा गया। लेकिन लंदन में गामा को प्रतियोगिता में प्रवेश से वंचित कर दिया गया था। कारण यह रहा कि वह काफी लंबे नहीं थे। उनकी लंबाई 6 फीट से कम थी और वजन 90 किलो था। 

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उसके बाद क्या हुआ
उनकी लंबाई कम थी जो विभिन्न देशों से आए दिग्गजों के खिलाफ मानक पर खरे नहीं उतरते थे। लेकिन लंदन में कुछ भारतीयों ने गामा पहलवान के लिए अनौपचारिक मुकाबले कराए। जिसमें उन्होंने कई जाने-माने पहलवानों को हरा दिया। इनमें अमेरिकी चैंपियन बेंजामिन रोलर भी शामिल थे जिन्हें गामा ने तीन मिनट में चकमा दे दिया था। इससे दुनिया भर में चर्चा छिड़ गई। इस बड़ी खबर के बाद विश्व चैम्पियनशिप के आयोजकों ने गामा को प्रवेश दिया। गामा ने फाइनल में प्रवेश करने से पहले पोलैंड के तत्कालीन विश्व चैंपियन स्टानिस्लाव जबिस्को सहित कईयों को धूल चटा दी। 

तीन घंटे तक चली लड़ाई
कहते हैं कि अपने से कई गुना अधिक आकार वाले पहलवानों को गामा ने हराया था। एक मुकाबला तो तीन घंटे तक चला लेकिन विदेशी पहलवान गामा को पटखनी नहीं दे पाए। फाइनल में हार के डर से पोलैंड के चैंपियन मैच के लिए ही नहीं पहुंचे जिसके बाद गामा को विश्व चैंपियन घोषित कर दिया गया। इससे पूरी दुनिया यह बात मानने पर मजबूर हो गई कि कोई भारतीय भी विश्व चैंपियन बन सकता है। इस खबर ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय आंदोलन को नई उर्जा दी। 

बने रूस्तम ए हिंद
भारत लौटने पर गामा ने तत्कालीन भारतीय चैंपियन रहीम बख्श सुल्तानीवाला को हरा दिया। सुल्तानी वाला का वजह 130 किलोग्राम और लंबाई 6 फीट 9 इंच थी। उनसे तीन मुकाबले ड्रॉ पर समाप्त हुए। हालांकि गामा ने सुल्तानीवाला को मैट से बाहर कर दिया। उसकी पसलियां टूट जाने से सुल्तानीवाला को गद्दी गंवानी पड़ी और गामा नया रुस्तम ए हिंद बन गए। 1920 में पटियाला के राजा ने पोलिश चैंपियन जबीस्को को आमंत्रित किया।  जिनसे गामा ने 10 साल पहले लड़ाई लड़ी थी। फिर भी 42 साल के गामा ने 50 साल के जबीस्को को मात्र 42 सेकेंड से भी कम समय में हरा दिया। अगले साल गामा ने स्वीडिश चैंपियन जेसी पीटरसन को हराया। द ग्रेट गामा की बादशाहत 50 साल तक कायम रही। विभाजन के बाद गामा पाकिस्तान में ही रहे। लेकिन वह विभाजन के बाद हुए सांप्रदायिक नरसंहार के दौरान अपने पड़ोस में रहने वाले अल्पसंख्यक हिंदुओं की रक्षा करने में सबसे आगे थे।

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