झारखंड का अनोखा मंदिर जहां एक हजार साल से सपरिवार विराजमान है महाकाल, नाग-नागिन भी दर्शन के लिए आते हैं

सावन के महीनें में हम झारखंड राज्य के चतरा में स्थित भगवान भोलेनाथ के ऐसे मंदिर की बात कर रहे है,जहां वे अपने परिवार के साथ हजार वर्षों से विराजमान है। यहां दर्शन के लिए पूरे साल भीड़ लगी रहती है।

Sanjay Chaturvedi | Published : Jul 25, 2022 5:41 AM IST / Updated: Jul 25 2022, 11:19 AM IST

चतरा: झारखंड में एक ऐसा शिव मंदिर है जहां भगवान भोलेनाथ एक हजार साल से सपरिवार विराजमान हैं। चतरा जिले के इटखोरी प्रखंड में यह मंदिर है। इस मंदिर का नाम भद्रकाली मंदिर है। मंदिर में शिव परिवार की एक से बढ़कर एक अति प्राचीन प्रतिमाएं हैं। जीव रूप में सर और नीलकंठ पक्षी भी मंदिर में विद्यमान है। इस मंदिर में सहस्त्र शिवलिंगम, उमामहेश्वर और नंदी की प्रतिमा अद्वितीय है। श्रावण मास मंदिर में पूजा करने के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुट रही है। सावन माह के अलावा सालों भर यहां श्रद्धालु पूजा करने आते हैं। शिव मंदिर का प्राचीन प्रवेश द्वार 20 फीट ऊंचा है। 

नीलकंठ पक्षी जीव रूप में और नाग नागिन देते हैं दर्शन
मंदिर में सहस्त्र शिवलिंगम के सामने विशाल रूप में नंदी की एक प्रतिमा है। प्रतिमा को जिस कोन से देखें वह अलग दिखाई देता है। जबकि सर्प और नीलकंठ पक्षी जीव रूप में यहां साक्षात श्रद्धालुओं को दर्शन देते हैं। सर्व देवता भी मंदिर में अक्सर नजर आते हैं। जानकार बताते हैं कि याद स्थल करीब एक हजार साल से श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र रहा है। समय के साथ भगवान भोलेनाथ की महिमा बढ़ती जा रही है। इस मंदिर की खास बात है क्या महानगरी मुंबई में काम करने वाले लोग श्रावण माह में जलाभिषेक करने मंदिर जरूर आते हैं। जानकारों का यह भी कहना है कि इस मंदिर में नाग-नागिन अक्सर दिखाई देते हैं। बिना किसी क्षति के भक्तों को मंदिर परिसर में नाग नागिन के दर्शन होते रहते हैं। नीलकंठ पक्षी का दर्शन भी कर मंदिर आए भक्त खुद को धन्य समझते हैं। 

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18 टन नंदी की प्रतिमा प्रकट करते हैं अलग-अलग भाव
मंदिर में 18 टन की विशालकाय नंदी की अनोखी प्रतिमा अलग-अलग भाव प्रकट करती है। अलग-अलग कोन से देखने पर प्रतिमा में वात्सल्य, दर्द से कराहती, ममतामई और जवानी में बच्चों जैसी हरकत करती मुद्रा दिखती है।

युवराज सिद्धार्थ ने यहां की थी तपस्या
जानकारों के अनुसार सालों पूर्व शांति की खोज में निकले युवराज सिद्धार्थ ने यहां कई साल तक तपस्या की थी। उनकी मां उन्हें वापस ले जाने आई थी। लेकिन जब सिद्धार्थ का ध्यान नहीं टूटा तो उनके मुख से इतखोई शब्द निकला जो बाद में इटखोरी में तब्दील हुआ। जैन धर्मावलंबियों ने जैन धर्म के दसवें तीर्थंकर भगवान शीतल नाथ स्वामी की जन्म भूमि की मान्यता दी है। प्राचीन काल में तपस्वी मेघा मुनि ने अपने तप से इस परिसर को सिद्ध करके सिद्धपीठ के रूप में स्थापित किया था। भगवान राम के वनवास तथा पांडवों के अज्ञातवास की पौराणिक धार्मिक कथाओं से मां भद्रकाली मंदिर परिसर का जुड़ाव रहा है।

रांची से 158 दूर है मंदिर
भगवान शिव का यह अनोखा मंदिर राज्य के राजधानी रांची से करीब 158 किलोमीटर दूर है रांची से हजारीबाग होते हुए यहां तक पहुंचने के लिए भक्त 3 घंटे की दूरी तय कर बस या निजी वाहन से मंदिर आ सकते हैं।

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