
देवघर : झारखंड (Jharkhand) के देवघर (Deoghar) में हुए रोप-वे हादसे का रेस्क्यू पूरा होने के बाद सभी ने राहत की सांस ली है। जवानों की थकान उनके चेहरे पर साफ-साफ नजर आ रही है लेकिन जज्बा कहीं से भी कम नहीं है। जिन्होंने अपनों को पाया, उनके आंसू छलक रहे हैं तो जिन दो की जिंदगी नहीं बच सकी, उनके परिजन मायूस हैं। करीब 45 घंटे तक चले इस रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान सेना के जवानों ने लोगों की जान बचाने अपने जान की बाजी लगा दी। कई कठिनाइयों के बावजूद हार नहीं मानी और आखिरकार 46 जिंदगियों को सही सलामत बचा लिया। पढ़िए रोप-वे हादसेकी पूरी कहानी...
जब हवा में अटक गई 48 जिंदगी
त्रिकुट पहाड़ पर त्रिकुटाचल महादेव मंदिर और ऋषि दयानंद की आश्रम है। यहां हर दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। यहां तक पहुंचने के लिए एक रोप-वे बनाया गया है। यह झारखंड का एकमात्र और बिहार झारखंड का सबसे ऊंचा रोपवे भी है। पहाड़ तक पहुंचने के लिए एक-एक ट्रॉली में 4-4 लोगों को बैठाकर भेजा जाता है। लेकिन रविवार को रामनवमी का दिन था और श्रद्धालुओं की संख्या ज्यादा। इसको देखते हुए सभी ट्रॉलियों को खोल दिया गया और एक साथ कई ट्रॉलिया रवाना कर दी गईं। बस यही लापरवाही भारी पड़ गई। रोप-वे के केबल पर लोड बढ़ गया और उसका एक रोलर टूट गया। अचानक ऐसा होते देख श्रद्धालुओं की सांस अटक गई। वे कुछ समझ पाते तब तक एक के बाद तीन ट्रॉलियां टकरा गईं। उनमें से दो लुढ़कर नीचे जा गिरी। कई श्रद्धालु घायल हो गए थे और कई हवा में लटक गए। हादसा शाम चार बजे के आसपास हुआ।
रेस्क्यू शुरू हुआ लेकिन सफलता नहीं
जैसे ही यह हादसा हुआ नीचे अफरा-तफरी मच गई। ऊपर फंसे श्रद्धालु चीख रहे थे और नीचे लोग इधर-उधर फोन लगा रहे थे। 2500 फीट ऊंचाई पर जो ट्रॉली फंसी थी, उनमें 48 लोग थे। बच्चे और महिलाएं भी इसमें फंस गई थी। राहत और बचाव कार्य तो शुरू हुआ लेकिन जल्द ही शाम हो गई और इसे रोकना पड़ा। रातभर भूख-प्यास से लोग डरे-सहमें ऊपर ही अटके रहे और नीचे से उनका हौसलाअफजाई किया जा रहा था।
देवदूत बनकर आए जवान
इसके बाद सेना ने मोर्चा संभाला। चारों तरफ पहाड़ियां, नीचे खाई और तारों के जाल से रेस्क्यू ऑपरेशन में काफी कठिनाईयां आई लेकिन सेना के जवान न रुके और न थके। ये बचाव कार्य कितना कठिन था इसका अंदाजा इस बात से लग जाएगा कि रविवार शाम 5 बजे हुए इस हादसे के बाद बचाव कार्य अगले दिन यानी सोमवार को शुरू हो पाया। हादसे के बाद NDRF और पुलिस की टीम मौके पर पहुंची, लेकिन 2500 फीट की ऊंचाई पर बचाव अभियान चलाना काफी मुश्किल काम था। इसके बाद सेना को बुलाया गया और बाद में एयरफोर्स की मदद ली गई।
अलग-अलग ऑपरेशन चलाए गए
आर्मी के जवान, वायुसेना की टीम और NDRF ने 45 घंटे चले इस रेस्क्यू ऑपरेशन को दो तरीके से चलाकर लोगों की जिंदगी बचाई। पहला वायुसेना हेलिकॉप्टर के जरिए ट्रॉली में फंसे लोगों को एयरलिफ्ट कर रही थी, तो दूसरी तरफ सेना और NDRF की टीम रोप-वे के तारों को रस्सी से बांधकर श्रद्धालुओं को नीचे उतार रही थी। उनकी मदद के लिए स्थानीय प्रशासन भी मौके पर जुटा रहा। ऊपर फंसे लोगों तक खाना-पीना पहुंचाना भी जरुरी था तो इसके लिए ड्रोन की मदद ली गई और सभी तक खाने का सामान पहुंचाया गया।
45 घंटे का ऑपरेशन और आखिरकार बच गई जिंदगियां
रविवार को शाम होने के चलते ऑपरेशन ज्यादा देर तक नहीं चल सका लेकिन योजना को अंजाम देने रातभर मंथन चलता रहा। सोमवार को सेना, वायुसेना, ITBP और NDRF की टीमों ने 12 घंटे तक रेस्क्यू चलाया। शाम होते-होते 33 लोगों को बचा लिया गया था, हालांकि रेस्क्यू के दौरान सेफ्टी बेल्ट टूट जाने के कारण एक शख्स नीचे गिर गया था और उसकी मौत भी हो गई थी। इसके बाद अंधेरा बढ़ने और कोहरा छाने के कारण ऑपरेशन रोक दिया गया था। मंगलवार सुबह 6 बजे से ही एक बार फिर रेस्क्यू शुरू हुआ। यह तीसरा दिन था। लगभग सात घंटे चले इस ऑपरेशन के बाद दोपहर होते-होते ट्रॉलियों में फंसे बाकी लोगों को सुरक्षित निकाल लिया गया।
बस किसी तरह जिंदा बच जाएं
इस हादसे में जो कई घंटों तक हवा में फंसे उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने एक-एक पल काटा है, उसकी कहानी बहुत भयानक है। उन्होंने बताया सबसे बड़ी चुनौती थी हौसला बनाए रखने की. खाने-पीने की सुध तो थी नहीं लेकिन दैनिक क्रिया की सबसे बड़ी समस्या थी। ऐसा लग रहा था कि अब नहीं बचेंगे। हालांकि जवान लगातार हौसला बढ़ा रहे थे। खुद के साथ बच्चों और महिलाओं की भी चिंता थी। एक-एक पल कठिनाई से बीत रहा था। जैसे ही किसी के मौत की खबर मिलती सभी डर जाते। रात के वक्त बहुत डर लगता था। किसी तरह बात कर सभी एक-दूसरे की समझाने में लगे थे। भगवान का शुक्र है कि हम सब बच गए।
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