972 साल बाद शनि जयंती पर बन रहा है दुर्लभ संयोग, देश-दुनिया पर भी पड़ेगा इसका असर

धर्म ग्रंथों के अनुसार, ज्येष्ठ मास की अमावस्या पर शनि जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 22 मई, शुक्रवार को है।

उज्जैन. काशी के ज्योतिषाचार्य पं.गणेश मिश्रा के अनुसार, 972 साल बाद इस बार शनि जयंती पर ग्रहों का दुर्लभ संयोग बन रहा है। ग्रहों की ऐसी स्थिति 21 मई 1048 को बनी थी। अब ऐसा संयोग अगले 500 सालों तक भी नहीं बनेगा।

दुर्लभ ग्रह स्थिति का देश पर असर
- ज्योतिषाचार्य पं. मिश्रा के अनुसार, इस बार शनि जयंती पर शनि खुद की राशि मकर में बृहस्पति के साथ रहेगा। इसके पहले 21 मई 1048 को ये संयोग बना था।
- शनि और गुरु के एक ही राशि में होने से देश में न्याय और धर्म बढ़ेगा। प्राकृतिक आपदाओं और महामारी से जीतकर भारत एक ताकवर देश के रूप में उभरेगा।
- देश में धार्मिक गतिविधियां बढ़ेंगी। मजदूर वर्ग और नीचले स्तर पर काम करने वाले लोगों के लिए अच्छा समय शुरू होगा। खेती को बढ़ावा मिलेगा। अनाज और खाने की अन्य चीजों का उत्पादन भी बढ़ेगा।
- शनि जयंती पर वृष राशि में सूर्य, चंद्र, बुध और शुक्र एक साथ रहेंगे। इन 4 ग्रहों के कारण देश की अर्थव्यवस्था बढ़ेगी। देश की कानून व्यवस्था और व्यापारिक नीतियों में बदलाव होगा।
- विश्व में भारत की प्रसिद्धि बढ़ेगी। विश्व के दूसरे देश भारत को सहयोग करेंगे। बड़े प्रशासनिक पदों की जिम्मेदारी निभा रही महिलाओं का प्रभाव बढ़ेगा।

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स्कंदपुराण के अनुसार शनि का जन्म
- स्कंदपुराण के काशीखंड की कथा के अनुसार राजा दक्ष की पुत्री संज्ञा का विवाह सूर्य देवता के साथ हुआ। इसके बाद संज्ञा ने वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना को जन्म दिया।
- सूर्य का तेज ज्यादा होने से संज्ञा परेशान थी। संज्ञा अपनी छाया सूर्य के पास छोड़कर तपस्या करने चली गई। ये बात सूर्य को पता नहीं थी। इसके बाद छाया और सूर्य से भी 3 संतान हुई। जो कि शनिदेव,  मनु और भद्रा (ताप्ती नदी) थी। छाया पुत्र होने से शनिदेव का रंग काला है।
- जब सूर्य देव को छाया के बारे में पता चला तो उन्होंने छाया को श्राप दे दिया। इसके बाद शनिदेव और सूर्य पिता-पुत्र होने के बाद भी एक-दूसरे के शत्रु हो गए।

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