16 जुलाई को सूर्य के राशि बदलते ही शुरू होगा दक्षिणायन, इस दौरान बढ़ जाता है आसुरी शक्तियों का प्रभाव

Published : Jul 13, 2021, 08:52 AM ISTUpdated : Jul 13, 2021, 12:48 PM IST
16 जुलाई को सूर्य के राशि बदलते ही शुरू होगा दक्षिणायन, इस दौरान बढ़ जाता है आसुरी शक्तियों का प्रभाव

सार

16 जुलाई, शुक्रवार को सूर्य के कर्क राशि में जाते ही सूर्य दक्षिणायन हो जाएगा यानी दक्षिणी गोलार्द्ध की ओर गति करने लगेगा। मकर संक्रांति तक सूर्य इसी अवस्था में रहेगा।

उज्जैन. 16 जुलाई, शुक्रवार को सूर्य के कर्क राशि में जाते ही सूर्य दक्षिणायन हो जाएगा यानी दक्षिणी गोलार्द्ध की ओर गति करने लगेगा। मकर संक्रांति तक सूर्य इसी अवस्था में रहेगा। हिंदू कैलेंडर के श्रावण महीने से पौष मास तक सूर्य का उत्तरी छोर से दक्षिणी छोर तक जाना दक्षिणायन कहलाता है।

सूर्य के साथ चलते हैं सर्प, देवता और राक्षस
धर्म ग्रंथों के अनुसार, दक्षिणायन यात्रा में आरम्भ के दो माह सूर्य के रथ के साथ इंद्र तथा विवस्वान नाम के दो आदित्य, अंगिरा और भृगु नाम के दो ऋषि, एलापर्ण तथा शंखपाल नाम के दो नाग, प्रम्लोचा और दुंदुका नाम की दो अप्सराएं, भानु और दुर्धर नामक दो गन्धर्व, सर्प तथा ब्राह्म नाम के दो राक्षस, स्रोत तथा आपूरण नाम के दो यक्ष चलते हैं।

दक्षिणायन के 4 महीनों में नहीं किए जाते शुभ काम
हिंदू कैलेंडर के श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष और पौष ये 6 महीने दक्षिणायन में आते हैं। इनमें से शुरुआती 4 महीने किसी भी तरह के शुभ और नए काम नहीं करना चाहिए।
इस दौरान देवशयन होने के कारण दान, पूजन और पुण्य कर्म ही किए जाने चाहिए। इस समय में भगवान विष्णु के पूजन का खास महत्व होता है और यह पूजन देवउठनी एकादशी तक चलता रहता है क्योंकि विष्णु देव इन 4 महीनों के लिए क्षीर सागर में योग निद्रा में शयन करते हैं।

दक्षिणायन को पितृयान भी कहते हैं
धर्म ग्रंथों के अनुसार दक्षिणायन का प्रारंभ देवताओं का मध्याह्न होता है और उत्तरायन के प्रारंभ का समय देवताओं की मध्यरात्रि कहलाता है। इस तरह वैदिक काल से ही उत्तरायण को देवयान और दक्षिणायन को पितृयान कहा जाता रहा है। दक्षिणायन सूर्य की यात्रा के समय देवप्राण क्षीण पड़ने लगते हैं और आसुरी शक्तियों का वर्चस्व बढ़ जाता है।
 

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