7 अक्टूबर को इस विधि से करें घट स्थापना व पूजा, ये है आवश्यक सामग्री और शुभ मुहूर्त, ऐसे करें आरती

इस बार शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri 2021) का आरंभ 7 अक्टूबर, गुरुवार से हो रहा है, जो 14 अक्टूबर, गुरुवार तक रहेगी। इस बार चतुर्थी तिथि का क्षय हो जाने के कारण नवरात्रि 8 दिनों की रहेगी।

उज्जैन. शारदीय नवरात्रि के 8 दिनों में अनेक शुभ योग-संयोग बन रहे हैं जो देवी की कृपा पाने के सर्वश्रेष्ठ दिन रहेंगे। प्रतिपदा तिथि 6 अक्टूबर को शाम 4.35 से प्रारंभ होकर 7 अक्टूबर को दोपहर 1.46 बजे तक रहेगी। इस दिन चित्रा नक्षत्र रात 9.13 बजे तक रहेगा। चूंकि प्रतिपदा तिथि उदयाकाल में 7 अक्टूबर को रहेगी इसलिए इसी दिन घट स्थापना के साथ शारदीय नवरात्र (Shardiya Navratri 2021) का प्रारंभ होगा।

घट स्थापना का शुभ मुहूर्त (Shardiya Navratri 2021)
घट स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 06.17 से 10.11 मिनट तक रहेगा। इसके बाद अभिजीत मुहूर्त सुबह 11.46 से दोपहर 12.32 तक रहेगा।

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घट स्थापना के लिए आवश्यक सामग्री
कलश स्थापना के लिए आवश्यक सामग्री में जवारे के बीच अनाज, चौड़े मुंह वाला मिट्टी की एक मटकी, उसके ऊपर रखने वाला बर्तन, पवित्र स्थान से लायी गयी मिट्टी, कलश, गंगाजल, आम या अशोक के पत्ते, सुपारी, जटा वाला नारियल, अक्षत, लाल वस्त्र और फूल।

इन 6 स्टेप्स में करें घट स्थापना

1. सबसे पहले घट स्थापना पर उपयोग की जाने वाली सभी चीजें एक स्थान पर एकत्रित कर लें। अगर घट स्थापना के लिए कोई पंडित नहीं है तो आप स्वयं ही इस आसान विधि से ये कार्य कर सकते हैं। 
2. जिस स्थान पर घट स्थापना करना है, उसे अच्छी तरह से साफ करें। संभव हो तो गंगाजल छिड़कें। इसके बाद उस स्थान पर थोड़े से चावल रखें। इसके बाद उसके ऊपर एक पटिया (बाजोट) रखकर लाल कपड़ा बिछा दें।
3. अब उस पटिए पर कोई ऐसी चीज रखें जिससे घट यानी मटका इधर-उधर लुढ़के नहीं। इसके बाद उसके ऊपर घट स्थापित करें। घट यानी मटकी में जल भरकर उसमें एक लौंग का जोड़ा, पूजा की सुपारी, हल्दी की गांठ, दूर्वा और रुपए का सिक्का डालें।  
4. अब घट के ऊपर आम के पत्ते लगाकर उस पर नारियल रखें और फिर इस कलश को देवी दुर्गा की प्रतिमा की दायीं ओर स्थापित करें। कलश स्थापना पूर्ण होने के बाद देवी का आह्वान करते हुए ये मंत्र बोलें-
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य।।
5. मूर्ति अगर कच्ची मिट्टी से बनी हो और उसके खंडित होने की संभावना हो तो उसके ऊपर उसके ऊपर शीशा लगा दें।
6. दुर्गा देवी की पूजा में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की पूजा और श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ नौ दिनों तक प्रतिदिन करना चाहिए।

इन बातों का रखें ध्यान...
1. नवरात्रि में माता दुर्गा के सामने नौ दिन तक अखंड ज्योत जलाई जाती है। यह अखंड ज्योत माता के प्रति आपकी अखंड आस्था का प्रतीक स्वरूप होती है। माता के सामने एक एक तेल व एक शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए।
2. मान्यता के अनुसार, मंत्र महोदधि (मंत्रों की शास्त्र पुस्तिका) के अनुसार दीपक या अग्नि के समक्ष किए गए जाप का साधक को हजार गुना फल प्राप्त हो है। कहा जाता है-
दीपम घृत युतम दक्षे, तेल युत: च वामत:।
अर्थात- घी का दीपक देवी के दाहिनी ओर तथा तेल वाला दीपक देवी के बाईं ओर रखना चाहिए।
3. अखंड ज्योति पूरे नौ दिनों तक जलती रहनी चाहिए। इसके लिए एक छोटे दीपक का प्रयोग करें। जब अखंड ज्योत में घी डालना हो, बत्ती ठीक करनी हो तो या गुल झाड़ना हो तो छोटा दीपक अखंड दीपक की लौ से जलाकर अलग रख लें।
4. यदि अखंड दीपक को ठीक करते हुए ज्योत बुझ जाती है तो छोटे दीपक की लौ से अखंड ज्योत पुन: जलाई जा सकती है छोटे दीपक की लौ को घी में डूबोकर ही बुझाएं।

इस आसान विधि से करें मां दुर्गा की आरती...
हिंदू धर्म में प्रत्येक धार्मिक कर्म-कांड के बाद भगवान की आरती उतारने का विधान है। भगवान की आरती उतारने के भी कुछ विशेष नियम होते हैं। ध्यान देने योग्य बात है कि देवताओं के सम्मुख चौदह बार आरती उतारना चाहिए। चार बार चरणों पर से, दो बार नाभि पर से, एक बार मुख पर से तथा सात बार पूरे शरीर पर से। आरती की बत्तियाँ 1, 5, 7 अर्थात विषम संख्या में ही बनाकर आरती की जानी चाहिए।

मां दुर्गा की आरती...
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥1॥ जय अम्बे...
माँग सिंदूर विराजत टीको मृगमदको।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चन्द्रवदन नीको ॥2॥ जय अम्बे....
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्त-पुष्प गल माला, कण्ठन पर साजै ॥3॥ जय अम्बे...
केहरी वाहन राजत, खड्ग खपर धारी।
सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुखहरी ॥4॥ जय अम्बे...
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योति ॥5॥ जय अम्बे...
शुंभ निशुंभ विदारे, महिषासुर-धाती।
धूम्रविलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥6॥ जय अम्बे...
चण्ड मुण्ड संहारे, शोणितबीज हरे।
मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे ॥7॥ जय अम्बे...
ब्रह्माणी, रूद्राणी तुम कमलारानी।
गम-निगम-बखानी, तुम शिव पटरानी ॥8॥ जय अम्बे...
चौसठ योगिनि गावत, नृत्य करत भैरूँ।
बाजत ताल मृदंगा औ बाजत डमरू ॥9॥ जय अम्बे...
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।
भक्तन की दुख हरता सुख सम्पति करता ॥10॥ जय अम्बे...
भुजा चार अति शोभित, वर मुद्रा धारी।
मनवाञ्छित फल पावत, सेवत नर-नारी ॥11॥ जय अम्बे...
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
(श्री) मालकेतु में राजत कोटिरतन ज्योती ॥12॥ जय अम्बे...
(श्री) अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै।

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