आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। इस बार ये तिथि 24 सितंबर, शुक्रवार को है। इसे विघ्नराज चतुर्थी भी कहा जाता है। चतुर्थी तिथि के स्वामी भगवान श्रीगणेश हैं। इसलिए इस दिन मुख्य रूप से भगवान श्रीगणेश की ही पूजा की जाती है।
उज्जैन. संकष्टी चतुर्थी व्रत (24 सितंबर, शुक्रवार) में शाम को चंद्रमा के दर्शन करने के बाद ही भोजन किया जाता है। ये व्रत वैसे तो महिला प्रधान हैं, लेकिन पुरुष भी इस व्रत को कर सकते हैं। आगे जानिए इस व्रत की पूजा विधि और शुभ मुहूर्त…
चतुर्थी कब से कब तक?
पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि का प्रारंभ 24 सितंबर, शुक्रवार को सुबह 08.29 पर होगा। इसका समापन 25 सितंबर, शनिवार को सुबह 10.36 पर होगा। चतुर्थी पर गणेश जी की पूजा दोपहर में भी होती है, ऐसे में आप राहुकाल का ध्यान रखकर गणपति पूजा करें।
संकष्टी चतुर्थी पूजा मुहूर्त
इस बार संकष्टी चतुर्थी पर सर्वार्थ सिद्धि नाम का शुभ योग भी बन रहा है। इस दिन आप अभिजित मुहूर्त या फिर विजय मुहूर्त में गणेश जी की पूजा कर सकते हैं। इस दिन अभिजित मुहूर्त दिन में 11.49 से दोपहर 12.37 तक है। वहीं, विजय मुहूर्त दोपहर 02.14 से दोपहर 03.02 तक है।
ये है पूजा विधि
- संकष्टी चतुर्थी की सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और इस दिन पीले या लाल रंग के वस्त्र पहनना शुभ होता है।
- इस दिन सबसे पहले पूजा स्थल की अच्छाई तरह से सफाई कर लें। इसके बाद लाल रंग के आसन पर गणेश जी की प्रतिमा को स्थापित करें।
- उनके सामने घी का दीप प्रजवलित करें और सिंदूर से तिलक करें। इसके बाद गणेश जी को फल- फूल और मिष्ठान का भोग लगाएं।
- पूजा में गणेश जी को 21 दूर्वा गांठे विभिन्न नामों से उच्चारित करके अर्पित करें।
- संकष्टी चतुर्थी का व्रत शाम को चंद्रदेव को अर्घ्य देते हुए पूरा करें। इस दिन सामर्थ्य अनुसार दान करने का विशेष महत्व होता है.
- मान्यता है कि इस दिन सच्चे मन से गणेशजी की पूजा करने से आपके सभी संकट दूर हो जाते है, इसलिए इसे संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है।