Shani Amavasya 2022: शनिश्चरी अमावस्या पर दिन भर रहेगा शिव योग, बनेगा ग्रहों का दुर्लभ संयोग

Shani Amavasya 2022: इस बार 27 अगस्त, शनिवार को भाद्रपद मास की अमावस्या होने से शनिश्चरी अमावस्या का शुभ योग बन रहा है। साल में 1 या 2 बार ही ऐसा योग बनता है। इस दिन शनिदेव से संबंधित उपाय विशेष रूप से किए जाते हैं।
 

Manish Meharele | Published : Aug 26, 2022 4:08 AM IST

उज्जैन. हिंदू धर्म में अमवस्या तिथि का विशेष महत्व है। ये तिथि जब मंगलवार को होती है तो भौमी अमावस्या, सोमवार को होती है तो सोमवती अमवस्या और शनिवार को होती है शनिश्चरी अमावस्या (Shani Amavasya 2022) कहलाती है। इस बार 27 अगस्त, शनिवार को भाद्रपद मास की अमावस्या होने से शनिश्चरी अमावस्या का शुभ योग बन रहा है। भाद्रपद मास में शनिश्चरी अमावस्या का योग 14 साल बाद बना है। ज्योतिषियों के अनुसार, भाद्रपद मास में शनि अमावस्या का योग 30 अगस्त 2008 में बना था यानी 14 साल पहले। 

4 ग्रह रहेंगे एक ही राशि में
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र के अनुसार, इस बार शनिश्चरी अमावस्या ग्रहों का बहुत ही शुभ योग बन रहा है। ऐसा संयोग सालों में एक बार बनता है। 27 अगस्त को शनिश्चरी अमावस्या पर 4 ग्रह स्वराशि में रहेंगे। ऐसा दुर्लभ संयोग कम ही बनता है। इस दिन सूर्य सिंह राशि में, बुध कन्या में, गुरु मीन और शनि मकर राशि में रहेंगे। ये 4 ग्रह मनुष्य जीवन पर सबसे अधिक प्रभाव डालते हैं। इनका स्वराशि में होना शुभ फल देने वाला रहेगा।

ये 2 शुभ योग भी रहेंगे खास
डॉ. मिश्र के अनुसार,  27 अगस्त, शनिवार को पूरे दिन मघा नक्षत्र रहेगा। शनिवार को मघा नक्षत्र होने से पद्म नाम का शुभ योग बनेगा। साथ ही शिव नाम का एक अन्य शुभ योग भी दिन भर रहेगा। इस दिन शनि के नक्षत्र में बृहस्पति मौजूद रहेगा। ये सभी ग्रह-नक्षत्र बहुत ही शुभ योग बना रहे हैं। इन योगों में की गई पूजा, उपाय आदि जीवन में उन्नति देने वाले रहेंगे। इस दिन शनिदेव के साथ-साथ शिवजी और हनुमान जी की पूजा भी की जाए तो हर तरह की परेशानियों से छुटकारा मिल सकता है।

कुशग्रहणी और पिठौरी अमावस्या भी
भाद्रपद मास की अमावस्या को कुशग्रहणी अमावस्या भी कहा जाता है। इस दिन शुभ कामों में उपयोग की जाने वाली कुशा नामक घास को तोड़कर इकट्ठा किया जाता है, इसका उपयोग साल भर में आने वाले कामों में किया जाता है। धर्म ग्रंथों में घास को बहुत ही पवित्र माना गया है। पितृ कर्म में इस घास का उपयोग आवश्यक रूप से किया जाता है।


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