6 अक्टूबर को गजछाया योग में करें पितरों का श्राद्ध, 8 साल बाद पितृ पक्ष में बनेगा ये संयोग

सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या पितृ पक्ष (Pitru Paksha 2021) का अंतिम दिन होता है। इस बार ये पर्व 6 अक्टूबर, बुधवार को है। मान्यता है कि इस दिन श्राद्ध करने से भूले-बिसरे सभी पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।

उज्जैन. ज्योतिषियों के अनुसार, इस बार सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या पर कुतप काल में (श्राद्ध के लिए विशेष) गजछाया नाम का शुभ योग बन रहा है। इस शुभ योग में श्राद्ध, तर्पण और दान करने बहुत ही पुण्यदायी माना गया है।  इसके पहले 7 अक्टूबर 2010 को सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या पर ये शुभ योग बना था और अब 8 साल बाद 2029 में फिर से 7 अक्टूबर को ही ये संयोग बनेगा। इस बार खास बात ये भी है कि पितृ पक्ष (Pitru Paksha 2021) की अमावस्या बुधवार को है और इस दिन सूर्य-चंद्रमा दोनों ही बुध की राशि यानी कन्या में रहेंगे।

12 सालों के लिए तृप्त होते हैं पितृ
गजछाया योग का वर्णन स्कंदपुराण और महाभारत में किया गया है। तिथि, नक्षत्र और ग्रहों से मिलकर बनने वाले इस शुभ संयोग में श्राद्ध करने का विशेष महत्व बताया गया है। इस शुभ योग में पितरों के लिए किए गए श्राद्ध और दान का अक्षय फल मिलता है। इस शुभ योग में श्राद्ध करने से कर्ज से मुक्ति मिलती है, घर में समृद्धि और शांति भी होती है। गजछाया योग में किए गए श्राद्ध और दान से पितर अगले 12 सालों के लिए तृप्त हो जाते हैं।

कब से कब तक रहेगा ये शुभ योग?
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र के अनुसार, सूर्य साल में एक बार हस्त नक्षत्र में आता है और ऐसा ज्यादातर पितृ पक्ष के दौरान ही होता है। गजछाया योग के लिए सूर्य का हस्त नक्षत्र में होना जरूरी माना जाता है। 6 अक्टूबर, बुधवार को सूर्योदय से शाम 4.34 तक ये शुभ योग रहेगा। ये योग कुतप काल (सुबह 11.36 से दोपहर 12.24 ) में भी रहेगा। इसलिए इस दिन श्राद्ध और दान का अक्षय पुण्य मिलेगा। साथ ही पितर कई सालों के लिए तृप्त हो जाएंगे।

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दान का विशेष महत्व
अग्नि, मत्स्य और वराह पुराण में भी गजछाया योग का वर्णन किया गया है। इस शुभ योग में पितरों के लिए श्राद्ध और घी मिली हुई खीर का दान करने से पितृ कम से कम 12 सालों के लिए तृप्त हो जाते हैं। गजछाया योग में तीर्थ-स्नान, ब्राह्मण भोजन, अन्न, वस्त्रादि का दान और श्राद्ध करने का विशेष महत्व बताया गया है। इसमें विधि-विधान से श्राद्ध करने से पितरों को तृप्ति मिलती है और श्राद्ध करने वाले को पारिवारिक उन्नति और संतान से सुख मिलता है। साथ ही ऋण से भी मुक्ति मिलती है।

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