Surup Dwadashi 2022: 20 दिसंबर को त्रिपुष्कर योग में करें सुरूप द्वादशी का व्रत, जानें विधि और महत्व

Surup Dwadashi 2022: पौष मास में भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है। इस महीने के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को सुरूप द्वादशी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के नारायण स्वरूप की पूजा का विधान है। इस बार ये तिथि 20 दिसंबर, मंगलवार को है।
 

Manish Meharele | / Updated: Dec 20 2022, 05:45 AM IST

उज्जैन. भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और उनकी कृपा पाने के लिए कई विशेष व्रत-उपवास किए जाते हैं। सुरूप द्वादशी (Surup Dwadashi 2022) भी इनमें से एक है। ये व्रत पौष मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को किया जाता है। इस बार ये तिथि 20 दिसंबर, मंगलवार को है। इस व्रत में भगवान विष्णु के नारायण स्वरूप की पूजा का विशेष महत्व धर्म ग्रंथों में बताया गया है। इस व्रत के बारे में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था। इस बार द्वादशी तिथि पर कई शुभ योग भी बन रहे हैं, जिसके चलते इसका महत्व और भी बढ़ गया है। आगे जानिए सुरूप द्वादशी का महत्व व अन्य खास बातें…

इन शुभ योगों में किया जाएगा सुरूप द्वादशी का व्रत (Surup Dwadashi 2022 Shubh Yog)
पंचांग के अनुसार, 20 दिसंबर, मंगलवार को पौष मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि पूरे दिन रहेगी। मंगलवार को पहले स्वाती नक्षत्र होने से ध्वजा और इसके बाद विशाखा नक्षत्र होने से श्रीवत्स नाम के 2 शुभ योग इस दिन बन रहे हैं। इनके अलावा इस दिन त्रिपुष्कर, सुकर्मा और धृति नाम के 3 अन्य शुभ योग भी रहेंगे।

इस विधि से करें व्रत-पूजा (Surup Dwadashi 2022 Puja Vidhi)
- धर्म ग्रंथों के अनुसार, सुरूप द्वादशी की सुबह स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें। इसके बाद शंख में दूध और गंगाजल मिलाकर भगवान विष्णु मूर्ति का अभिषेक करें। 
- इसके बाद दीप जलाकर पूजन सामग्री जैसे अबीर, गुलाल, रोली, माला, फूल, चावल आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाते रहें और फिर तुलसी पत्र चढ़ाएं। भगवान को मौसमी फल भी जरूर अर्पित करें।
- अंत में भोग लगाएं। भोग में तुलसी के पत्ते जरूर डालें। इसके बाद भगवान की आरती करें और प्रसाद भक्तों को बांट दें। फिर ब्राह्मण भोजन या जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाएं। 
- धर्म ग्रंथों के अनुसार, इस तरह विधि-विधान से जो व्यक्ति भगवान विष्णु की पूजा सुरूप द्वादशी पर करता है, उसके जाने-अनजाने में हुए हर तरह के पाप और दोष दूर हो होते हैं।

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पौष महीने की द्वादशी का महत्व (Significance of Surup Dwadashi)
महाभारत के आश्वमेधिक पर्व में श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि “जो भक्त सुरूप द्वादशी का उपवास करता है, वह मुझे प्रिय होता है। पौष और खरमास दोनों में भगवान विष्णु के नारायण रूप की पूजा करने का विधान है। इसका वर्णन विष्णुधर्मोत्तर पुराण में भी किया गया है। इस एकादशी पर तीर्थ के जल में तिल मिलाकर नहाना चाहिए। फिर सूर्य को जल चढ़ाना चाहिए। इससे हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं।


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