वास्तु टिप्स: दक्षिण-पूर्व में होता है अग्निदेव का वास, घर में इसी दिशा में होना चाहिए किचन

वास्तु शास्त्र के ग्रंथों में भोजनशाला यानी किचन को बहुत ही खास माना गया है। वराहमिहिर के ज्योतिष ग्रंथ बृहत्संहिता में बताया गया है कि घर का किचन पूर्व और दक्षिण दिशा के बीच में होना चाहिए।

Asianet News Hindi | Published : Aug 14, 2020 3:16 AM IST

उज्जैन. वास्तुमंजरी ग्रंथ के अनुसार किचन में रखी गई चीजें जैसे चूल्हा, पानी, अनाज और अन्य खाने की चीजों से जुड़ी दिशाओं का खासतौर से ध्यान रखा जाना चाहिए। जानिए किचन से जुड़ी कुछ खास वास्तु टिप्स…

किचन के वास्तु दोष से कम होती है उम्र
काशी के ज्योतिषाचार्य और वास्तु विशेषज्ञ पं. गणेश मिश्र के अनुसार, सी भी घर में किचन और वहां पर रखी चीजों का असर उस घर में रहने वाले लोगों पर पड़ता है। अगर किचन के कारण वास्तुदोष होता है तो उस घर में रहने वाले लोग खासतौर से घर की महिलाएं बीमारियों से बार-बार परेशान होती हैं। किचन से जुड़ा वास्तुदोष उम्र भी कम करता है। इसके उलट किसी भी घर में किचन से जुड़ा कोई दोष न हो तो उस घर में समृद्धि आती है और परिवार के लोग भी सेहतमंद रहते हैं।

दक्षिण-पूर्व में होता है अग्निदेव का वास
किसी भी घर की दक्षिण-पूर्व दिशा में अग्निदेव का वास होता है। इसलिए वास्तुशास्त्र में इस कोने को आग्नेय कोण कहा गया है। इस दिशा में पकाया गया भोजन सेहत के लिए अच्छा होता है। जिससे उस घर में रहने वाले लोगों की उम्र बढ़ती है। ज्योतिष के बृहत्संहिता ग्रंथ में बताया गया है कि इस दिशा में किचन होने से उस घर में रहने वाले लोग आर्थिक रूप से समृद्ध होते हैं।

आग्नेय कोण में सूर्य और शुक्र का शुभ प्रभाव
वास्तु ग्रंथों के अनुसार अग्निकोण का स्वामी शुक्र ग्रह है। शुक्र भोजन को कई तरह से तैयार करने में भी सहायक माना गया है। इस कारण से परिवार शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से मजबूत होता है। आग्नेय कोण में बने किचन में उदय होते सूर्य की किरणें आती हैं। जिससे किचन में काम करने वाले स्वस्थ्य रहते हैं और उस जगह बना खाना भी पोष्टिक होता है।

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