kurma jayanti 2022: भगवान विष्णु ने क्यों लिया कच्छप अवतार? जानिए पूजा विधि, शुभ मुहूर्त व कथा मुहूर्त और कथा

धर्म ग्रंथों के अनुसार वैशाख मास की पूर्णिमा पर कूर्म जयंती (kurma jayanti 2022) मनाई जाती है। कूर्म यानी कछुआ। इस बार कूर्म जयंती को लेकर दो मत है।

 

Manish Meharele | Published : May 15, 2022 3:43 AM IST

उज्जैन. मान्यता है कि भगवान विष्णु ने इसी तिथि पर कछुए के रूप में अवतार लेकर समुद्र मंथन में मथनी के रूप में उपयोग होने वाले मदरांचल पर्वत को आधार प्रदान किया था। कुछ लोगों को कहना है कि इस बार कूर्म जयंती 15 मई, रविवार (kurma jayanti 2022 date) को मनाई जानी चाहिए जबकि कुछ का मत है कि वैशाख पूर्णिमा का सूर्योदय 16 मई, सोमवार को होने से इस दिन ये पर्व मनाया जाना चाहिए। आगे जानिए भगवान विष्णु को क्यों लेना कछुए के रूप में अवतार, इस तिथि के शुभ मुहूर्त व अन्य खास बातें… 

कूर्म जयंती 2022 शुभ मुहूर्त 
पूर्णिमा तिथि 15 मई को दोपहर 12.45 से 16 मई सुबह लगभग 10 बजे तक रहेगी। शास्त्रों के अनुसार, 15 मई को कूर्म जयंती मनाना श्रेष्ठ रहेगा। पूजा के लिए शाम 4.22 से 07.05 तक पूजा के लिए शुभ मुहूर्त (kurma jayanti 2022 shubh muhurat) है।

इस विधि से करें पूजा
15 मई, रविवार की शाम को शुभ मुहूर्त में घर की पूर्व दिशा में तांबे के कलश में पानी, दूध, तिल, गुड़ फूल और चावल मिलाकर कलश स्थापित करके कूर्म अवतार की पूजा करें। इसके बाद दीपक जलाएं। सिंदूर और लाल फूल चढ़ाएं। अंत में रेवड़ियों का भोग लगाएं तथा किसी माला से इस मंत्र का जाप करें। 
पूजन मंत्र: ॐ आं ह्रीं क्रों कूर्मासनाय नम:॥

भगवान विष्णु ने क्यों लिया कूर्म अवतार?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार महर्षि दुर्वासा ने इंद्र को श्राप देकर श्रीहीन कर दिया। तब भगवान विष्णु ने दैत्यों और दानवों से मिलकर समुद्र मंथन करने को कहा, जिससे कि समुद्र के रत्न बाहर निकल सके। देवता और दैत्य दोनों इस बात के लिए तैयार हो गए। समुद्र मंथन के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी और नागराज वासुकि को नेती बनाया गया। देवताओं और दैत्यों ने मंदराचल पर्वत को उखाड़ा और उसे समुद्र में ले गए। जैसे ही मदरांचल को समुद्र की बीच ले जाया गया वो डूबने लगा। ये देख दैत्य और देवताओं में निराशा छा गई तब भगवान विष्णु ने विशाल कूर्म (कछुए) का अवतार लिया और मदरांचल को अपनी पीठ पर स्थित कर लिया, जिससे वो समुद्र में स्थित हो गया। इस तरह कछुए पर स्थापित मदरांचल पर्वत नेती की सहायता से तेजी से घूमने लगा और समुद्र मंथन का कार्य पूरा हो सका।

 

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