कभी-कभी जीवन इतना भारी लगने लगता है कि खुद को संभालना मुश्किल हो जाता है। ऐसे समय में श्रीमद् भगवद गीता एक शानदार मार्गदर्शक बन सकती है। गीता सिर्फ एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन का साइकोलॉजिकल मैप है, जहाँ से हर तरह की मनोस्थिति का समाधान मिलता है। आज हम आपके लिए लाए हैं 5 गहराई से भरे श्लोक जो आपके आत्मविश्वास को फिर से जगा सकते हैं।
“नैव किञ्चित्करोमीति युक्तो मन्मयः सदा। दृष्ट्वा शृण्वंस्तु स्पृशंस्ति जिघ्रन्नश्नन् गच्छन् स्वपंश्वसन्॥” (ग.गी. 5.8)
अर्थ: एक आत्मसाक्षी व्यक्ति हर क्रिया करते हुए भी सोचता है कि मैं कुछ नहीं कर रहा। क्योंकि वह समझता है कि कर्म शरीर से होते हैं, आत्मा तो साक्षी मात्र है। जब आपको लगे कि आप थक चुके हैं या किसी से पीछे हैं तो याद रखें, आपकी असली शक्ति भीतर है। आप सिर्फ कर्म करिए, फल की चिंता नहीं।