
भारत में खादी कपड़ा सिर्फ एक फैब्रिक नहीं बल्कि कॉन्फिडेंस, स्वदेशी और आजादी की लड़ाई का प्रतीक माना जाता है। महात्मा गांधी ने इसे स्वदेशी आंदोलन से जोड़कर घर-घर तक पहुंचाया। आज भी खादी पहनना एक सस्टेनेबल और नेचुरल फैशन स्टेटमेंट है। लेकिन मार्केट में खादी के नाम पर कई बार मिलावटी या नकली कपड़े बेचे जाते हैं। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि असली खादी और नकली खादी में फर्क कैसे करें?
खादी हाथ से काता और हाथ से बुना हुआ कपड़ा है। इसमें कॉटन, सिल्क या वूल का धागा प्रयोग किया जाता है। इसकी खासियत है कि यह सांस लेने वाला (breathable) और मौसम के हिसाब से शरीर को ठंडा या गर्म रखने वाला कपड़ा है। यानी खादी कपड़े में मशीन का इस्तेमाल बहुत कम या बिल्कुल नहीं होता।
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खादी का टेक्सचर से पहचानें: असली खादी छूने पर थोड़ी खुरदरी और मोटी लगती है। नकली खादी (मशीन से बनी) बहुत ज्यादा स्मूथ और ग्लॉसी होती है। असली खादी में धागे की मोटाई हर जगह बिल्कुल समान नहीं होती।
खादी धागों की अनियमितता: हाथ से बनने की वजह से असली खादी में धागों में हल्की-सी अनियमितता दिखती है। मशीन से बनी नकली खादी में धागे बहुत परफेक्ट और एकसमान होते हैं।
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सांस लेने वाली क्वालिटी: असली खादी को पहनने पर शरीर को हवा आसानी से मिलती है। गर्मियों में ठंडक और सर्दियों में गर्मी देती है। नकली खादी यह प्राकृतिक गुण नहीं देती, वह शरीर से चिपकने लगती है।
खादी का बर्न टेस्ट: असली खादी के धागे को जलाने पर राख बनती है और कागज/लकड़ी जैसी गंध आती है। नकली खादी (पॉलीएस्टर या सिंथेटिक मिक्स) जलने पर प्लास्टिक जैसी गंध और कड़क गांठ छोड़ती है।
खादी का प्रमाणित मार्क: असली खादी कपड़ों पर अक्सर KVIC (Khadi and Village Industries Commission) का टैग या खादी मार्क होता है। यह टैग सरकार द्वारा प्रमाणित होता है। बिना इस टैग के खरीदी गई खादी के असली होने पर शक हो सकता है।