
Unique Name In Trend: राम-श्याम, गीता-अंजलि जैसे नामों का चलन अब आउट ऑफ फैशन हो गया है। भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में पैरेंट्स अपने बच्चों के यूनिक नेम रख रहे हैं। ऐसे नाम जो पारंपरिक सोच से हटकर बिल्कुल अलग हो, भले ही उसका कोई मतलब ना निकले, लेकिन बोलने में एक स्मार्ट व्यक्तित्व को दिखाता हो। रिसर्च और एक्सपर्ट्स का मानना है कि बदलते वक्त में जिस तरह के नाम रखे जा रहे हैं, कई मामलों में फायदेमंद हैं, लेकिन कई बार यह भेदभाव को भी बढ़ावा दे रहे हैं।
नाम सिर्फ पहचान नहीं होता, बल्कि यह बच्चों के आत्मविश्वास, सोच, व्यवहार और करियर तक को प्रभावित करता है। इसलिए आज के वक्त में पैरेंट्स नाम को लेकर ज्यादा ही सोचते हैं। एक स्टडी के मुताबिक 1983 से आम नामों का चलन लगातार कम हुआ है। 2023 में अमेरिका में 64,560 यूनीक नाम रजिस्टर्ड हुए, जो 1999 की तुलना में दोगुना है।
अमेरिका के बेबीसिटर वेबसाइट के अनुसार इस साल Juniper, Matlakai और Emerson जैसे नाम पहली बार टॉप 100 में शामिल हुए हैं। ये आलम सिर्फ अमेरिका में नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में हैं। जापान में तो नाम को लेकर इस कदर बदलाव हुए हैं कि सरकार को दखल देना पड़ा है। यहां की सरकार ने ब्रांड्स और कार्टून कैरेक्टर्स पर बेस्ड नाम पर रोक लगा दिया है।
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के रिसर्चर केविन शूरर के अनुसार, आजकल पैरेंट्स सोशल मीडिया और टीवी से प्रभावित होकर बच्चों के नाम चुन रहे हैं। भारत में भी जब से डेली सीरियल्स का दौर बढ़ा है, लोग करेक्टर के नाम से प्रेरित होकर बच्चों के नाम रखने लगे हैं। पारंपरिक नामों से हटकर अब माता-पिता ऐसे यूनिक नाम की तलाश में रहते हैं, जो किसी और बच्चे का न हो।
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एक स्टडी में यह भी सामने आया कि लड़कों को अगर लड़कियों जैसे नाम दिए जाएं, तो वे ज्यादा शरारती हो सकते हैं। वहीं लड़कियों को लड़कों जैसे नाम मिलने पर वे साइंस और मैथ्स में बेहतर प्रदर्शन कर सकती हैं।
एक रिसर्च के मुताबिक, व्यक्ति का नाम भी उसके करियर की दिशा तय करने में असर डाल सकता है। स्टडी में देखा गया कि जिन लोगों के नाम उनके काम या प्रोफेशनल इमेज से मेल खाते हैं, वे उसी क्षेत्र में आगे बढ़ने की ज्यादा संभावना रखते हैं। ऑस्ट्रेलिया में हुई एक अन्य रिसर्च में यह दिलचस्प बात सामने आई कि इंग्लिश नाम वाले उम्मीदवारों को लीडरशिप रोल्स के लिए 26.8% अधिक पॉजिटिव रेस्पॉन्स मिली , जबकि गैर-इंग्लिश नाम वालों को केवल 11.3% रेस्पॉन्स रेट हासिल हुआ। यह बताता है कि कार्यस्थल पर नाम के आधार पर भी एक तरह का भेदभाव मौजूद है, जो कई बार अवसरों तक पहुंच को प्रभावित कर सकता है।
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