
AI in Relationships: यह कहानी एक 38 साल की महिला की है जो पिछले 18 सालों से अपने 44 साल के लॉन्ग-टर्म बॉयफ्रेंड के साथ रिलेशनशिप में है। हाल ही में, उसे पता चला कि उसका पार्टनर अपने रिलेशनशिप की समस्याओं पर चर्चा करने के लिए AI का इस्तेमाल कर रहा था। AI चैट्स में अपने बारे में नेगेटिव बातें लिखी देखकर महिला को गहरा सदमा लगा। यह अनुभव दिखाता है कि डिजिटल टूल्स रिलेशनशिप में भरोसे और कम्युनिकेशन पर कैसे असर डाल सकते हैं।
AI अपनी राय खुद नहीं बनाता, बल्कि यह वही दिखाता है जो उसे बताया जाता है। अगर कोई व्यक्ति दर्द, निराशा या गुस्से की वजह से बार-बार अपने पार्टनर को नेगेटिव तरीके से पेश करता है, तो AI उस कहानी को और बढ़ा देता है। धीरे-धीरे, यूजर को लगने लगता है कि उसके नजरिए को "सही ठहराया जा रहा है," जबकि सच्चाई कहीं ज्यादा जटिल और दोतरफा होती है।
जब AI के जवाब पार्टनर को चालाक, टॉक्सिक या जानबूझकर चोट पहुंचाने वाला दिखाते हैं, तो यह सोच असली रिलेशनशिप में भी आ जाती है। सहानुभूति कम हो जाती है, और हर व्यवहार को शक की नजर से देखा जाता है। बच्चों से जुड़ी सामान्य स्थितियों को भी किसी छिपे हुए "मकसद" वाला माना जाता है।
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इस स्थिति में दर्द सिर्फ AI के इस्तेमाल से नहीं होता, बल्कि इस बात से होता है कि एक पार्टनर को उसकी जानकारी या मौजूदगी के बिना जज किया गया। जब किसी को लगता है कि उसके बारे में एक पूरी नेगेटिव कहानी बनाई जा रही है, तो यह एक इमोशनल धोखे जैसा लगता है। यह खासकर तब सच होता है जब रिलेशनशिप पहले से ही थकान और दूरी से जूझ रहा हो।
AI एक टूल हो सकता है, लेकिन रिलेशनशिप की समस्याओं का समाधान नहीं। अगर भरोसा टूट गया है, तो उसे सिर्फ इंसानी बातचीत से ही ठीक किया जा सकता है, मशीन से नहीं। खुली बातचीत, इमोशनल सीमाएं तय करना, और प्रोफेशनल कपल्स थेरेपी ऐसी स्थितियों में सबसे ज्यादा मददगार हो सकती है। रिलेशनशिप को बचाना है या खत्म करना है-यह फैसला इसमें शामिल लोगों को ही करना होगा।
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