
Parenting Tips: बहुत से लोग बचपन में बार-बार डांट और गुस्सा सुनते हुए बड़े होते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसका असर उनके वयस्क जीवन में कितनी गहराई से दिखता है? माता-पिता यह सोचकर बच्चों को डांटते हैं कि वे गलतियां न दोहराएं, लेकिन बार-बार की डांट बच्चों के मनोबल पर निगेटिव प्रभाव डालती है। आइए जानते हैं कि अधिक डांट सुनने वाले बच्चों के बिहेवियर, मेंटल कंडीशन और लाइफस्टाइल पर क्या असर पड़ता है।
जब बचपन में लगातार डांटा जाता है, तो व्यक्ति अपने आप को इनसफिशिएंट (अपर्याप्त) मानने लगता है। इससे आत्मसम्मान कम होता है और कई बार वयस्क जीवन में लोग अपने ही प्रति बहुत कठोर हो जाते हैं।
बार-बार डांटने वाले वातावरण में बच्चे आदतन टॉप पर खरे उतरने का दबाव महसूस करते हैं। इससे वह वयस्क होते वक्त गलती करने से डरने लगते हैं और अपनी जरूरतों को भी दबा देते हैं। आलोचना से उन्हें डर लगने लगता है।
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अधिक डांटे गए बचपन वाले व्यस्क अक्सर रिश्तों में भरोसा नहीं कर पाते, क्योंकि वे मानते हैं कि गलतियां किए जाने पर हानि जरूर होगी। उनके लिए व्यक्तिगत जुड़ाव और खुलापन कठिन हो सकता है। वो हमेशा खुद को अलर्ट मोड में रखते हैं, उन्हें लगता है कि अगर वो कोई गलती करेंगे और अपने उन्हें छोड़कर चले जाएंगे। वो ज्यादा दबाव लेने लगते हैं।
बचपन में बड़ा तनाव और निरंतर आलोचना शरीर में कोर्टिसोल जैसे तनाव हार्मोन्स को बढ़ाते हैं, जिससे ब्रेन बहुत ज्यादा प्रभावित होते हैं। इससे इमोशनल कंट्रोल और याददाश्त से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं।
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लगातार डांटे गए व्यक्तियों में चिंता और डिप्रेशन की समस्या विकसित हो सकती है। कभी-कभी वे आत्महत्या तक के विचार करने लगते हैं, या नशों का सहारा लेने लगते हैं। यह उनकी मेंटल कंडीशन पर गंभीर इफेक्ट डालता है।
बचपन में बार-बार डांट और आलोचना सुनने वाले लोग बड़े होकर छोटी-छोटी बातों पर जल्दी आहत हो जाते हैं। किसी की हल्की सी बात या असहमति पर भी वो जरूरत से ज्यादा रिएक्ट कर सकते हैं। ऐसे लोग अक्सर रिश्तों में भी थोड़ा दूरी बनाकर रखते हैं, क्योंकि उन्हें फिर से चोट लगने का डर रहता है।