
Parenting Guide: हर माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा अच्छा इंसान बने, सही रास्ते पर चले और जिंदगी में सफल हो। लेकिन कभी-कभी अनजाने में की गई कुछ पैरेंटिंग गलतियां बच्चे के व्यक्तित्व पर गहरा असर डालती हैं और उन्हें गलत रास्ते की ओर धकेल सकती हैं। यहां हम ऐसी 3 बड़ी गलतियों के बारे में बता रहे हैं, जिनसे बचना बेहद जरूरी है।
जो माता-पिता अपने बच्चों के साथ बहुत अधिक कठोर होते हैं, छोटी-छोटी बातों पर डांटते या मारते हैं, और उनकी गलतियां बर्दाश्त नहीं करते, उनके बच्चे आमतौर पर दो तरह की पर्सनैलिटी के साथ बड़े होते हैं। पहली पर्सनैलिटी में, बच्चे चीजें छुपकर करना सीख लेते हैं और धीरे-धीरे इसे एक आदत बना लेते हैं। बचपन में जब वे छुपकर कोई काम करते हैं और पकड़े नहीं जाते, तो उन्हें इसमें मजा आने लगता है। यह अनुभव उन्हें यह एहसास दिलाता है कि छुपकर काम करने से डांट नहीं पड़ती, और समय के साथ यह उनके स्वभाव का हिस्सा बन जाता है।
दूसरी पर्सनैलिटी में, बच्चे अपने बारे में बेहद सचेत (conscious) हो जाते हैं। वे अंदर ही अंदर घुटने लगते हैं और उनके मन में माता-पिता, समाज या परिस्थितियों का एक स्थायी डर बैठ जाता है। ऐसे बच्चे अक्सर आत्मविश्वास की कमी से जूझते हैं, हमेशा किसी के सहारे की ज़रूरत महसूस करते हैं, और लोगों से बातचीत करने में घबराते हैं। यहां तक कि कोई हल्की-सी बात भी उन्हें डरा सकती है। माता-पिता को यह समझना चाहिए कि बच्चों से परफेक्शन की उम्मीद नहीं करनी चाहिए, क्योंकि कोई भी इंसान पूरी तरह परफेक्ट नहीं होता। प्यार, समझ और सहयोग ही बच्चों के स्वस्थ मानसिक विकास के लिए सबसे जरूरी हैं।
कई पैरेंट्स बच्चों की बातों को नजरअंदाज कर देते हैं या उनकी भावनाओं को महत्व नहीं देते। इसका नतीजा यह होता है कि बच्चा अपने मन की बातें घर से बाहर किसी और से शेयर करने लगता है। अगर उसे सही मार्गदर्शन बाहर नहीं मिलता, तो वह गलत लोगों के प्रभाव में आ सकता है। वो गलत रास्ते पर आगे बढ़ने लगते हैं। इसलिए माता-पिता को अपने बच्चों पर पूरा फोकस करना चाहिए। उनके साथ वक्त गुजारना चाहिए और उनकी बातों को सुनें और जरूरत हो तो सही रास्ता भी बताएं। इससे बच्चे में कॉन्फिडेंस आता है।
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जब माता-पिता बच्चों की तुलना बार-बार दूसरों से करते हैं या उनकी छोटी-छोटी कमियों पर ही ध्यान देते हैं, तो बच्चा खुद को नाकाम समझने लगता है। यह कम आत्मसम्मान (low self-esteem) उन्हें ऐसे फैसले लेने पर मजबूर कर सकता है, जो उनके भविष्य के लिए सही नहीं होते। कई बार ऐसा होता है कि बच्चे ने 89 प्रतिशत अंक हासिल किए, लेकिन माता-पिता खुश नहीं होते और कहते हैं-'फलां का बच्चा तो 94 प्रतिशत लाया है, तुम क्यों नहीं?' इस तरह की तुलना बच्चे की मानसिक स्थिति पर नकारात्मक असर डालती है। उसका आत्मविश्वास कमजोर हो जाता है और कुछ मामलों में बच्चे अवसाद या आत्महत्या जैसे चरम कदम भी उठा लेते हैं। हर बच्चे की काबिलियत अलग होती है, इसलिए उन्हें उनकी क्षमता और गति के अनुसार आगे बढ़ने का अवसर देना चाहिए।
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