
Kindney Donation Emotional Story: आज के दौर में पति-पत्नी का रिश्ता कमजोर होता जा रहा है। सात जन्मों का साथ एक जन्म भी नहीं निभ पा रहा है। ऐसे में जब एक पति अपनी पत्नी की जिंदगी बचाने के लिए अपना जान दांव पर लगा दें तो कहानी तो बनती है। एक महिला ने प्रेमानंद जी महाराज के सामने बताया कि मेरे पति मेरी जिंदगी बचाने के लिए अपनी एक किडनी दे दी। उन्हें बहुत परेशानी हुई। तो क्या इसका पाप लगेगा मुझे। जिस पर वृंदावन के महाराज जी ने बहुत ही अच्छी बात कही और महिला को रास्ता दिखाया।
एक सत्संग के दौरान एक महिला ने प्रेमानंद जी महाराज से भावुक होकर सवाल पूछा, “मेरे पति ने मेरी जान बचाने के लिए अपनी एक किडनी मुझे दान कर दी। मेरी वजह से उन्हें इतना कष्ट झेलना पड़ा। क्या यह मेरे लिए पाप बन जाएगा?” महिला के मन में यह अपराधबोध था कि उसके कारण पति को अपनी एक किडनी गंवानी पड़ी और यह त्याग कहीं उसके लिए पाप न ठहर जाए।
इस पर प्रेमानंद जी ने बेहद मधुर और हृदयस्पर्शी जवाब दिया। उन्होंने कहा, 'तुम अर्धांगिनी हो। पत्नी का पति के आधे अंग पर अधिकार होता है। तुम्हारे पति ने तुम्हारी रक्षा के लिए किडनी दी, इसके लिए हम उनका धन्यवाद करते हैं। यह पाप नहीं, बल्कि महान पुण्य है।'
फिर महाराज ने महिला से पूछा कि किडनी दान हुए कितना समय हो गया। महिला ने बताया एक साल। जब उन्होंने पूछा कि क्या अब दोनों स्वस्थ हैं, तो महिला ने मुस्कुराकर कहा, 'मैं भी ठीक हूं और मेरे पति भी।'
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यह सुनकर प्रेमानंद जी महाराज बोले, 'ऐसा ही प्रेम होना चाहिए पति-पत्नी के बीच। जो एक-दूसरे के लिए प्राण तक देने को तैयार हो। एक-दूसरे के जीवन की रक्षा में अपना जीवन समर्पित कर देना ही वैवाहिक धर्म की असली खूबसूरती है। आजकल बहुत सी मानसिकताएं बिगड़ रही हैं, लेकिन यह घटना पति धर्म का वास्तविक रूप दिखाती है। यह बहुत सुंदर उदाहरण है।'
उन्होंने आगे कहा, ‘कलियुग में यदि कोई पति अपनी पत्नी के लिए जान की बाजी लगा दे, अपनी किडनी दान कर दे, तो यह बहुत बड़ी और अनमोल बात है। यह त्याग, प्रेम और समर्पण का सर्वोच्च रूप है। ऐसे पति को और इस प्रेम को प्रणाम।’ अंत में महाराज ने दंपति को आशीर्वाद देते हुए कहा, 'यह त्याग पाप नहीं, बल्कि महान प्रेम और कर्तव्य का प्रतीक है। ईश्वर आप दोनों को स्वस्थ रखे।'
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