
भारत जो मंदिरों का राज्य है, यहां नॉर्थ से साउथ और ईस्ट से वेस्ट तक, हर राज्य और शहर में कई प्रसिद्ध मंदिर है। भारत के हर शहर और गांव में मंदिर है, ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे, जो अद्भुत, अविश्वनीय और अकल्पनीय है। क्या आपने ऐसे मंदिर का नाम सुना है या देखा है, जहां के खंबे हवा में लटक रहे हैं और मंदिर सालों से बिना हिले खड़ी है, जी हैं आज हम आप लेपाक्षी मंदिर के बारे में बताएंगे, जो दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश के सत्यासाई जिले के लेपाक्षी गांव में स्थित है। लेपाक्षी मंदिर बेंगलुरु से लगभग 120 किलोमीटर दूर है। इस मंदिर का निर्माण विजयनगर साम्राज्य के दौरान हुआ था। इस लेख में हम आपको लेपाक्षी मंदिर के बारे में विस्तार से बताएंगे...
लेपाक्षी मंदिर 16वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य के दो भाइयों, वीरन्ना और विरुपन्ना ने बनवाया था।
मंदिर भगवान वीरभद्र ( भगगवान शिव के रौद्र रूप) को समर्पित है।
रामायण काल के दौरान इस स्थान पर जटायु ने रावण से सीतो मां को बचाते हुए आपनी जान दे दी थी, इसलिए इस जगह का नाम पड़ा- "ले पा क्षि", जिसका अर्थ है - "उठो पक्षी"।
लेपाक्षी मंदिर के नृत्य मंडप में मौजूद 70 स्तंभों में से एक खंबा जमीन से करीब 1-2 सेंटीमीटर ऊपर लटका हुआ है।
इस मंदिर को हैंगिग पिलर या फ्लोटिंग पिलर कहा जाता है।
यह खंभा जहां एक तरफ से छत को सहारा दे रहा है, वहीं दूसरी ओर इसका आधार जमीन को नहीं छू रहा है।
ब्रिटिश इंजीनियरों ने एक बार इसे समझने के लिए इसके नीचे से एक कपड़ा निकालने की कोशिश की, जो आसानी से आर पार हो गई। कपड़ा का आर पार हो जाना इस बात को प्रमाणित करता है कि खंबा जमीन से जुड़ा नहीं है।
इस मंदिर के स्तंभ को एक इंजीनियरिंग मिरेकल माना जाता है।
आज भी इंजीनियर्स और आर्किटेक्ट्स के लिए यह स्तंभ एक आर्किटेक्चरल का रहस्य बना हुआ है कि उस जमाने में बिना मॉडर्न टेक्नोलॉजी के ऐसी संरचना या स्तंभ कैसे संभव हुई।
इस खंबे को लेकर कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि यह स्तंभ केंद्र संतुलन (Center of Gravity) और भारी छत के दबाव के कारण अपनी स्थिति में टिका है।